देश की आजादी के बाद अधिकतम समय सत्ता में रहने वाले कांग्रेस पार्टी के लोग आन्दोलन क्या जानें, उन्होंने तो हमेशा आन्दोलन को कुचलना सीखा है, उन्हें कभी आन्दोलन करना पड़े तो तब देखिये इनकी हालत, अभी भट्टा-परसौल के मामले में राहुल गाँधी और मुंह में कोई (?) बुरी चीज लेकर बोलने वाले उनके बडबोले चापलूस महासचिव दिग्विजय सिंह की नौटंकी को जनता अभी भूली नहीं है.
कांग्रेसी तो गांधी जी के सत्याग्रह को भी भूल गए हैं, कोई इनसे पूछे कि क्या राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी कभी निर्धारित संख्या की इजाजत लेकर किसी स्थान पर सत्याग्रह करते थे....क्या उन्हें कभी अंग्रेजों ने इसी तरह एक रात भी आन्दोलन पर नहीं टिकने देने के लिए इस प्रकार का दुष्चक्र (वह भी आधी रात्रि को) रचा....(या कि तब अंग्रेजों के राज में रात्रि ही नहीं होती थी, और अब आपके राज में दिन ही नहीं होता ?) ?????
हमें याद है, आपने ऐसा ही कुछ 2 अक्टूबर 1994 को (मुजफ्फरनगर-मुरादाबाद से अपमानित और बचकर) दिल्ली में लालकिले के पीछे वाले मैदान में पहुंचे उत्तराखंडियों के साथ भी यही किया था, जहाँ आप के ही एक व्यक्ति (उसकी व उसके आका की पहचान सबको पता है) ने पहले भीड़ की और से एक पत्थर उछाला और फिर दिल्ली पुलिस ने लाठियां भांज कर भीड़ को तितर-बितर कर दिया...
और 23 -24 सितम्बर 2006 को नैनीताल में आयोजित कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के सम्मलेन के पहले (इस सम्मलेन में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी भी शामिल हुई थीं) कई दिनों से आमरण अनशन पर बैठे राज्य आंदोलकारियों को आधी रात को इसी तरह मल्लीताल पन्त पार्क से उठवा दिया था...तत्कालीन कुमाऊँ आयुक्त ने आन्दोलनकारियों को लिखित आश्वाशन दिए थे, जिन पर आज तक अमल नहीं हुआ है.....
.....लेकिन इसके उलट बीते मई माह में ही आपकी पार्टी ने अध्यक्ष के नेतृत्व में यहाँ उत्तराखंड में "सत्याग्रह" आन्दोलन किया था, और उसके 'फ्लॉप' होने का दोष आपकी ही पार्टी के सांसद प्रदीप टम्टा और विधायक रणजीत रावत ने 'नाच न जाने आँगन टेड़ा' की तर्ज पर जनता के शिर यह कह कर फोड़ने की कोशिश की थी की इन दिनों खेती और शादी-ब्याह जैसे काम-काज होने के कारण भीड़ नहीं जुटी. सत्याग्रह का समय तय करने में रणनीतिक चूक हुई, इसके बाद दिल्ली में रामदेव पर बरसने वाले टम्टा को इस बात का जवाब भी देना चाहिए की उनका बरसना इस कारण तो नहीं था कि इन्हीं दिनों रामदेव ने इतनी भीड़ कैसे जुटा ली....
हमें याद है, आपने ऐसा ही कुछ 2 अक्टूबर 1994 को (मुजफ्फरनगर-मुरादाबाद से अपमानित और बचकर) दिल्ली में लालकिले के पीछे वाले मैदान में पहुंचे उत्तराखंडियों के साथ भी यही किया था, जहाँ आप के ही एक व्यक्ति (उसकी व उसके आका की पहचान सबको पता है) ने पहले भीड़ की और से एक पत्थर उछाला और फिर दिल्ली पुलिस ने लाठियां भांज कर भीड़ को तितर-बितर कर दिया...
और 23 -24 सितम्बर 2006 को नैनीताल में आयोजित कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के सम्मलेन के पहले (इस सम्मलेन में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी भी शामिल हुई थीं) कई दिनों से आमरण अनशन पर बैठे राज्य आंदोलकारियों को आधी रात को इसी तरह मल्लीताल पन्त पार्क से उठवा दिया था...तत्कालीन कुमाऊँ आयुक्त ने आन्दोलनकारियों को लिखित आश्वाशन दिए थे, जिन पर आज तक अमल नहीं हुआ है.....
.....लेकिन इसके उलट बीते मई माह में ही आपकी पार्टी ने अध्यक्ष के नेतृत्व में यहाँ उत्तराखंड में "सत्याग्रह" आन्दोलन किया था, और उसके 'फ्लॉप' होने का दोष आपकी ही पार्टी के सांसद प्रदीप टम्टा और विधायक रणजीत रावत ने 'नाच न जाने आँगन टेड़ा' की तर्ज पर जनता के शिर यह कह कर फोड़ने की कोशिश की थी की इन दिनों खेती और शादी-ब्याह जैसे काम-काज होने के कारण भीड़ नहीं जुटी. सत्याग्रह का समय तय करने में रणनीतिक चूक हुई, इसके बाद दिल्ली में रामदेव पर बरसने वाले टम्टा को इस बात का जवाब भी देना चाहिए की उनका बरसना इस कारण तो नहीं था कि इन्हीं दिनों रामदेव ने इतनी भीड़ कैसे जुटा ली....
आपने तो अब उसी लोकतंत्र को भीड़तंत्र कहना शुरू कर दिया है, जिसके बल पर आप यहाँ हैं........ शायद आपकी और इनकी (अन्ना व रामदेव की) भीड़ में यह फर्क हो गया है कि आप की भीड़ नोट लेकर इकठ्ठा होती और वोट देती है, और उनकी स्वतः स्फूर्त आती है.
लोकतंत्र का अर्थ गांधी परिवार की सत्ता का राजशाही की तरह अनवरत चलते जाना नहीं है, वरन लोकतंत्र में कोइ भी सत्तानशीं हो सकता है, एक साधु भी....सुदामा भी, तो अन्ना या रामदेव क्यूँ नहीं ?? चाणक्य के इस देश और "यदा-यदा ही धर्मस्यः, ग्लानिर भवति भारतः.... " का सन्देश देने वाली गीता की कसम खाने वाले भारतवासियों में यह विश्वास भी पक्का है की जब हद हो जायेगी, युग परिवर्तन होगा और लगता हैं कि युग परिवर्तन की दुन्दुभी बज चुकी है. क्या नहीं ????
शायद नहीं....शायद हमें देश का धन लूटकर विदेशों में जमा करने वाले लुटेरों-डकैतों की आदत पड़ गयी है, इसलिए साधु-संतों को हमारे यहाँ राजनीति करने का अधिकार नहीं... शायद वो जमाने बीत गये जब देश को चाणक्य जैसे राजनीतिज्ञ चलाते थे.....
लोकतंत्र का अर्थ गांधी परिवार की सत्ता का राजशाही की तरह अनवरत चलते जाना नहीं है, वरन लोकतंत्र में कोइ भी सत्तानशीं हो सकता है, एक साधु भी....सुदामा भी, तो अन्ना या रामदेव क्यूँ नहीं ?? चाणक्य के इस देश और "यदा-यदा ही धर्मस्यः, ग्लानिर भवति भारतः.... " का सन्देश देने वाली गीता की कसम खाने वाले भारतवासियों में यह विश्वास भी पक्का है की जब हद हो जायेगी, युग परिवर्तन होगा और लगता हैं कि युग परिवर्तन की दुन्दुभी बज चुकी है. क्या नहीं ????
शायद नहीं....शायद हमें देश का धन लूटकर विदेशों में जमा करने वाले लुटेरों-डकैतों की आदत पड़ गयी है, इसलिए साधु-संतों को हमारे यहाँ राजनीति करने का अधिकार नहीं... शायद वो जमाने बीत गये जब देश को चाणक्य जैसे राजनीतिज्ञ चलाते थे.....
सच कहें तो कांग्रेस को विरोध गंवारा ही नहीं है.....आप उनके (कांग्रेस के) खिलाफ आन्दोलन नहीं कर सकते, खुद को नुक्सान पहुंचाते हुए राष्ट्रपिता की राह पर चलकर "सत्याग्रह" नहीं कर सकते....जूता उछाल या दिखा नहीं सकते...कांग्रेस, आप खुद ही बता दें, कोई आपका विरोध करे तो कैसे करे ?....
या कि जो भी आपका विरोध करेगा उसे आप कुचल देंगे, चाहे वह अन्ना हो या रामदेव, या फिर कोई भी और...
कोई आपको छुए भी तो आप फट पड़ेंगे, और कोई फट पड़े तो आप उसका मजाक और मखौल उड़ायेंगे...
खैर आप कुछ भी अलग नहीं कर रहे हैं, उन सत्ता के मद में चूर लोगों से, जो हिटलरशाही की राह पर होते हैं....
खैर आप कुछ भी अलग नहीं कर रहे हैं, उन सत्ता के मद में चूर लोगों से, जो हिटलरशाही की राह पर होते हैं....
कितनी अजीब बात है कि बीती छह जून 2011 को अंग्रेजों के देश (उन्हीं अंग्रेजों, जिन्हें भारतीयों ने सत्याग्रह के जरिये ही देश से भगाया था) इंग्लैंड में बाबा रामदेव के समर्थन में (सही मायने में आपके भ्रष्टाचार के खिलाफ) हजारों लोगों ने जुलूस निकाला और उन्हें किसी ने नहीं रोका, और यहाँ आप (काले अंग्रेजों) ने देश में चार जून की (काले शनिवार की) रात क्या किया ....
उलटे आपने अच्छा मौका ढूढ़ लिया, जो भी आपका विरोध करे, उसे आप फासिस्ट...आरएसएस का मुखौटा कह दें... रामदेव को तो कह दें, चल जाएगा..अन्ना को भी ???
यानी समाजवादियों...बसपाइयों...राजद..तेलगू देशम, माकपा, भाकपा...... जो भी रामदेव का समर्थन कर रहा है वह आरएसएस का मुखौटा हो गया..... यानी आप कह रहे हैं कि आपका विरोध कर रहा पूरा देश आरएसएस का मुखौटा हो गया है.... ऐसे में कहीं आप यह तो नहीं कह रहे हैं कि पूरा देश आरएसएस के रंग में रंगता जा रहा है.......
लेकिन शायद ऐसा नहीं है...सच यह है कि आज देश (यहाँ तक की आपस में धुर विरोधी दक्षिण और बाम पंथ भी एक साथ आकर) आपके भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट हो रहा है... इस बात को जल्दी समझ जाइए...वरना बहुत देर हो जायेगी....
लेकिन शायद ऐसा नहीं है...सच यह है कि आज देश (यहाँ तक की आपस में धुर विरोधी दक्षिण और बाम पंथ भी एक साथ आकर) आपके भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट हो रहा है... इस बात को जल्दी समझ जाइए...वरना बहुत देर हो जायेगी....
यह भी पढ़ें:
Thank You Manpreet ji, Jaroor aaunga..
ReplyDeleteइन लोगो को जनता का पत्र पढ़ने की आदत नही वरना ये दिन आता ?
ReplyDeleteसही कह रहे हैं दवे जी.
ReplyDeletesunder lekh hai pr congress me kisi ko smajh nahi ayega kyuki vahan sare CHATUKAR hi beche hai aajadi wali congress to indera ne hi khatam kr di thi ab desh ke murkho ko kon btaye
ReplyDeleteregards
jitendar aggarwall
dainik jagran
ambala
नवीनजी, बहुत सही आकलन है आपका। दरअसल लगातार सत्ता में रहनेवाली पार्टियों का चरित्र ही निरंकुश हो जाता है। पश्चिमबंगाल में भी वाममोर्चा सरकार अपने इसी चरित्र के कारण गर्त में चली गई।
ReplyDeleteThank You Benami and Dr. Mandhata Singh ji.
ReplyDeleteSahab, ye KAPIL SIBBAL aaj ka CHANKYA hai, magar galat logon ke sath mil kar kamine kam kar raha hai, or ese Gaddaron ko to NETIKTA KE AADHAR PE ATMHATYA KAR LENI CHAHIYE....
ReplyDelete"Naitikata ke aadhaar par Aatmhatya......" kya khoob kaha.....
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