Monday, May 17, 2010

तो उत्तराखण्ड ने सीख लिया नौकरशाहों पर लगाम लगाना !


  • `कमीशंड´ आईएएस अधिकारियों की जगह `प्रमोटेड´ अधिकारियों को दी `फील्ड´ की कमान
  • दोनों मण्डलों के आयुक्तों सहित आठ जिलों के डीएम व नौ के एसपी `उपकृत´ नौकरशाह
  • कभी मण्डल में आईसीएस अधिकारी होते थे तैनात, अब पीसीएस का दौर शुरू
नवीन जोशी, नैनीताल। नवोदित राज्य उत्तराखण्ड के राजनेताओं पर राज्य को नौकरशाहों के हाथों में सोंपने और उनके हाथों में खेलने के आरोप लगते रहते हैं। लेकिन लगता है राज्य के राजनेताओं ने इस समस्या का निदान ढूंढ लिया है। परेशानी सीधे आऐ `कमीशंड´ आईएएस अधिकारियों के सामने कम ज्ञान के राजनेताओं की `न चलने´ से थी, सो राज्य को देश का `भाल´ बनाने में जुटी राज्य की निशंक सरकार ने इसके तोड़ में प्रशासनिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण राज्य के `फील्ड´ के पद पहले से `उपकृत´ प्रमोटेड आईएएस अधिकारियों को सोंप दिऐ हैं। इसे  जनता से सीधे जुड़े प्रशासन व पुलिस के कार्य अनुभवी हाथों को देने की नयी पहल बताया जा रहा है। प्रदेश के 13 जिलों व दो मण्डलों के 30 सर्वोच्च पदों में से केवल नौ पद सीधे कमीशन से चुने गऐ नौकरशाहों के हाथ में हैं, जबकि शेष 20 पद अनुभवी पदोन्नत अधिकारियों के हाथ में दिऐ गऐ हैं। कुमाऊं मण्डल में तो हालात यह हैं कि यहाँ पुलिस व प्रशाशन के 14 पदों में से 12 पर पदोन्नत अधिकारी तैनात किये गए हैं. 
कुमाऊं के मण्डल मुख्यालय से ही बात शुरू करें तो आजादी से पूर्व तक यहां जिले की जिम्मेदारी भी `डिप्टी कमिश्नर´ यानी उपायुक्त को सोंपी जाती थी, जो आइसीएस (भारतीय सिविल सेवा) अधिकारी होते थे। नैनीताल जिले आईसीएस अधिकारी डब्लू ई बाब्स 1927 में पहले डिप्टी कमिश्नर थे। देश की आजादी यानी 1947 तक यहां आईसीएस अधिकारी ही कार्यरत रहे। एमए कुरैशी जिले के 15वें डिप्टी कमिश्नर के रूप में आखिरी आईसीएस अधिकारी थे। 1948 में आरिफ अली शाह से यहां आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा के)अधिकारियों के आने का सिलसिला शुरू हुआ जो वर्तमान में 58 जिलाधिकारियों तक चल रहा है। इसी तरह मण्डलायुक्त पद की बात करें तो 1952 तक आईसीएस अधिकारी ही यहां आयुक्त के पद पर कार्यरत रहे। केएल मेहता आजादी के बाद मण्डल के पहले आयुक्त थे, जो 1948 तक रहे, उनके बाद 1952 तक रहने वाले आरटी शिवदासानी दूसरे आईसीएस आयुक्त थे। तीसरे आयुक्त राम रूप सिंह से यहां आईएएस अधिकारियों के आने का सिलसिला शुरू हुआ जो मण्डल के 35वें आयुक्त एस राजू तक जारी रहा। इधर 1994 बैच के प्रोन्नत आईएएस अधिकारी कुणाल शर्मा को मण्डल के 36वें आयुक्त की जिम्मेदारी मिली है। श्री शर्मा 1976 बैच के पीसीएस अधिकारी हैं। मंडल के ही दूसरे पुलिस के सर्वोच्च पद I.G. कुमाऊं जीवन चन्द्र पाण्डेय भी प्रमोटेड I.A.S. अधिकारी ही हैं.  अब बात जिलों की। मण्डल में नैनीताल डीएम शैलेश बगौली एवं अल्मोड़ा के एसपी वीके कृष्णकुमार के अतिरिक्त सभी जिलों में डीएम एवं एसपी, एसएसपी पदोन्नत आईएएस अथवा आईपीएस अधिकारी हैं। उधर ढ़वाल मण्डल के आयुक्त की जिम्मेदारी भी कुमाऊं आयुक्त 1994 बैच के आईएएस अधिकारी अजय नबियाल को मिली है, जबकि मण्डल के देहरादून, उत्तरकाशी, चमोली व टिहरी जिलों के डीएम तथा रुद्रप्रयाग, पौड़ी एवं हरिद्वार जिलों के पुलिस अधीक्षक भी पदोन्नत पुलिस अधिकारी ही हैं। 
इस सब के पीछे यह माना जा रहा है कि एक तो पदोन्नत आईएएस अधिकारी सरकार की कृपा पर ही पदोन्नत होते हैं, इसलिए वह सीधे आऐ आईएएस अधिकारियों की तरह सरकार से अलग नहीं जा पाते। उनके तेवरों में भी काफी अन्तर होता है। सत्ता पक्ष के राजनेता उनसे वह काम करा सकते हैं, जिन्हें आईएएस अधिकारियों से कराना अक्सर `टेढ़ी खीर´ साबित होता है। परंपरा रही है कि सीधे आऐ तेजतर्रार आईएएस अधिकारियों को ही `फील्ड´ के डीएम व आयुक्त जैसे पद दिऐ जाऐं, जबकि सचिवालय में अधिक गम्भीरता से निर्णय लेने के लिए `दीर्घकालीन योजनाकारों´ के रूप में पदोन्नत आईएएस अधिकारियों को सचिवालय में रखा जाता है। लेकिन इधर सीधे आऐ आईएएस अधिकारियों को परंपरा से उलट सचिवालय के कम महत्वपूर्ण विभागों के `आइसोलेशन´ में डाल दिया गया है। इस नई कवायद को राज्य में ताकतवर मानी जाने वाली `आईएएस लॉबी´ के `पेट में लात' माना जा रहा सो जल्द उनके 'पेट में दर्द´ शुरू हो सकता है। इस बाबत सत्तारुड़ दल के नेताओं की सुनें तो उनका कहना है कि पदोन्नत अधिकारी अपने राज्य के हैं, सो वह जनता के दुःख-दर्द अधिक दूर कर सकते हैं, जबकि विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह सत्तारुड़ों के लिए वसूली अच्छी करते हैं, साथ ही जैसे चाहो हंक जाते हैं, I.A.S. अधिकारियों की तरह 'दुलत्ती' नहीं मारते।  बहरहाल, आगे राजनेताओं व नौकरशाहों के इस `द्वन्द्व´ को खुलकर मैदान में आते देखना रोचक हो सकता है। इस बाबत राज्य के एक वरिष्ठ I.A.S. का कहना था कि राज्य सरकार की यह कवायद भाजपा सरकार के 'मिशन 2012' का हिस्सा है। सरकार को लगता है कि पदोन्नत अधिकारियों को अपने तरीके से हांक कर मां मांफिक कार्य करवा लिए जाएँ. अधिकारी भाजपाईयों की सुनें. लेकिन इसी अधिकारी का कहना था कि सरकार का यह दांव शर्तिया उलटा पड़ने वाला है। जिलों व मंडलों के  I.A.S. अधिकारी अपने प्रभाव से शासन में बैठे अपने से कमोबेश कम वरिष्ठ इन मूलतः पीसीएस  अधिकारियों से करा लिया करते थे, किन्तु अब स्थिति उल्टी होने से जिले व मंडल बेहद कमजोर हो जायेंगे, और उनके कार्य शासन में अटके रहेंगे। अपनी उपेक्षा से क्षुब्ध होने के कारण भी वे 'बिशन' (सिंह चुफाल-भाजपा अध्यक्ष) के  'मिशन 2012' को कभी सफल न होने देने की कसमें खा रहे हैं।

1 comment:

  1. सच यही लगता है कि पदोन्नत अधिकारियों से मनमाफिक काम करवाना आसान है. इसमें जनता की भलाई नजर नहीं आती.अब यदि नेता स्वच्छ होंगे तो अफसर को मन मार कर स्वच्छ बनना पडेगा.

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