नवीन जोशी, नैनीताल। 1930 से हो रहे राष्ट्रमण्डल खेलों के 70 वर्षों के इतिहास में भारत को 19वें संस्करण में आयोजन का जो पहला मौका मिला है, उसे भारत ने बखूबी अपने पक्ष में किया है। चार वर्ष पूर्व मेलबर्न में आयोजित हुऐ 18वें राष्ट्रमण्डल खेलों में भारत के समरेश जंग ने प्रतियोगिता का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बनकर घर में होने जा रहे खेलों में देश के खिलाड़ियों द्वारा इतिहास रचने का जो इशारा कर दिया था, उसमें भले वह अपना योगदान न दे पाए हों, पर भारतीय खिलाड़ियों ने सर्वाधिक 38 सवर्णों के साथ पदकों का शतक ( 27 रजत व 36 कांश्य के साथ (पिछले खेलों के 49 पदकों के दोगुने से भी अधिक) कुल 101 पदकों को "शगुन") बना कर इन खेलों के इतिहास में पहली बार दूसरे स्थान पर चढ़ने का इतिहास रच दिया है। यह भारत का किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन भी है। इससे पूर्व वर्ष 2002 के मैनचेस्टर खेलों में भारत ने सर्वाधिक 30 स्वर्ण, 22 रजत व 17 कांश्य के साथ कुल 69 व 2006 के मेलबर्न खेलों में सोने के 22 , चांदी के 17 व कांशे के 10 सहित केवल 49 पदक ही जीते थे। इसके अलावा भी भारत ने इन खेलों के उदघाटन व समापन समारोहों के एतिहासिक आयोजनों से दुनिया को अपनी सांस्कृतिक मजबूती के साथ ही विकास के पथ पर दुनियां हिला देने वाले हौंसले के दर्शन करा कर भी हिला कर रख दिया। वैसे भारत ने खेलों के शुरू होने से पूर्व ही इन खेलों में परंपरागत रूप से प्रयोग होने वाली ऐतिहासिक क्वींस बेटन को रच कर ही कई मायनों में इतिहास रच कर रिकार्डों की लंबी श्रृंखला बनाने का इशारा कर दिया था।
ओलम्पिक खेलों में मशाल की तरह राष्ट्रमण्डल खेलों में 1958 से क्वींस बेटन प्रयुक्त की जाती है। ओलम्पिक व एशियाई खेलों के बाद 71 देशों की सहभागिता वाले राष्ट्रमण्डल प्रतियोगिय दुनिया के तीसरे सबसे बड़ी प्रतियोगिता मानी जाती है। परंपरा है कि जिस देश में इन खेलों का आयोजन होता है, बेटन के निर्माण का अधिकार भी उसी को मिलता है। इस प्रकार इस बार के राष्ट्रमण्डल खेलों के लिए 29 अक्टूबर 2009 को इंग्लेण्ड के बकिंघम पैलेस से महारानी के हाथों से राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के हाथों होकर निकली 900 ग्राम वजनी व 66 सेमी लम्बाई की 'क्वींस बेटन´ ने कई मायनों में इतिहास रचते हुऐ भारत की उछ तकनीकी दक्षता का झंडा भी विश्व के समक्ष बुलंद कर दिया था। सही मायनों में बेटन देश ही नहीं दुनिया की आधुनिकतम तकनीकों के साथ ही भारतीय परम्पराओं व शिल्प का अद्भुत संगम के साथ बनाई गयी। - इतिहास में पहली बार पाया है इतिहास और भविष्य का समिन्वत व हाई-टेक अन्दाज
- देश के विभिन्न प्रान्तों की मिट्टी से लेकर सोना तक लगा है बेटन में
इसके अलावा बेटन की सतह पर जो कई रंगों की धारियां दिख रही थीं, वह वास्तव में देश के सभी राज्यों की 'लेमिनेट' की गयी रंग-बिरंगी रेत थीं, जो देश के सभी राज्यों के बेटन में प्रतिनिधित्व के साथ ही देश की 'विविधता में एकता' की शक्ति का भी सन्देश देती थीं। बेटन का निर्माण बंगलौर की कंपनी फोले डिजाइनर द्वारा भारत इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड व टाईटन की मदद से किया गया।
एक और खास बात, बेटन पर बनीं पारदर्शी धारियां एलईडी तकनीक पर रात्रि में उस देश के झंडे के रंगों में चमक कर अपनत्व का भाव दिखाती थीं, इससे बेटन जिस देश में मौजूद होती थी, वहाँ का झंडा दिखाती थी, ऐसा इसके जीपीएस व कम्प्यूटर से जुड़े होने के कारण `ऑटोमेटिक´ होता है।
इसके अलावा भी दिल्ली में हुए राष्ट्रमण्डल खेलों में पहली बार सर्वाधिक 73 देशों के 7 ,000 खिलाड़ियों के 828 पदकों की होड़ में भाग लेने का रिकार्ड भी बना, जबकि इससे पूर्व 2006 में सर्वाधिक 4049 खिलाड़ियों ने भाग लिया था। इसके साथ ही इस वर्ष 2002 के बराबर सर्वाधिक 17 खेलों की प्रतियोगिताएं हुईं। इसके साथ ही भारत ने उदघाटन व समापन अवसरों पर जैसी आतिशबाजी के साथ भव्य कार्यक्रम किये, उससे देश-विदेश की आँखें चुधियाये बिना नहीं रह पायीं हैं। आगे अब देश की निगाह अपने पदक विजेता खिलाड़ियों पर 12 से 27 नवम्बर के बीच चीन के ग्वांगझू में होने वाले 16वें एशियाड खेलों के लिए रहेगी, जहाँ "भारत के धर्म" कहे जाने वाले क्रिकेट व "भारत के ग्रामीण खेल" कबड्डी सहित 42 खेलों की 476 प्रतियोंगिताओं में 476 स्वर्ण पदकों के लिए 45 देशों के बीच मुकाबला होगा.