Saturday, October 23, 2010

जनकवि 'गिर्दा' की दो एक्सक्लूसिव कवितायें

उत्तराखंड के दिवंगत जनकवि गिरीश तिवाड़ी 'गिर्दा' (जन्म: 09 सितंबर 1945, निधन: 22 अगस्त 2010) की दो एक्सक्लूसिव कवितायें: 
1. 'ये जूता किसका जूता है'
 यह कविता गिर्दा ने मई 2009 में, केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम पर दैनिक जागरण के पत्रकार जरनैल सिंह द्वारा जूता मारने से प्रेरित होकर लिखी थी, और 3 मई 2009 को मेरे द्वारा आयोजित 'राष्ट्रीय सहारा' के कार्यक्रम "सही नेता चुने जनता" में पहली बार प्रस्तुत की थी इस कविता में कुमाउनी शब्द "भन्काया" पर गिर्दा का विशेष जोर देकर कहना था कि 'जूता मारा नहीं वरन गुस्से की पराकाष्ठा के साथ मारा है, जरूरी नहीं कि वह सामने वाले को छुवे ही, पर उसका असर होना अवश्यंभावी है ' 

ये जूता किसका जूता है, ये जूता किस पर जूता है ?
ये जूता खाली जूता है, या जूते के ऊपर जूता है ?
जिस पर यह जूता फैंका क्या, उस पर ही क्या यह जूता फेंका है ?
जिसने यह जूता फेंका आखिर, उसने क्यों कर फेंका है ?
क्या नालायक नेताओं की यह साजिश सोची समझी है ?
या नेताओं पर लोगों के गुस्से की यह अभिव्यक्ती है।
जूते की यात्रा लंबी है, जूते का मतलब गहरा है,
आखिर क्यों लोगों का गुस्सा, जूता `भनका´ कर निकला है ?
इन मुद्दों पर सोचो यारो, वर्ना हालत नाजुक होगी,
आगे यह स्थिति लोकतन्त्र के लिए बहुत घातक होगी।

2. `फिर चुनाव की रितु आने वाली है बल'
'संभवतया' जैसा अर्थ देने वाले व कुमाउनी में तकिया कलाम की तरह बोले जाने वाले शब्द 'बल' का ख़ास तरीके से हिंदी में प्रयोग करते हुए यह कविता गिर्दा ने वर्ष 2009 की होलियों में राज्य में हो रहे त्रि-स्तरीय पंचायत चुनावों के दौरान लिखी थी इसे वह ठीक-ठाक कर ही रहे थे कि मैंने इसे मांग लिया, और उन्होंने सहर्ष दे भी दी थी

फिर चुनाव की रितु आने वाली है बल, 
घर घर में तूफान मचाने वाली है बल,
हर दल में `मैं´`मैं´ का दलदल गहराया, 
यह `मैं´ जाने क्या कर जाने वाली है बल, 
सौ बीमारो को एक अनार दिखला, 
हो सके जहां तक मतकाने वाली है बल, 
संसद में नोटों का करतब दिखा चुके, 
अब `रैली´ में `थैली´ आने वाली है बल, 
फिर भी लगता अपने बल चलने वाली, 
कोई सरकार नहीं आने वाली है बल,
मिली जुली सरकारों का फिर स्वांग रचा, 
जाने कब तक ठग खाने वाली है बल, 
पर सब को ही नाच नचाने वाली है बल, 
जाने क्या क्या स्वांग दिखाने वाली है बल, 
फिर चुनाव की रितु आने वाली है बल´

Thursday, October 14, 2010

CWG: रिकार्ड पर रिकार्ड, क्वींस बेटन से ही हो गयी थी इतिहास रचने की शुरुआत

नवीन जोशी, नैनीताल। 1930 से हो रहे राष्ट्रमण्डल खेलों के 70 वर्षों के इतिहास में भारत को 19वें संस्करण में आयोजन का जो पहला मौका मिला है, उसे भारत ने बखूबी अपने पक्ष में किया है। चार वर्ष पूर्व मेलबर्न में आयोजित हुऐ 18वें राष्ट्रमण्डल खेलों में भारत के समरेश जंग ने प्रतियोगिता का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बनकर घर में होने जा रहे खेलों में देश के खिलाड़ियों द्वारा इतिहास रचने का जो इशारा कर दिया था, उसमें भले वह अपना योगदान न दे पाए हों, पर भारतीय खिलाड़ियों ने सर्वाधिक 38 सवर्णों के साथ पदकों का शतक ( 27 रजत व 36 कांश्य के साथ (पिछले खेलों के 49 पदकों के दोगुने से भी अधिक) कुल 101 पदकों को "शगुन") बना कर इन खेलों के इतिहास में पहली बार दूसरे स्थान पर चढ़ने का इतिहास रच दिया है। यह भारत का किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन भी है। इससे पूर्व वर्ष 2002 के मैनचेस्टर खेलों में भारत ने सर्वाधिक 30 स्वर्ण, 22 रजत व 17 कांश्य के साथ कुल 69 व 2006 के मेलबर्न खेलों में सोने के 22 , चांदी के 17 व कांशे के 10 सहित केवल 49 पदक ही जीते थे। इसके अलावा भी भारत ने इन खेलों के उदघाटन व समापन समारोहों के एतिहासिक आयोजनों से दुनिया को अपनी सांस्कृतिक मजबूती के साथ ही विकास के पथ पर दुनियां हिला देने वाले हौंसले के दर्शन करा कर भी हिला कर रख दिया वैसे भारत ने खेलों के शुरू होने से पूर्व ही इन खेलों में परंपरागत रूप से प्रयोग होने वाली ऐतिहासिक क्वींस बेटन को रच कर ही कई मायनों में इतिहास रच कर रिकार्डों की लंबी श्रृंखला बनाने का इशारा कर दिया था।

  • इतिहास में पहली बार पाया है इतिहास और भविष्य का समिन्वत व हाई-टेक अन्दाज 
  • देश के विभिन्न प्रान्तों की मिट्टी से लेकर सोना तक लगा है बेटन में 
ओलम्पिक खेलों में मशाल की तरह राष्ट्रमण्डल खेलों में 1958 से क्वींस बेटन प्रयुक्त की जाती है। ओलम्पिक व एशियाई खेलों के बाद 71 देशों की सहभागिता वाले राष्ट्रमण्डल प्रतियोगिय दुनिया के तीसरे सबसे बड़ी प्रतियोगिता मानी जाती है परंपरा है कि जिस देश में इन खेलों का आयोजन होता है, बेटन के निर्माण का अधिकार भी उसी को मिलता है। इस प्रकार इस बार के राष्ट्रमण्डल खेलों के लिए 29 अक्टूबर 2009 को इंग्लेण्ड के बकिंघम पैलेस से महारानी के हाथों से राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल  के हाथों होकर निकली 900  ग्राम  वजनी व 66 सेमी लम्बाई की 'क्वींस बेटन´ ने कई मायनों में इतिहास रचते हुऐ भारत की उछ तकनीकी दक्षता का झंडा भी विश्व के समक्ष बुलंद कर दिया था। सही मायनों में बेटन देश ही नहीं दुनिया की आधुनिकतम तकनीकों के साथ ही भारतीय परम्पराओं व शिल्प का अद्भुत संगम के साथ बनाई गयी 
यह पहला मौका था जब बेटन पर लिखा महारानी के राष्ट्रमण्डल खेलों के शुभारम्भ के मौके पर परंपरागत तौर पर पढ़े जाने वाले सन्देश को पहले भी देखा जा सकता था। पहले यह सन्देश बेटन में छुपाकर रखा जाता था, किन्तु इस बार देश के इंजीनियरों ने इस हेतु ख़ास लेजर तकनीक का प्रयोग किया, जिससे सन्देश पहले दिख तो सकटा था, परन्तु शुभारम्भ से पहले पढ़ा नहीं जा सकटा था यह  सन्देश बेटन के सबसे ऊपरी शिरे पर स्थित शीशे के नीचे एक सोने की पत्ती आकार के संरचना पर लिखा गया था। इसके पीछे सोच यह है की प्राचीन काल में भारत में सन्देश पत्तियों पर ही लिख कर भेजे जाते थे । 
इसके अलावा बेटन की सतह पर जो कई रंगों की धारियां दिख रही थीं, वह वास्तव में देश के सभी राज्यों की 'लेमिनेट' की गयी रंग-बिरंगी रेत थीं, जो देश के सभी राज्यों के बेटन में प्रतिनिधित्व के साथ ही देश की 'विविधता में एकता' की शक्ति का भी सन्देश देती थीं। बेटन का निर्माण बंगलौर की कंपनी फोले डिजाइनर द्वारा भारत इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड व टाईटन की मदद से किया गया 
बेटन में एक और ख़ास विशेषता इसके स्वरुप में छुपी थी, वह थे इसमें हवा के प्रवाह के अनुकूल दौड़ते समय संतुलन बनाने के लिए `एयरो डायनेमिक बैण्ड´। साथ ही बेटन में अत्याधुनिक उपकरणों के रूप में कैमरा, वाइस रिकार्डर के साथ ही जीपीएस सिस्टम भी लगा हुआ था, जो बेटन की यात्रा के दौरान उसकी भौगोलिक स्थिति पर नज़र रखने के साथ ही रिकार्ड भी करता रहता था।बेटन साफ्टवेयर के सहारे साथ चल रहे लेपटॉप से भी जुड़ी हुई थी, जिस कारण इसके रिले के दौरान की गतिविधियों को राष्ट्रमण्डल खेलों की वेबसाइट पर देखा जा सकता था। 
यही नहीं बेटन को `बेटन स्पेस मैसेज स्पेस नाम स्पेस व शहर का नाम´ लिखकर 53030 पर एसएमएस सन्देश भी भेजे जा सकते थे। इनमें से चुनिन्दा सन्देश वेबसाइट पर देखे जा सकते हैं। 
एक और खास बात, बेटन पर बनीं पारदर्शी धारियां एलईडी तकनीक पर रात्रि में उस देश के झंडे के रंगों में चमक कर अपनत्व का भाव दिखाती थीं, इससे बेटन जिस देश में मौजूद  होती थी, वहाँ का झंडा दिखाती थी, ऐसा इसके जीपीएस व कम्प्यूटर से जुड़े होने के कारण `ऑटोमेटिक´ होता है। 
क्वीन्स बेटन रिले समिति के निदेशक कर्नल केएस बनस्तू ने बताया कि बाघा बार्डर के रास्ते पाकिस्तान से भारत में आते ही इस पर स्वतः झण्डा बदल गया। अपनी अब तक की यात्रा के दौरान बेटन ने एक और रिकार्ड अपने नाम किया, वह यह कि इस बार इसने सर्वाधिक 1.9 लाख किमी की यात्रा की, जबकि पिछले मेलबर्न राष्ट्रमण्डल खेलों में बेटन ने इस वर्ष के मुकाबले करीब आधी दूरी ही तय की थी।
इसके अलावा भी दिल्ली में हुए राष्ट्रमण्डल खेलों में पहली बार सर्वाधिक 73 देशों के 7 ,000 खिलाड़ियों के 828 पदकों की होड़ में भाग लेने का रिकार्ड भी बना, जबकि इससे  पूर्व 2006 में सर्वाधिक 4049 खिलाड़ियों ने भाग लिया था। इसके साथ ही इस वर्ष 2002 के बराबर सर्वाधिक 17 खेलों की प्रतियोगिताएं हुईं। इसके साथ ही भारत ने उदघाटन व समापन अवसरों पर जैसी आतिशबाजी के साथ भव्य कार्यक्रम किये, उससे देश-विदेश की आँखें चुधियाये बिना नहीं रह पायीं हैं। आगे अब देश की निगाह अपने पदक विजेता खिलाड़ियों पर 12 से 27 नवम्बर के बीच चीन के ग्वांगझू में होने वाले 16वें एशियाड खेलों के लिए रहेगी, जहाँ "भारत के धर्म" कहे जाने वाले क्रिकेट व "भारत के ग्रामीण खेल" कबड्डी सहित 42 खेलों की 476 प्रतियोंगिताओं में 476 स्वर्ण पदकों के लिए 45 देशों के बीच मुकाबला होगा. 

Sunday, October 10, 2010

अमेरिका, विश्व बैंक, प्रधानमंत्री जी और ग्रेडिंग प्रणाली


हाल में आयी एक खबर में कहा गया है 'विश्व बैंक ने भारत को अधिक से अधिक बच्चों को शिक्षा सुविधाएं मुहैया कराने के लिए एक अरब पांच करोड़ डॉलर यानी 5,250 करोड़ रुपये से अधिक के ऋण की मंजूरी दे दी है। यह ऋण सरकार द्वारा चलाए जा रहे सर्व शिक्षा अभियान की सहायता के लिए दिया जाएगा।' यह शिक्षा के क्षेत्र में विश्व बैंक का अब तक का सबसे बड़ा निवेश तो है ही, साथ ही यह कार्यक्रम विश्व में अपनी तरह का सबसे बड़ा कार्यक्रम है। 


इसके इतर दूसरी ओर  इससे भी बड़ी परन्तु दब गयी खबर यह है कि भारत सरकार देश भर के स्कूलों में परंपरागत आंकिक परीक्षा प्रणाली को ख़त्म करना चाहती है, वरन देश के कई राज्यों की मनाही के बावजूद सी.बी.एस.ई. में इस की जगह 'ग्रेडिंग प्रणाली' लागू कर दी गयी है 

तीसरे कोण पर जाएँ तो अमेरिका भारतीय पेशेवरों से परेशान है. कुछ दशक पहले नौकरी करने अमेरिका गए भारतीय अब वहां नौकरियां देने लगे हैं अमेरिका की जनसँख्या के महज एक फीसद से कुछ अधिक भारतीयों ने अमेरिका की 'सिलिकोन सिटी' के 15 फीसद से अधिक हिस्सेदारी अपने नाम कर ली हैउसे भारतीय युवाओं की दुनिया की सर्वश्रेष्ठ ऊर्जा तो चाहिए, पर नौकरों के रूप में, नौकरी देने वाले बुद्धिमानों के रूप में नहीं

आश्चर्य नहीं इस स्थिति के उपचार को अमेरिका ने अपने यहाँ आने भारतीयों के लिए H 1 B व L1 बीजा के शुल्क में इतनी बढ़ोत्तरी कर ली है अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की गत दिनों हुई भारत यात्रा में भी यह मुख्य मुद्दा रहा 

अब एक और कोण, 1991 में भारत के रिजर्व बैंक में विदेशी मुद्रा भण्डार इस हद तक कम हो जाने दिया गया कि सरकार दो सप्ताह के आयात के बिल चुकाने में भी सक्षम नहीं थी। यही मौका था जब अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान संकट मोचक का छद्म वेश धारण करके सामने आये । देश आर्थिक संकट से तो जूझ रहा था पर विश्व बैंक और अन्तराष्ट्रीय मुद्राकोष को पता था कि भारत कंगाल नहीं हुआ है, और वह इस स्थिति का फायदा उठा सकते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के सुझाव पर भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने भण्डार में रखा हुआ 48 टन सोना गिरवी रखकर विदेशी मुद्रा एकत्र की।  उदारवाद के मोहपाश में बंधे तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भी सरकार और अन्तराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे थे। यही वह समय था जब सरकार हर सलाह के लिये विश्व बैंक - आईएमएफ की ओर ताक रही थी। हर नीति और भविष्य के विकास की रूपरेखा वाशिंगटन में तैयार होने लगी थी। याद कर लें, वाशिंगटन केवल अमेरिका की राजधानी नहीं है बल्कि यह विश्व बैंक का मुख्यालय भी है।  

अब वापस इस तथ्य को साथ लेकर लौटते हैं कि आज "1991 के तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह" भारत के प्रधानमंत्री हैं उन्होंने देश भर में ग्रेडिंग प्रणाली लागू करने का खाका खींच लिया है, वरन सी.बी.एस.ई. में (निदेशक विनीत जोशी की काफी हद तक अनिच्छा के बावजूद) इसे लागू भी कर दिया है इसके पीछे कारण प्रचारित किया जा रहा है कि आंकिक परीक्षा प्रणाली में बच्चों पर काफी मानसिक दबाव व तनाव रहता है, जिस कारण हर वर्ष कई बच्चे आत्महत्या तक कर बैठते हैं (यह नजर अंदाज करते हुए कि "survival of the fittest" का अंग्रेज़ी सिद्धांत भी कहता है कि पीढ़ियों को बेहतर बनाने के लिए कमजोर अंगों का टूटकर गिर जाना ही बेहतर होता है जो खुद को युवा कहने वाले जीवन की प्रारम्भिक छोटी-मोटी परीक्षाओं से घबराकर श्रृष्टि के सबसे बड़े उपहार "जीवन की डोर" को तोड़ने से गुरेज नहीं करते, उन्हें बचाने के लिए क्या आने वाली मजबूत पीढ़ियों की कुर्बानी दी जानी चाहिए

यह भी कहा जाता है कि फ़्रांस के एक अखबार ने चुनाव से पहले ही वर्ष २००० में सिंह के देश का अगला वित्त मंत्री बनाने की भविष्यवाणी कर दी थी....(यानी जिस दल की भी सरकार बनती, 'मनमोहन' नाम के मोहरे को अमेरिका और विश्व बैंक भारत का वित्त मंत्री बना देते)

कोई आश्चर्य नहीं, यहाँ "दो और लो (Give and Take)" के बहुत सामान्य से नियम का ही पालन किया जा रहा है  अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान कर्ज एवं अनुदान दे रहे हैं, इसलिये स्वाभाविक है कि शर्ते भी उन्हीं की चलेंगी। लिहाजा हमारे प्रधानमंत्री जी पर अमेरिका का भारी दबाव है, "तुम्हारी (दुनियां की सबसे बड़ी बौद्धिक शक्ति वाली) युवा ब्रिगेड ने हमारे लोगों के लिए बेरोजगारी की  समस्या खड़ी कर दी है, विश्व बेंक के 1.05 अरब डॉलर पकड़ो, और इन्हें यहाँ आने से रोको, भेजो भी तो हमारे इशारों पर काम करने वाले कामगार....हमारी छाती पर मूंग दलने वाले होशियार नहीं...समझे....", और प्रधानमंत्री जी ठीक सोनिया जी के सामने शिर झुकाने की अभ्यस्त मुद्रा में 'यस सर' कहते है, और विश्व बैंक के दबाव में ग्रेडिंग प्रणाली लागू कर रहे हैं

उनके इस कदम से देश के युवाओं में बचपन से एक दूसरे से आगे बढ़ने की प्रतिद्वंद्विता की भावना और "self motivation" की प्रेरणा दम तोड़ने जा रही है देश की आने वाली पीढियां पंगु होने जा रही हैं अब उन्हें कक्षा में प्रथम आने, अधिक प्रतिशतता के अंक लाने और यहाँ तक कि पास होने की भी कोई चिंता नहीं रही शिक्षकों के हाथ से छड़ी पहले ही छीन चुकी सरकार ने अब अभिभावकों के लिए भी गुंजाइस नहीं छोडी कि वह बच्चों को न पढ़ने, पास न होने या अच्छी परसेंटेज न आने पर डपटें भी

Saturday, October 9, 2010

यहां रहीम बनाते हैं रावण और सईब सजाते हैं रामलीला

8ntl1.jpg picture by NavinJoshi

(रामलीला में पात्र के `मेकअप´ में तल्लीन सईब अहमद)
नवीन जोशी, नैनीताल। `दीवाली में अली और रमजान में राम´ का सन्देश शब्दों से इतर यदि कहीं देखना हो तो सर्वधर्म की नगरी नैनीताल सबसे उम्दा पड़ाव हो सकता है। एक छोटे से पर्वतीय शहर में हिन्दू, मुस्लिम, सिख व इसाइयों के साथ ही बौद्ध एवं आर्य समाजियों के धार्मिक स्थलों से देश की सर्वधर्म संभाव की आत्मा प्रदर्शित करने वाले इस नगर की एक और बड़ी खासियत दशहरे पर नुमाया होती है। यहां रहीम भाई रावण परिवार के पुतले बनाने में जुटे जुऐ हैं तो सईब भाई पर रामलीला में राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न सहित रामलीला के समस्त पात्रों को सजाने संवारने का दायित्व है। 

दशहरे में हिन्दू मुस्लिम एकता का अनूठा सन्देश देता है नैनीताल
ज्योतिश में भी पारंगत सईब के अनुसार `वेद पुराना और ज्योतिष  नया´ होना चाहिऐ
रहीम भाई हरियाणा से हैं। इस वर्ष उन्हें मल्लीताल की रामलीला के लिए 50 फिट से अधिक ऊंचे रावण परिवार के सदस्यों के पुतले बनाने का दायित्व मिला हुआ है। और इस कार्य में वह अपने परिवारों के साथ जुटे हुऐ हैं। बीते वर्षों में भी कभी बरेली की रजिया बेगम तो कभी रामपुर का वहाब भाई यह जिम्मेदारी निभाते आऐ हैं। इधर तल्लीताल में सईब भाई बीते 25 वर्षों से रामलीला के पात्रों को सजाने संवारने में जुटे हुऐ हैं। भूगोल विषय से परास्नातक सईब अहमद साहब का मानना है कि मनुष्य जिस `भूगोल´ में रहता है, उसे वहीं की संस्कृति में रच बस जाना चाहिऐ। वह पहाड़ में रहते हैं तो यहीं की तरह भट का जौला या चुड़काणी व गहत के डुबके उनके घर में भी बनते हैं। वह कहते हैं पहाड़ में हैं तो हमारी संस्कृति पहाड़ी है। ठीक इसी तरह वह `सांस्कृतिक पर्व´ रामलीला से 1985 से जुड़े हैं। सईब बताते हैं तब तल्लीताल की रामलीला आयोजक संस्था नव ज्योति क्लब को आयोजन में कुछ समस्या आई थी तो उन्हें पात्रों के `मेकअप´ का दायित्व सोंपा गया, जिसे वह आज तक निभाते आ रहे हैं। सईब भाई `क्रेप वर्क´ यानी पात्रों के दाढ़ी, मूंछ बनाने में महारत रखते हैं। मूंछें, दाढ़ी वह खुद ही तैयार करते हैं। वह पात्रों के मंच पर मूड के हिसाब से `मेकअप´ बदलने और मिनटों में पात्रों का हुलिया बदलने में भी माहिर हैं। जैसे अभी कोई पात्रा मेघनाद बना था और अब तुरन्त ही उसे अंगद भी बनना है तो उसकी समस्या का इलाज सईब भाई के पास है। रामलीला के दिनों के अलावा भी सईब भाई की दिनचर्या दिलचश्प रहती है। एक मुसलमान होते हुऐ भी उनका मूल पेशा ज्योतिशी का है। वह हिन्दू पराशर विधि के अनुसार कुण्डली बनाने, मिलाने व देखने में ऐसे विद्वान हैं कि लोग शादी विवाह के लिए भी हिन्दू पण्डितों के बजाय उनके पास कुण्डली मिलाने के लिए पहुंचते हैं। सईब बताते हैं `वेद हमेशा पुराना और ज्योतिश नया होना चाहिऐ´, लिहाजा वह निरन्तर ज्योतिश के साथ वेदों का भी अध्ययन करते रहते हैं। बताते हैं कि 1978 के दौर में नगर में आने वाले बंगाली बाबा से उन्हें ज्योतिष की प्रेरणा मिली। कहते हैं कि हिन्दुओं के साथ मुस्लिमों के समस्त त्योहार ज्योतिश और चन्द्र कलेण्डर पर भी आधारित होते हैं। वह नगों के भी अच्छे जानकार हैं। इस्लामी `अमाल ए कुरानी´ तरकीब से रुहानी इलाज की भी वह जानकारी रखते हैं।