Sunday, May 26, 2013

बिनसर: प्रकृति की गोद में प्रभु का अनुभव

कत्यूरी राजाओं द्वारा निर्मित बिन्सर महादेव मंदिर
देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में देवत्व का वास कहा जाता है। यह देवत्व ऐसे स्थानों पर मिलता है जहां नीरव शांति होती है, और यदि ऐसे शांति स्थल पर प्रकृति केवल अपने प्राकृतिक स्वरूप में यानी मानवीय हस्तक्षेप रहित रूप में मिले तो क्या कहने। जी हां, ऐसा ही स्थल है-बिन्सर। जहां प्रकृति की गोद में बैठकर प्रभु को आत्मसात करने का अनुभव लिया जा सकता है। 
अल्मोड़ा जनपद मुख्यालय से करीब 35 किमी की दूरी पर बागेश्वर मोटर मार्ग पर बिन्सर समुद्र सतह से अधिकतम 2450 मीटर की ऊंचाई (जीरो पॉइंट) पर स्थित प्रकृति और प्रभु से एक साथ साक्षात्कार करने का स्थान है। प्रकृति से इतनी निकटता के मद्देनजर ही 1988 में इस 47.07 वर्ग किमी क्षेत्र को बिन्सर वन्य जीव विहार के रूप में संरक्षित किया गया, जिसके फलस्वरूप यहां प्रकृति बेहद सीमित मानवीय हस्तक्षेप के साथ अपने मूल स्वरूप में संरक्षित रह पाई है। इसी कारण इसे उत्तराखंड के ऐसे सुंदरतम पर्वतीय पर्यटक स्थलों में शुमार किया जाता है। यही कारण है कि अल्मोड़ा-बागेश्वर मोटर मार्ग से करीब 13 किमी के कठिन व कुछ हद तक खतरनाक सड़क मार्ग की दूरी और बिजली, पानी व दूरसंचार की सीमित सुविधाओं के बावजूद हर वर्ष देश ही नहीं दुनिया भर से हजारों की संख्या में सैलानी यहां पहुंचते हैं, और पकृति की नेमतों के बीच कई-कई दिन तक ऐसे खो जाते हैं, कि वापस लौटने का दिल ही नहीं करता। यहां सैकड़ों दुर्लभ वन्य जीवों, वनस्पतियों व परिंदों की प्रजातियों के साथ ही हिमालय की करीब 300 किमी लंबी पर्वत श्रृंखलाओं के एक साथ अकाट्य दर्शन होते हैं, तो 13वीं शताब्दी में कत्यूरी राजाओं द्वारा निर्मित बिन्सर महादेव मंदिर में हिमालयवासी महादेव शिव अष्टभुजा माता पार्वती के साथ दर्शन देते हैं। उत्तराखंड का राज्य बुरांश यहां चीड़, काफल, बांज, उतीस, मोरु, खरसों, तिलोंज व अयार के साथ ही देवदार की हरीतिमा से भरे जंगलों को अपने लाल सुर्ख फूलों से ‘जंगल की ज्वाला’ में तब्दील कर देता है, तो राज्य पक्षी मोनाल भी कठफोड़वा, कलीज फीजेंट, चीड़ फीजेंट, कोकलास फीजेंट, जंगली मुर्गी, गौरैया, लमपुछड़िया, सिटौला, कोकलास, गिद्ध, फोर्कटेल, तोता व काला तीतर आदि अपने संगी 200 से अधिक पक्षी प्रजातियों के साथ यदा-कदा दिख ही जाता है। करीब 40 प्राकृतिक जल श्रोतों वाले बिन्सर क्षेत्र में असंख्य वृक्ष प्रजातियों के साथ नैर जैसी सुंगधित वनस्पति भी मिलती है, जिससे हवन-यज्ञ में प्रयुक्त की जाने वाली धूप निर्मित की जाती है, और यह राज्य पशु कस्तूरा मृग का भोजन भी मानी जाती है। कस्तूरा की कुंडली में बसने वाली बहुचर्चित कस्तूरी और शिलाजीत जैसी औषधियां भी यहां पाई जाती हैं। कस्तूरा के साथ ही यहां तेंदुआ, काला भालू, गुलदार, साही, हिरन प्रजाति के घुरल, कांकड़, सांभर, सरों, चीतल, जंगली बिल्ली, सियार, लोमड़ी, जंगली सुअर, बंदर व लंगूरों के साथ गिलहरी आदि की दर्जनों प्रजातियां भी यहां मिलती हैं। बिन्सर जाते हुए गर्मियों में खुमानी, पुलम, आड़ू व काफल जैसे लजीज पहाड़ी फलों का स्वाद लिया जा सकता है। काफल के साथ हिसालू व किल्मोड़ा जैसे फल बिन्सर की ओर जाते हुए सड़क किनारे लगे पेड़ों-झाड़ियों से मुफ्त में ही प्राप्त किए जा सकते हैं। अपनी इन्हीं खूबियों के कारण शहरों की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति की गोद में स्वयं को सोंप देने के इच्छुक लोगों के लिए बिन्सर सबसे बेहतर स्थान है।
बिन्सर में नेचर वॉक
यूं पहाड़ों पर सैलानी गर्मियों के अवकाश में मैदानी गर्मी से बचकर पहाड़ों पर आते हैं, किंतु इस मौसम में प्रकृति में छायी धुंध कुछ हद तक दूर के सुंदर दृश्यों को देखने में बाधा डालकर आनंद को कम करने की कोशिश करती है, बावजूद बिन्सर में करीब में भी प्रकृति के इतने रूपों में दर्शन होते हैं कि इसकी कमी नहीं खलती। इस मौसम में भी यहां बुरांश के खिले फूलों को देखा जा सकता है, अलबत्ता अब तक वह कुछ हद तक सूख चुके होते हैं। गर्मियों से पूर्व बसंत के मार्च-अप्रैल और बरसात के बाद सितंबर-अक्टूबर यहां आने के लिए सर्वश्रेष्ठ समय हैं। इस मौसम में यहां से हिमालय पर्वत की केदारनाथ, कर्छकुंड, चौखम्भा, नीलकंठ, कामेत, गौरी पर्वत, हाथी पर्वत, नन्दाघुंटी, त्रिशूल, मैकतोली (त्रिशूल ईस्ट), पिण्डारी, सुन्दरढुंगा ग्लेशियर, नन्दादेवी, नन्दाकोट, राजरम्भा, लास्पाधूरा, रालाम्पा, नौल्पू व पंचाचूली तक की करीब 300 किमी लंबी पर्वत श्रृंखलाओं का एक नजर घुमाकर ‘बर्ड आई व्यू’ सरीखा अटूट नजार लिया जा सकता है। कमोबेस बादलों की ऊंचाई में होने के कारण बरसात सहित अन्य मौसम में बादल भी यहां कौतूहल के साथ सुंदर नजारा पेश करते हैं। 
 कुमाऊं मंडल विकास निगम का पर्यटक आवास गृह
आवास के लिए यहां कुमाऊं मंडल विकास निगम का 2300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पर्यटक आवास गृह (टूरिस्ट रेस्ट हाउस) सर्वाधिक बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराता है। यहां करीब चार किमी दूर बिन्सर महादेव मंदिर के पास से मोटर की मदद से उठाकर पानी तथा जनरेटर की मदद से शाम को छह से नौ बजे तक बिजली की रोशनी भी उपलब्ध कराया जाता है। रेस्ट हाउस की टैरेस नुमा छत में बैठकर सुबह सूर्योदय एवं हिमालय की चोटियों तथा प्रकृति के दिलकश नजारे लिए जा सकते हैं। ‘नेचर वॉक’ करते हुए आधा किमी की दूरी पर स्थित सन सेट पॉइंट से शाम को सूर्यास्त के तथा करीब दो किमी की दूरी पर स्थित ‘जीरो पाइंट’ से हिमालय की चोटियों एवं दूर-दूर तक की पहाड़ी घाटियों और कुमाऊं की चोटियों का नजारा लिया जा सकता है। बिन्सर जाने की राह में चार किमी पहले 13वीं शताब्दी में बना बिन्सर महादेव मंदिर अपनी प्राकृतिक सुषमा एवं कत्यूरी शिल्प व मंदिर कला के कारण ध्यान आकृष्ट करता है। ध्यान-योग के लिए यह बेहद उपयुक्त स्थान है। मंदिर के पास की कोठरी में वर्ष भर प्रभु के भक्त पास ही के वन से प्राप्त वनस्पतियों से तैयार सुगंधित धूप की महक के साथ हवन-यज्ञ, ध्यान-साधना करते रहते हैं। मंदिर के बारे में कहा जाता है कि चंद राजाओं ने एक रात्रि में ही इसका निर्माण किया था। करीब 800 वर्षों के उपरांत भी बिना खास देखभाल के ठीक-ठाक स्थिति में मौजूद मंदिर इसके स्थापकों की समृद्ध भवन और मंदिर स्थापत्य कला एवं कर्तव्यनिष्ठा की प्रशंषा को मजबूर करता है। पास में एक प्राकृतिक नौला यानी स्वच्छ एवं मिनरल वाटर सरीखा प्राकृतिक रूप से शुद्ध पानी का चश्मा तथा सामने विशाल मैदान भी अपनी खूबसूरती के साथ मौजूद हैं। यहां मैरी बडन व खाली इस्टेट भी स्थित हैं।

3 comments:

  1. There are many hidden tourist destinations in Uttarakhand. These places must be explored so that maximum tourist can such places...

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  2. Navin ji bahot hi achha lekh hai. Of course Binsar is one of the best places I have visited in my life. Itne achhe article ke liye apka Dhanyawad. keep posting many such articles. Thanks

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  3. Thank You Mehta ji and Rawal ji for Nicest and appreciating Words.

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