मन कही
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Tuesday, January 5, 2010
तिवारी जी के बहाने : नैतिकता और अनैतिकता
आखिर अपने तिवारी जी ना नुकुरकर आंध्रकेराजभवनसे 'घर'लौट आयेहैं. कोशिशकी किघरमेंछुपकरबैठने के बजाये खुलकररहें, यहदिखानेके लिएकिवह 'नग्नता' मेंभीसाफ़हैं, लेकिनवहइसकोशिशमेंलाखप्रयासोंकेबावजूदसफलनहींहोपाए. 'चौरसियाजी'नेउन्हेंनग्नकरही दिया. उन्हेंतावमेंहीसहीस्वयंपरलगेआरोपोंकोस्वीकारकरनापड़ा....
तिवारी कौन हैं, शायद यह बताने की जरूरत नहीं. उन्होंने राजनीति की शुरुवात समाजवादियों की लाल टोपी पहनकर प्रजा सोशलिष्ट पार्टी से की थी, इसी पार्टी से वह 1952 व 1957 में उत्तर प्रदेश विधान सभा में पहली बार गए थे, लेकिन जब 1962 में हारे तो इसे झटक कांग्रेस का दामन थाम लिया. जहाँ से वह उत्तर प्रदेश के चार बार मुख्यमंत्री और केंद्र में प्रधानमंत्री छोड़कर न जाने किस-किस विभाग के मंत्री बने. हाँ, 1991 की राम लहर में वह भाजपा के नए प्रत्याशी बलराज पासी से हार गए और पहाड़ के मुलायम सिंह यादव के विरोध के दौर में मुलायम समर्थक एक दिन के मुख्यमंत्री जगदम्बिका पाल के समर्थन में दिए उनके एक बयान ने उन्हें चुनाव हरा न दिया होता तो वह देश के प्रधानमंत्री भी शायद बन गए होते. इतने बड़े कद के बावजूद कभी तिवारी ने इतना कुछ देने वाली कांग्रेस पार्टी से एक झटके में दामन झटक कर 'तिवारी कांग्रेस' बनाने से भी गुरेज न किया तो कभी "उत्तराखंड मेरी लाश पर बनेगा" कहने वाले तिवारी जी उत्तराखंड विधानसभा का सदस्य न होते हुए भी प्रदेश की पहली निर्वाचित विधानसभा के पहले मुख्यमंत्री बनने का लोभ संवरण न कर पाए, और अपनी अनिच्छा से बने उत्तराखंड को काट-पीट कर अपने उन चाटुकारों के साथ मिल-बाँट कर खाते रहे, जिन्होंने उनसे अब पूरी दूरी बना ली है. लगता है कि तिवारी जी के उसी दौर के कर्म अब उन्हें 'पिड़ा' रहे हैं. और एक वरिष्ठ पार्टी नेता के अनुसार पार्टी हाईकमान ने 'तिवारी नाम के सांप का फन' अपने पैरों तले तब तक के लिए दबा कर रख दिया है, जब तक वह कुचल कर दम न तोड़ दें. वैसे 'राजनीति में रिश्ते बनाए तो जाते हैं, पर अधिक लम्बे निभाये नहीं जाते. हाँ, वक्त पड़ने पर उनकी सियासी फसल जरूर काट ली जाती है' यह कहावत कभी तिवारी पर सटीक बैठती थी, और अब वह स्वयं इसके भुक्तभोगी हैं....
बहरहाल, तिवारीजीकेआंध्रकेराजभवनमेंसेक्सस्कैंडलमें फंसने केदिनोंसेहीलोगोंमेंतरहतरहकीचर्चाएँहैं. चर्चाएँइसबातकोलेकर नहीं कि 86कीउम्र मेंतिवारीनेयेक्या कर दिया ?क्योंकिया?गंगा नहानेकीउम्र मेंअपनीही 'गंगामैली' करदी. सफ़ेद खादी के लबादों वाली राजनीतिमेंऐसादाग क्योंलगाया. वरन, किसीकोसंदेहनहींहैकितिवारीजीनेऐसानहींकियाहोगा. नआंध्रके राजजभवनमें,औरनहीरोहितशेखर की मांउज्जवलाशर्माकेसाथ.
तिवारीजीकोजराभीनजदीकसेजाननेवालेलोगअच्छीतरहजानतेहैंकि वह ऐसेहीहैं. उत्तराखंडमेंउनकेऐसेलाखचर्चेपहलेसेरहेहैं, उत्तरप्रदेश केलखनऊ, रायबरेली, इलाहाबाद में भीउनकी ऐसी ही खूब पहचान है. उत्तराखंडमेंमुख्यमंत्रीरहतेहीउन्हेंयहाँ के प्रसिद्धकवि, गायकनरेन्द्रसिंहनेगी जीने 'नौछमीनारेणा' कहकरबाकायदासीडीजारीकरदीथी, जिसेतब उन्होंने बैनकरवादियाथालेकिनइन दिनोंयह सीडी फिरसेहिटहोरहीहै, इसमेंतिवारी जीद्वारालालबत्ती सेनवाजीगयी 'गोर्ख्याली' तथाअन्यमहिलामित्रोंकीओरभीइशाराकियागयाथा .इस मामले में भी जिस राधिका का नाम आ रहा है, वह उनकी पुरानी महिला मित्र ही बतायी जाती है, हालांकि वह अब उन्हें नंगा करने के लिए खुद यह खेल खेलने का दावा कर रही है.
देशऔरखासकरउत्तराखंडमेंजहाँउनकेलाखोंसमर्थकहैं, जोउन्हें 'बूबू' (दादाजी) कीतरहमानतेऔर पूजते भीहैं, एक-आधबारकेअलावाहमेशाउन्हेंवोटोंकेरूपमेंअपनाप्यारभीदिया. वहां भी कमोबेश सभी इसबातपरएकमतहैं.
बहरहाल, कथित तौर पर तिवारी जी को उनके जवानी के दिनों में उनकी जरूरत के ताजे 'पकवान' परोसने वाले कुछ चाटुकार उनके समर्थन की मुहिम चलाये हुए हैं. बाकी लोग चटखारे ले रहे हैं.....तिवारीजी ने साबित कर दिया उत्तराखंड 'हर्बल स्टेट' है, जिस 86 की उम्र में लोग अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाते उस उम्र में तिवारी जी 'ख़राब स्वास्थ्य' के बावजूद तने हुए हैं... राजनीति का गंदा धंदा छूट भी गया तो 'यारसा गम्बू' के ब्रांड अम्बेसडर बनने का विकल्प तो खोल ही दिया है.....,लोग पूछ रहे हैं- तिवारीजी सही है कि आपने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दिया है, पर वह बीमारी तो बता दीजिये.. वगैरह... वगैरह....
लेकिन कुछ लोग उनके समर्थन में भी हैं, वह रामायण, महाभारत काल से लेकर चर्चिल, गाँधी, नेहरु.. जिन्ना....क्लिंटन जैसे उदाहरण देकर उन्हें सही साबित करने की कोशिश में हैं. 'शिबौ, त्याड़ज्यू को फंसाया गया है' कहकर झूठी सहानुभूति हासिल करने की असफल कोशिश भी की जा रही है. बहरहाल सभी सहमत हैं की उन्होंने ऐसा किया है.
याद रखना होगा कि अनैतिकता हर युग में रही है पर हमेशा परदे के पीछे और विरोध के साथ......
इस भुलावे में भी न रहें की पश्चिम में सब चलता है की तर्ज पर इसे यहाँ भी स्वीकार कर लिया जायेगा. अपने यहाँ रुचिका का मामला चर्चा में है ही, I.A.S. अफसर रूपल देओल फिर से गिल से पद्मश्री वापस लिए जाने की मांग कर रही हैं. यहाँ देवभूमि से तो पूरे देश को 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता' का सन्देश गया था, और उधर पश्चिम में भी अनैतिक कर्म अनैतिक ही हैं. नैतिक होता तो क्लिंटन की हवस का शिकार होने के बाद से मोनिका सबूत की उस 'चादर' को इतने वर्ष न ढो रही होती. इसे साधारण बात मान कर भूल जाती. यदि होता तो आज ब्रिटेन का प्रसिद्ध समाचार पत्र 'द सन' तिवारी जी को लेकर अंग्रेजी में 'ऑर्गी मिनिस्टर 86' यानी 'भोगी मंत्री 86' हेडिंग लगाकर समाचार न छापता.
अनैतिक तो केवल पशुओं में ही नैतिक हो सकता है. हाँ इंसानों में भी होता था, लेकिन तभी तक, जब तक उसने ज्ञान का फल नहीं खाया था. अनैतिकता केवल निर्बुद्धि लोगों के लिए ही नैतिक हो सकती है. और सार्वजनिक जीवन के लोगों में इतनी नैतिकता की उम्मीद तो की ही जानी चाहिए कि वह समाज के लिए आदर्श प्रस्तुत करैं. आखिर वह हमारे नेता हैं...लीडर हैं. और राजनेताओं में तो खास तौर पर, क्योंकि वह जनता के मत से ही इस मुकाम पर पहुंचे हैं.
हाँ, आखिर में एक बात और, तिवारी जी के मामले में अन्य राजनेताओं की चुप्पी समझ से परे है. खास कर आदर्शों की बात करने वाली और मुख्य विरोधी दल भाजपा के नेताओं की, कहीं यह चुप्पी दूसरों पर कीचड़ उछालने से अपने दामन पर भी छीटे आने के डर के कारण है या उन्हें 'हम्माम में सभी नंगे' कहावत के सही साबित हो जाने का डर सता रहा है ?
हर युग में चर्चित रहे, अनैतिक सम्बन्ध. विश्वामित्र से आजतक, चलते हैं निर्बन्ध. चलते हैं निर्बन्ध, सभी लेते चटकारे. पकङा गया तो चोर, नहीं तो वारे-न्यारे. कह साधक क्यों दोष देखते नारायण में ? अनैतिक सम्बन्ध चर्चित हैं हर युग में.
कहने को देश के शीर्ष पदों पर एक-दो नहीं कई "देश के सर्वश्रेष्ठ अर्थशाश्त्री " आसीन हैं. स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन जी (मनमोहन ने तो त्रेता में भी बांसुरी बजाई थी, पर प्रेम की), पी चिदंबरम जी, मोंटेक सिंह अहलूवालिया जी, प्रणव जी तथा और भी कई लोग,sahi kaha sir aapne arthat' uchi dukaan, fike pakwan....
सही है. नेता हमेशा रिन का धुला होता है.
ReplyDeleteहर युग में चर्चित रहे, अनैतिक सम्बन्ध.
ReplyDeleteविश्वामित्र से आजतक, चलते हैं निर्बन्ध.
चलते हैं निर्बन्ध, सभी लेते चटकारे.
पकङा गया तो चोर, नहीं तो वारे-न्यारे.
कह साधक क्यों दोष देखते नारायण में ?
अनैतिक सम्बन्ध चर्चित हैं हर युग में.
कहने को देश के शीर्ष पदों पर एक-दो नहीं कई "देश के सर्वश्रेष्ठ अर्थशाश्त्री " आसीन हैं. स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन जी (मनमोहन ने तो त्रेता में भी बांसुरी बजाई थी, पर प्रेम की), पी चिदंबरम जी, मोंटेक सिंह अहलूवालिया जी, प्रणव जी तथा और भी कई लोग,sahi kaha sir aapne arthat' uchi dukaan, fike pakwan....
ReplyDeleteधन्यवाद सभी मित्रों का...
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