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Saturday, March 27, 2010

एकतरफा बोल रही हैं अंजू गुप्ता : कलराज मिश्रा

भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं बाबरी विध्वंश मामले में आरोपी कलराज मिश्रा ने आईपीएस अधिकारी अंजू गुप्ता के सीबीआई अदालत में शुक्रवार को दिऐ बयान को एकतरफा करार दिया है। उन्होंने कहा कि अंजू अपने बयान में पूर्वाग्रहों से ग्रस्त लगती हैं। उन्हें मामले का दूसरा पक्ष भी रखना चाहिऐ थे।
  • आडवाणी, जोशी ने मुंह तक नहीं खोला था, शेशाद्रि विभिन्न भाषाओं में लोगों को ढांचा तोड़ने से मना कर रहे थे 

शनिवार को निजी प्रवास पर नैनीताल पहुंचे भाजपा के वरिष्ठ नेता ने बातचीत मैं यह बात कही। उन्होंने इसे सही करार दिया कि बावरी विध्वंश की घटना के दौरान अंजू वहां एएसपी के रूप में मौजूद थीं, और उनकी (कलराज की) अंजू से काफी बात भी हुई थी। उन्होंने बताया कि घटना के दौरान देश की विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता आरएसएस नेता स्वर्गीय शेशाद्रिचारी भीड़ को लगातार हिन्दी, तमिल, तेलगू व पूर्वोत्तर की विभिन्न भाषाओं में चीख चीखकर `संघ की मानो´ व `अनुशासन मानो´ कह समझा रहे थे। कलराज ने दावा किया कि इस दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी एवं मुरली मनोहर जोशी कार सेवकों को भड़काने जैसा एक शब्द भी नहीं बोले थे। इस दौरान जब ढांचा तोड़ा जा रहा था, कई लोग बाबरी ध्वंस करने वालों को पकड़ने के लिए भी दौड़े, और कई को मारा भी गया। मिश्रा ने कहा कि वह घटना भीड़ द्वारा अनियन्त्राण की स्थिति में की गई घटना थी, ऐसे में नेतृत्व पर लांछन लगाना गलत है। उन्होंने माना कि बाबरी ध्वंस के बाद कुछ लोगों ने खुशी जरूर जताई थी। उनका कहना था कि अंजू यदि दूसरी ओर की बातें भी रखती तो अच्छा होता। एक अन्य सवाल के उत्तर में श्री मिश्रा ने राम मन्दिर निर्माण को भाजपा की वचनबद्धता बताया। साथ ही साफ किया कि भाजपा के पूर्ण बहुमत बिना यह सम्भव नहीं लगता। उन्होंने भाजपानीत एनडीए के छह वर्ष के शासनकाल में राम मन्दिर न बनाने को विफलता मानने से इंकार किया। कहा यह 1857 से चला आ रहा विवाद है। उन्होंने खुलाशा किया कि 1857 में फैजाबाद के एक हिन्दू व एक मुस्लिम नेता ने विवादित स्थल पर मन्दिर का निर्माण तय कर लिया था, किन्तु अंग्रेजों ने दोनो नेताओं को फांसी पर चढ़ा दिया। उन्होंने कांग्रेस पार्टी को भी राममन्दिर के कपाट खोलने के लिए श्रेय दिया। कहा कि कांग्रेस पार्टी सहित सभी चाहते हैं कि राम मन्दिर बने, परन्तु दूसरे को राजनीतिक श्रेय न मिल जाऐ इसलिए विरोध करते हैं। अमिताभ बच्चन को गुजरात का ब्राण्ड अंबेसडर बनाऐ जाने के बाद कांग्रेस द्वारा उनका विरोध किऐ जाने को उन्होंने कांग्रेस की संकुचित सोच का नमूना बताया। कहा कि पूर्व पीएम राजीव गांधी, पीएम डा. मनमोहन सिंह व पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद से विकास के प्रतिमान रचने के लिए प्रशंशित गुजरात प्रदेश से किसी बढ़े कलाकार के जुड़ने की प्रशंशा होनी चाहिऐ। इसे कलाकार का सत्तारूढ़ दल से जुड़ना नहीं माना जाना चाहिऐ।

Friday, March 19, 2010

मेरी फोटो पर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिला है !


नवीन जोशी की तस्वीर को अंतरराष्ट्रीय एवार्ड 
राष्ट्रीय सहारा, नैनीताल के ब्यूरो प्रभारी नवीन जोशी द्वारा ली गई एक तस्वीर को अंतरराष्ट्रीय फोटो प्रतियोगिता 'जियोटैग्ड फोटो कांटेस्ट' में आनरेबल मेंशन्स कैटगरी में सेलेक्ट किया गया है. इस फोटो प्रतियोगिता का आयोजन पेनोरमियो वेबसाइट की तरफ से किया जाता है. नवीन जोशी की तस्वीर हिमालय की पंचाचूली चोटी की है. इस चोटी पर सुबह के समय सूर्य की पहली किरण पड़ते ही यह तस्वीर ली गई. इसी कारण फोटो में हिमालय सोने की तरह दमकता नजर आ रहा है. पेनोरियो वेबसाइट गूगल अर्थ पर दुनिया के विभिन्न स्थानों की फोटो उपलब्ध कराती है. इस वेबसाइट पर नवीन जोशी की 200 से अधिक तस्वीरें एक वर्ष से हैं.  यह वेबसाइट दुनिया भर के अपने लाखों फोटोग्राफरों से हर माह प्रतियोगिता के लिए अपनी अधिकतम 5 फोटो नामिनेट करने को कहती है. फिर पूरे माह इन फोटो पर दुनिया से वोटिंग होती है. कोई भी व्यक्ति वेबसाइट पर लाग-इन कर वोटिंग कर सकता है. इस वेबसाइट पर चूंकि भारत के कम ही लोग जुड़े हैं, इसलिए किसी भारतीय का पुरस्कार जीतना काफी कठिन होता है. नवीन जोशी से पहले संभवतः उन्नीपिल्लई नाम के एक फोटोग्राफर के रूस में खींचे गए चित्र को यह पुरस्कार मिला था. नवीन जोशी नैनीताल में मार्च 2008 से ब्यूरो प्रभारी के रूप में कार्यरत हैं. इससे पूर्व वे एक दशक तक दैनिक जागरण, उत्तर उजाला व बद्री विशाल आदि समाचार पत्रों में जुड़े रहे. नवीन फोटोग्राफी के शौकीन हैं.                                                           


नवीन जोशी की पुरस्कृत तस्वीर :  Himalaya glittering like Gold early in the morning.(January 2010 - Geotagged Photo Contest Honorable mentions)
नवीन जोशी की पुरस्कृत तस्वीर : Himalaya glittering like Gold early in the morning.(January 2010 - Geotagged Photo Contest Honorable mentions)


नवीन जोशी की पुरस्कृत तस्वीर को हम यहां तो पब्लिश कर ही चुके हैं, उसे अगर आप पेनोरमियो वेबसाइट पर देखना चाहते हैं तो क्लिक करें...
पेनोरमियो वेबसाइट की ओर से किन तस्वीरों को प्रथम व द्वितीय पुरस्कार के लायक माना गया है, उसे देखने के लिए क्लिक करें....
Comments (17)
written by kamta, March 22, 2010...
Congratulations friend.
written by sumant, March 23, 2010
बहुत खूब नवीन। शायद यह तस्वीर आपने मुनस्यारी से ली है। पीडब्लूडी डाकबंगले के आसपास से। मेरा बचपन गुजरा है मुनस्यारी में। आपकी तस्वीर से बचपन की कुछ यादें ताजा हो उठी हैं। खासकर कर स्वर्गवासी हुए पिता याद आए। कभी घर के सामने बैठ हम यूं ही पंचाचूली को ताका करते थे।
सादर
written by dharmendra, March 23, 2010...
congratulations !
dharmendra
sub editor
mahanagar kahaniyan
written by S.S.Negi, RAshtriya Sahara, Kumaun, March 23, 2010
Joshi ji Cong. for this, my best wishes with u.
written by chandan Rastogi, March 23, 2010
well done joshi ji...............
congratulations !!!!!!!!!!!
chnadan
rashtriya sahara
dehradun
written by atul, March 23, 2010...
abdffgfgfgfg
    written by pankaj shrimali, March 23, 2010...
congrechlestion naween jee
written by pankaj shrimali, March 23, 2010...
weldone joshi ji
written by dinesh mansera, March 23, 2010...
naveen bhai badhai..aap khoob aage barho ye hi shubhkamnayen
written by नवीन जोशी, March 23, 2010
धन्यवाद कामता जी, सुमंत जी, धर्मेंद्र जी, नेगी जी, चन्दन रस्तोगी जी, अतुल जी, पंकज श्रीमाली जी और दिनेश मनसेरा भाई, 
मैं आभार ज्ञापित करने मैं स्वयं को शब्द विहीन पा रहा हूँ. बहुत-बहुत धन्यवाद!! आप सभी की शुभकामनाओं का प्रतिफल ही यह पुरष्कार है. और इस पुरष्कार से अधिक खुशी मुझे आपके सुन्दर शब्द दे रहे हैं.
written by deepak Agrawal, Hindustan, Agra, March 23, 2010...
Congratulations, Joshi ji ......weldone
written by awanish yadav, kanpur, March 24, 2010...
acchi photo ke liye badhai ho Naveen ji.
Awanish Yadav, HT Media, Bilhaur, Kanpur
    written by unnippillai, March 24, 2010...
Congratulations, Joshiji, for your prize and thank you for your complements to me in the message or comments on my photo page in Panoramio. Wish you for more prizes in the contest...........
    written by unnippillai, March 24, 2010
    Congratulations,Joshiji, for your Prize in the Competition and Thank you very much for the complements given to me in your message in the comments in my Photopage in Panoramio. Wish you more Prizes in future contests.....
    written by Reetesh Sah, March 24, 2010 ...
Congratulations, Navin Bhai,
You had real potential of doing this……..kudos... to your multi-facilitate personality. .
Keep it up……
Reetesh
written by Reetesh Sah, March 24, 2010...
Congratulation Navin Bhai,
You had real potential of doing this……..kudos to your multi-facilitate personality .
Keep it up……
Reetesh
written by ajeet singh gaur, March 26, 2010
congratulations!

    इसे इस लिंक पर ओरिजिनली देखा जा  सकता है.
    यहाँ भी देखें :
http://pahar1.blogspot.com/2010/03/blog-post_7598.html
एक और सम्मान उत्तराखंड की राज्यपाल से भी मिला, पूरी खबर यहाँ देखें: http://bhadas4media.com/award/5247-navin-joshi.html

Thursday, March 18, 2010

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी हो गए कांग्रेसी

 जी हां! राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी कांग्रेसी हो गए  हैं. नैनीताल जनपद के कांग्रेसियों ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हाथों में चरखा युक्त तिरंगे की बजाय अपने चुनाव चिन्ह पंजा युक्त तिरंगा थमा उन्हें कांग्रेसी बना ने की कोशिश की है। विश्वास न हो तो यह चित्र देखिये, इसे देखकर तो ऐसा ही लगता है, ख़ास बात यह है कि राज्य की भाजपा सरकार का भी इसमें कांग्रेस को मूक समर्थन लग रहा है.  साफ़ कर दें कि  बीती छह मार्च को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य की उपस्थिति में मुख्यालय में आयोजित प्रदेशव्यापी धरना प्रदर्शन के दौरान  कांग्रेसियों ने नगर को अपने झंडों से पात दिया था। इसी दौरान गाँधी जी के हाथ की लाठी से तिरंगा बाँध दिया गया.  गाँधी जी के हाथ में राष्ट्रध्वज तिरंगा बाँधा होता तो ठीक भी था, किन्तु उनके हाथ में पार्टी विशेष का झंडा पकडाना और क्या कहा जाएगा ?  खास बात यह भी है कि बीते 12 दिनों से नगर के मुख्य चौराहे गांधी चौक पर गांधी जी की लाठी पर लटका यह झण्डा खुद तो गिरने लगा है, किन्तु शा सन प्रशासन के बड़े जिला व मण्डल स्तरीय अधिकारियों की नज़रें या तो राष्ट्रपिता की ओर गई ही नहीं हैं, अथवा वह राष्ट्रपिता के इस अपमान के प्रति बिल्कुल भी सजग नहीं हैं। 

Tuesday, March 2, 2010

`जंगल की ज्वाला´ संग मुस्काया पहाड़..


 `...पारा भीड़ा बुरूंशी फूली छौ, मैं ज कूंछू मेरी हीरू ऐरै छौ ,´ देवभूमि उत्तराखण्ड के पहाड़ी जंगलों में पशु चारण करते ग्वाल बालों की जुबान पर यह गीत इन दिनों खासा चढ़ा हुआ है। कारण उनका प्यारा लाल , सुर्ख बुरांश पूरी तरह खिल आया है। उत्तराखण्ड के राज्य वृक्ष पर लकदक खिला यह फूल इस कदर मुस्कुराया है, कि इसके खिलने से महके ऋतुराज बसन्त के साथ मुस्काते पहाड़ों की खूबसूरती में चार चाँद लग गऐ हैं। कोशिश की जाऐ तो फूलों के मौसम की यह खूबसूरती प्रदेश के पर्यटन में भी  चार चाँद लगाते हुए काफी लाभकर हो सकती है। 


बुरांश का फूल जितना सुन्दर है, उतना ही अधिक लाभकारी भी। वनस्पति विज्ञान की भाशा में रोडोडिण्ड्रोन कहे जाने वाले बुरांश का पहाड़ से गहरा आत्मीय लगाव है। शायद इसीलिए इसके पेड़ को देवभूमि उत्तराखंड में राज्य वृक्ष का दर्जा मिला हुआ है। 

  • पूरी तरह लाल सुर्ख हो गऐ पहाड़ के कई जंगल 
  • पर्यटन के लिहाज से हो सकता है लाभकारी
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू भी इसके प्रशंशकों में थे। उन्होंने अपने संस्मरणों में लिखा कि पहाड़ पर बुरांश के रंजित लाल स्थल दूर ही से दिख रहे थे। महाकवि अज्ञेय ने भी अपनी कविताओं में इसका कई बार जिक्र किया। 
हिन्दी के सुकुमार छायावादी कवि सुमित्रानन्दन पन्त को तो इस पुष्प ने अपनी लोकभाषा  कुमाउनीं में लिखने को मजबूर कर दिया था। उन्होंने इसे `जंगल की ज्वाला´ नाम दिया था। वहीं कवि श्रीकान्त वर्मा भी इसका जिक्र करने से स्वयं को नहीं रोक पाये. उन्होंने लिखा, `दुपहर भर उड़ती रही सड़क पर मुरम की धूल, शाम को उभरा मैं, तुमने मुझे पुकारा बुरूंश का फूल´। राज्य के कुमाउंनी गढ़वाली कवियों ने इसे कभी प्रेमिका के गालों तो कभी उसके रूप सौन्दर्य के लिए खूब इस्तेमाल किया। इधर जलवायु परिवर्तन का असर इस पेड़ पर जहां समय पूर्व खिलने के रूप में सर्वाधिक दिखाई दे रहा है। इस प्रकार जलवायु परिवर्तनों पर  शोध करने के लिए भी इस वृक्ष की उपयोगिता बढ़ जाती है। दूसरी ओर पशुओं के लिए उत्तम चारा व जलौनी लकड़ी होने के कारण इसके जंगलों के आसपास के ग्रामीण भी इसे खासा नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिसे रोकने की जरूरत है। फलस्वरूप इसके जंगल सिमटते जा रहे हैं। पहाड़ों पर 1200 से 4800 मीटर पर उगने वाले इस सदापर्णी वृक्ष के रक्तिम सुर्ख फूल में  शहद का भण्डार होता है। ऊंचाई बढ़ने के साथ इसके रंग में परिवर्तन होता जाता है और यह लाल रंग खोता हुआ गुलाबी, सफेद व बैगनी रंगों में भी पाया जाता है। एक ओर जहां यह चीड़ मिश्रित वनों में भी पाया जाता है, वहीं हिमालय के बुग्यालों के करीब होने वाली सीमित वृक्ष प्रजातियों में भी यह कम लंबाई के साथ मिल जाता है। इससे जूस, स्कवैश, जैम आदि उत्पाद बनाऐ जाते हैं, जो रक्तशोधक एवं हीमोग्लोबिन की पूर्तिकारक के रूप में अचूक औषधि माने जाते हैं। बुरांश का एक अन्य तरह से भी बड़ा व्यवसायिक इस्तेमाल हो सकता है। पहाड़ पर जिस मौसम में यह खिलता है, वह प्रदेश के पर्यटन के लिहाज से `ऑफ पीक´ यानी सर्वाधिक बुरा समय कहा जाता है, क्योंकि इन दिनों बर्फवारी की आस सिमट जाती है, और मैदानों में खास गर्मी नहीं बढ़ी होती। ऐसे में बुरांश के खिलने से पहाड़ में खिले फूलों का मौसम जहाँ सैलानियों को बड़ी संख्या में आकर्षित कर प्रदेश को बड़ी राजस्व आय दे सकता है, वहीँ सैलानियों के लिए प्रकृति के स्वर्ग में बड़ा आकर्षण भी साबित हो सकता है।
यह भी पढ़ें : इस साल समय पर खिला राज्य वृक्ष बुरांश, क्या ख़त्म हुआ 'ग्लोबलवार्मिंग' का असर ? 

Saturday, February 27, 2010

स्वर्गवासी नैनीताल को बनायेंगे स्वर्ग !!

करोड़ों की नैनीताल स्वर्ग बनाओ परियोजना मंजूर !!

बिना अतिरिक्त बजट के सबके सहयोग से होगी पूरी

यूं कश्मीर के साथ नैनीताल को हमेशा से ही स्वर्ग कहा जाता है, और यहां के लोगों को जीते जी स्वर्गवासी, लेकिन वास्तव में अब जाकर यहां के लिए हजारों करोड़ रुपऐ की `नैनीताल स्वर्ग बनाओ परियोजना´ मंजूर कर ली गई है। होली के मौके पर नगर के जनप्रतिनिधियों, प्रशासनिक अधिकारियों व समस्त नागरिकों की उपस्थिति में इसे मंजूरी दी गई। खास बात यह है कि परियोजना बिना एक भी रुपया अतिरिक्त खर्च किऐ जनसहयोग से पूरी होगी। सभी ने अपने आचरण व कार्यों से परियोजना को शीघ्र पूरा करने का भरोसा दिलाया।
होली के मौके पर परियोजना के बाबत नगर में आयोजित आम सभा में प्रशासनिक अधिकारियों ने माना कि राजनीतिज्ञों के बीच अधिक व जनता के बीच कम रहने से उन पर भी राजनीतिक रंग चढ़ गया है। परिणामस्वरूप वह भी जनता की स्वप्न सदृश कभी पूरी न होने वाली योजनाओं की घोशणा कर भूल जाते हैं। आयुक्त एस राजू ने कहा कि नगर को साफ करने के लिए बातों में कई बार चला चुके डण्डे को वह अब चलाकर दिखाऐंगे। अतिक्रमणकारियों और अवैध निर्माणों पर उनकी अध्यक्षता वाला झील विकास प्राधिकरण केवल `खुन्दक´ की कार्रवाइयां करने से बाज आऐगा। डीएम शैलेश बगौली ने माना कि नगर में तीसरे कार्यकाल के बावजूद उन्हें लोग पहचान नहीं पाते हैं, इसलिऐ वह थोड़ा कड़क होकर कार्रवाई करेंगे, और अपने कार्यालय को जरूर कुछ समय देंगे। नगर के प्रथम एकल पुरुश पालिकाध्यक्ष मुकेश जोशी ने अपने कार्यालय को चमकाने के बाद नगर को चमकाने का अपना पुराना भूल चुका वादा दोहराया। माना कि जहां से वह शुरू हुऐ थे वहीं खड़े हैं, स्ट्रीट लाइटें बुझ चुकी हैं, गन्दगी माल रोड तक में फैल गई है। झील का बुरा हाल है। क्षेत्रीय सांसद राजा केसी सिंह `बाबा´ ने कहा कि उन्हें याद है कि नैनीताल नगर एवं जिला उनके ही लोकसभा क्षेत्रा में आता है, और वह चुनावों से पूर्व एक दो बार जरूर यहां आऐंगे। कम से कम एक दो शिलान्यास लोकार्पण पटों पर उनका नाम जरूर होना चाहिऐ। विधायक खड़क सिंह बोहरा ने नगर वासियों को दर्शन  देते रहने का वादा किया, और इस बात से इंकार किया कि वह अभी से नऐ विधानसभा सीट की खोज में जुट गऐ हैं। सभा में राजकीय कर्मचारियों ने एक स्वर में कहा कि वह बेरोजगारों की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुऐ अपनी अगली सात की बजाय दो पीढ़ियों के भविष्य के प्रति ही सचेत रहेंगे। आईजी जीवन चन्द्र पाण्डे एवं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक एमएस बनंग्याल ने कहा कि पुलिस के लिए कहानियां बनाना मजबूरी है। आगे कोशिश होगी कि पुलिस केवल फूल थमाने भर को नहीं वरन वास्तव में अपराधियों की बजाय जनता की मित्र होगी और समाज को भयमुक्त करेगी। इस मौके पर नगर के बुद्धिजीवियों व पर्यावरणविदों ने कहा कि आगे से वह किसी योजना का विरोध करने से पहले यह सुनिश्चित करेंगे कि जैसी पक्की सड़कों का वह विरोध करेंगे वैसी पक्की सड़क अपने घर तक के लिए हरगिज नहीं बनाऐंगे। युवाओं व छात्रों ने वादा किया कि आगे से अखबार में अपनी फोटो पुतले फूंककर नहीं वरन कक्षा, विवि में प्रथम आने पर ही छपवाऐंगे। व्यवसायियों ने कहा कि फड़ों को हटाने से पूर्व स्वयं के नालियों, सड़कों पर किऐ गऐ अतिक्रमणों को हटाने की पेशकश की। नगरवासियों ने भी टिन के झोपड़ों को हटाने से पूर्व स्वयं से शुरू करने की ऐसी ही पेशकश की। उन्होंने नालों में कूड़ा डालने से भी तौबा करते हुऐ माना कि नालों से ही झील में गन्दगी जाती है, और झील ही नगर की जीवनरेखा है। पर्यटन व्यवसायियों ने सैलानियों को बेवकूफ न बनाने का वादा किया। इसके पश्चात सभी वर्ग के लोगों, भावी स्वर्गवासियों ने परियोजना को हर्ष ध्वनि से मंजूरी दे दी। 
(बुरा न मानें होली है। आलेख  को मजाक में न उड़ाऐं।)

Friday, February 26, 2010

घोडाखाल: यहां अर्जियां पढ़कर ग्वल देवता करते हैं न्याय

ग्वल देव के दरबार में न्यायालयों से थके हारे लोग लगाते हैं न्याय की गुहार
ग्वेल, ग्वल, गोलज्यू कुछ भी कह लीजिऐ, यह कुमाऊं के सर्वमान्य न्याय देवता के नाम हैं, जो आज भी न्यायालयों में पूरी उम्र न्याय की आश में ऐड़िया रगड़ने को मजबूर लोगों को चुटकियों में न्याय दिलाने के लिए प्रसिद्ध हैं। इस हेतु उनके दरबार में न्याय की आस में लोग बकायदा सादे कागजों के साथ ही स्टांप पेपरों पर भी अर्जियां लगाते हैं। यह भी मान्यता है कि यहां अर्जियां लगाने से श्रद्धालुओं को नौकरी, विवाह, संपत्ति आदि की रुकावटें भी दूर होती हैं।
ग्वल देव कुमाऊं के राजकुमार थे। उनका राजमहल आज भी चंपावत में बताया जाता है। अपने जन्म से ही सौतेली माताओं के षडयन्त्र के कारण कई विषम परिस्थितियों में घिरे राजकुमार अपने न्याय कौशल से ही राजभवन लौट पाऐ थे। इसी कारण उन्हें न्याय देव के रूप में कुमाऊं के जन जन द्वारा ईष्ट देव के रूप में अटूट आस्था के साथ पूजा जाता है। चंपावत, द्वाराहाट, चितई व नैनीताल के निकट घोड़ाखाल नामक स्थान पर उनके मन्दिर स्थित हैं, जहां प्रवासी कुमाउंनियों के साथ ही अन्य प्रदेशों के लोग भी लगातार आते रहते हैं, और खास पर्वों पर मन्दिरों में भक्तों का मेला लगता है। उनके मन्दिरों को कमोबेश देश, राज्य में चल रही राजस्व व्यवस्था की तरह ही न्यायिक अधिकार बताऐ जाते हैं। श्रद्धालुओं को इसका लाभ भी मिलता है। घोड़ाखाल एवं चितई आदि मन्दिरों में बंधी असंख्य घंटियां बताती हैं कि कितने लोगों को यहां से न्याय मिला और मनमांगी मुराद पूरी हुई।
युगलों के विवाह का पंजीकरण भी होता है यहां 

जिस प्रकार युगल वैवाहिक बंधन में बंधने के लिए परगना मजिस्ट्रेट के न्यायालय में विवाह पंजीकृत कराते हैं, उसी तर्ज पर ग्वल देव के मन्दिरों में भी विवाह का पंजीकरण किया जाता है। इस हेतु बकायदा स्टांप पेपर पर वर एवं वधु पक्ष के गिने चुने और कभी कभार प्रेमी युगल भी मन्दिर पहुंचते हैं, और स्टांप पेपर पर विवाह बंधन में बंधने का शपथ पत्र देते हैं। जिसके बाद ही यहां सादे विवाह आयोजन की इजाजत होती है।
लेकिन घंटों का गला पकड़ लिया गया...





मन्दिरों के घंटे घड़ियालों की मधुर ध्वनि किसे अच्छी नहीं लगती। इसे पर्यावरण के शुद्धीकरण में भी उपयोगी माना जाता है। लेकिन लगता है कि घोड़ाखाल मन्दिर प्रबंधन इसका अपवाद है। मनमांगी मुरादें पूरी होने पर श्रद्धालु ग्वल देव के मन्दिरों में घंटियां चढ़ाते हैं। छोटी घंटियों की असंख्य संख्या को देखते हुऐ पूर्व में घोड़ाखाल मन्दिर प्रबंधन ने छोटी घंटियों को गलाकर बड़ी घंटियों में बदल दिया था। मन्दिर में सवा टन भारी घंटियां तक मौजूद हैं। लेकिन इधर मन्दिर प्रबंधन लगता है घंटियों की मधुर ध्वनि से परेशान है। शायद इसी लिए घंटियों को इस तरह बांध दिया गया है कि श्रद्धालु चाहकर भी इसे नहीं बजा पाते। मन्दिर के पुजारी भी नि:संकोच स्वीकार करते हैं कि घंटियों की अधिक ध्वनि के कारण उन्हें बांध दिया गया है।

Friday, February 19, 2010

निर्मल का जाना

नैनीताल के मॉल रोड स्थित नगर पालिका द्वारा  नर्सरी स्कूल से हिन्दी में ककहरा सीखने वाला बच्चा 47 वर्ष की अल्पायु में ही न केवल दर्जन भर हिन्दी फिल्में और दर्जनों नाटक कर आया, वरन कालेज से निकलकर लन्दन में फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता हुआ नाटक करने लगा, हॉलीवुड की फिल्मों में भी दिखाई दिया, और सात समुन्दर पार फ्रांस के केन्स फिल्मोत्सव में सर्वश्रेश्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार प्राप्त करने वाला देश का एकमात्रा पुरुष कलाकार का खिताब जीत आया। 47 वर्षों में इस लंबी कहानी को उनके नगर, प्रान्त और देश वासी और अधिक लंबा देखना सुनना चाहते थे, लेकिन दुनियां के निर्मल और नैनीताल के नानू इस कहानी को आधा अधूरा छोड़ कर हमेशा के लिए विदा हो गऐ।

  • बड़े शौक से सुन रहा था ज़माना तुम्हें, तुम ही सो गए दास्तां कहते-कहते....
  • नर्सरी स्कूल से हॉलीवुड तक का कठिन सफर तय किया था निर्मल ने
निर्मल की 47 वर्षों की छोटी जीवन यात्रा में से उनके स्टार बनने के बाद की कहानी तो शायद सबको पता हो लेकिन इससे पीछे की कहानी थोटे शहरों में बड़े सपने देखने वाले किसी भी युवक के लिऐ प्रेरणास्पद हो सकती है। अभिनय की प्रतिभा खैर उन्हें विरासत में मिली। उनके नाना जय दत्त पाण्डे मशहूर कथावाचक थे, जबकि योजना विभाग में बड़े बाबू पिता हरीश चन्द्र पाण्डे एवं माता रेवा पाण्डे की भी संगीत में गहरी रुचि थी। गौशाला स्कूल से निकलकर नगर के सीआरएसटी इंटर कालेज में पहुंचते निर्मल के भीतर का कलाकार बाहर आ गया। विद्यालय के पूर्व प्रधानाचार्य मोहन लाल साह बताते हैं सीआरएसटी से ही निर्मल ने 1978 में तारा दत्त सती के निर्देशन में स्कूल के रामलीला वैले से बड़े भाई मिथिलेश के साथ राम-लक्ष्मण की भूमिका अदा कर अभिनय की शुरूआत की थी। इसे देख स्कूल के सांस्कृतिक क्लब के अध्यक्ष मरहूम जाकिर हुसैन साहब निर्मल से इतने प्रभावित हुऐ कि इस नन्हे बालक को क्लब का सचिव बना दिया। 80 में निर्मल युगमंच संस्था से जुड़े और डीएसबी से एमकॉम करने लगे। इस दौरान ही उन्होंने सीआरएसटी में राजा का बाजा नाटक किया। इससे पूर्व उन्होंने नगर के ही इदरीश मलिक के निर्देशन में हैमलेट नाटक से अभिनय को नऐ आयाम दिऐ। 
युगमंच के लिए अनारो उनका पहला नाटक था। पहले प्रयास में ही निकलकर 86 में वह एनएसडी चले गऐ, और एनएसडी के लिए अजुवा बफौल सहित कई नाटक किऐ। 89 में एनएसडी ग्रेजुऐट होते ही वह लन्दन की तारा आर्ट्स संस्था से जुडे़ और संस्था के लिए सैक्सपियर के कई अंग्रेजी नाटक किऐ। इसी दौरान उन्होंने विश्व भ्रमण भी किया। इसी दौरान के प्रदर्शन पर शेखर कपूर ने उन्हें `बैण्डिट क्वीन´ फिल्म में ब्रेक दिया। जिसके बाद ही वह रुपहले पर्दे पर अवतरित हुऐ। दायरा फिल्म में महिला के रोल के लिए उन्हें केन्स फिल्म समारोह में फ्रांस का सर्वश्रेश्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला। उनसे प्रेरणा पाकर नगर के सुवर्ण रावत, योगेश पन्त, ज्ञान प्रकाश, सुमन वैद्य, सुनीता चन्द, ममता भट्ट, गोपाल तिवारी, हेमा बिश्ट आदि कई कलाकारों ने एनएसडी का रुख किया, इनमें से कई बॉलीवुड में स्थापित भी हुऐ हैं। शायद इसी लिए उनके साथी रहे वरिष्ठ रंगकर्मी जहूर आलम एवं उनके पूर्व शिक्षक एवं प्रधानाचार्य मोहन लाल साह कहते हैं, ऐसा लगता है मानो पहाड़ टूट गया हो। पहाड़ उन्हें बड़ी उम्मीदों से बहुत आगे जाता देख रहा था, अफसोस वह ही सो गऐ दास्तां कहते कहते....।

Thursday, January 21, 2010

नीरो सरकार जाये, जनता जनार्दन आती है

आज देश के समक्ष बढ़ी किंकर्त्तव्यविमूढ़ता की स्थिति है. देश में महंगाई कहने भर को नहीं, वाकई सातवें आसमान पर है, और सरकार के मंत्री अपने सुख-संसाधनों के साथ अपने व्यापारी आकाओं के हित साधने की चिंताओं में न केवल उलझे हुए हैं, वरन "नीरो" की तरह "बंशी" बजा रहे हैं. खासकर "आम आदमी की सरकार" के कृषि मंत्री शरद पवार अपने सत्तासीन होने से ही आम आदमी की थाली खाली करने और पहले चीनी को अपने एक बयान से कढवा करने के बाद अब दूध को महंगाई की हांडी में उबालने पर तुले हुए हैं. देश के अकेले "इंसान" शशि थरूर आजादी के 62 साल बाद भी "आम आदमी" ही बने रहने को मजबूर अधिसंख्य देशवासियों को "जानवर" कह चुके हैं, और अफ़सोस कि "जानवर" घुड़क भी नहीं रहे.
एक समय था जब महंगा होने पर केवल प्याज ने सरकार गिरा दी थी, और आज कहने को देश के शीर्ष पदों पर एक-दो नहीं कई "देश के सर्वश्रेष्ठ अर्थशाश्त्री " आसीन हैं. स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन जी (मनमोहन ने तो त्रेता में भी बांसुरी बजाई थी, पर प्रेम की), पी चिदंबरम जी, मोंटेक सिंह अहलूवालिया जी, प्रणव जी तथा और भी कई लोग. लेकिन फिर भी महंगाई केवल कहने भर को नहीं, वास्तव में सुरसा के मुंह की तरह दिन दोगुनी-रात चौगुनी गति से बढ़ रही है. और सबसे बढ़ी चिंता की बात यह कि इन सभी को यह कहने में लेश मात्र की शर्म नहीं आ रही कि महंगाई को रोकने में वे असमर्थ हैं. 
तो क्या देश के सामने संकट केवल महंगाई का ही नहीं वरन "देश के अर्थशाश्त्रियों के सामर्थ्य शून्य होने" का भी है ? हांलांकि मानना पड़ेगा की यह सच्चाई नहीं है, नेताओं की देश के बजाये निजी स्वार्थों को प्राथमिकता देने की राजनीतिक से अधिक व्यावसायिक मजबूरी इस समस्या की जड़ में है. शरद पवार व शशि थरूर जैसे उनके मंत्रिमंडल के अन्य व्यापारी मित्र भी इसी व्यवस्था के अंग लगते हैं.





याद रखना होगा कि केंद्र में अपने समय में "रोटी" के लिए चीखने वाले देशवासियों को "ब्रेड" खाने की सलाह देने वालीं और स्वयंभू "इंदिरा इज इंडिया" की "गरीबी हटाओ" के नारे के साथ 62 में से 50 साल से अधिक राज करने वाली ही सरकार है. यह अलग बात है कि उनका जोर गरीबी की बजाये गरीबों को हटाने पर ही अधिक रहा. हाँ, इधर उनके पौत्र राहुल जरूर आशा जगाते हैं कि उन्हें गरीबों की कुछ फ़िक्र है.

ऐसे में समय आ गया है, जब सरकार को जाना चाहिए, केवल पवार की बलि तक से लोकतंत्र के सबसे बड़े देव जनता जनार्दन को संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए. अन्यथा सरकार को अब तो बातों के इतर कुछ करके दिखाना चाहिए, सत्ता छोड़ कर जाने या दूसरों को सत्ता सौंपने का साहस न हो तो इतना तो कर के देख लें कि राहुल को कमान सौंप दें.

Sunday, January 10, 2010

क्या रिपोर्टर को फांसी पर लटका देना चाहिए ?

गत दिवस एक न्यूज़ चैनल पर आयी खबर पर रिपोर्टर व चैनेल के खिलाफ कार्रवाई की मांग उठी है. मैं पूछता हूँ, क्या रिपोर्टर को फांसी पर लटका देना चाहिए ?

घटना के अनुसार एक पुलिस सब इंस्पेक्टर की समय पर चिकित्सा सहायता न होने से मौत हो गयी. कल रास्ते में कुछ अपराधियों ने इस पुलिस कर्मचारी की टांग काट दी थी. वह घायल अवस्था में सड़क पर ही पड़ा रहा. कुछ ही देर में दो मंत्रियों का काफिला वहां से गुजरा, साथ में कलक्टर साहब भी थे. पर किसी ने उसे अस्पताल पहुचाने की जहमत नहीं उठाई. कलक्टर साहब ने काफी देर बाद अबुलेंस को फ़ोन किया पर जब बीस मिनट तक अबुलेंस नहीं आई तो लोग पुलिस कर्मचारी को उठा कर अपनी ही गाड़ी में ले गए पर तब तक देर हो चुकी थी और अधिक खून बह जाने के कारण उसकी मौत हो गयी. मेरा कहना है, जो काम जिसका है वही ठीक से करले तो कोइ दिक्कत नहीं है, हमेशा नेगटिव तरीके से चीजों को देखना भी ठीक नहीं. एक न्यूज़ रिपोर्टर की जिम्मेदारी क्या है ? यही नां कि समाज मैं जो हो रहा है वह सबके सामने रखे, या कि बन्दूक लेकर देश की रक्षा के लिए सीमा पर चला जाए. या खुद ही नेता बन जाए. 
मेरे हिसाब से कलम समाज को आईना दिखाने के लिए होती है, साहित्य को समाज का आईना ही कहा गया है. वह इस घटना को शूट न करता तो दोषियों को सजा की बात ही कहाँ से उठती, इससे इतना तो हुआ कि बहुत से लोग इस घटना पर सोचने को मजबूर हुए. अगर भविष्य मैं ऐसा कोई वाकया उनके सामने खुदानखास्ता हुआ तो शायद उनमें से कुछ लोग ही घायल को बचाने को उद्यत होंगे, क्या यह उस रिपोर्टर और न्यूज़ चैनल की सफलता नहीं. और क्या इस सफलता के लिए आप उसे फांसी की सजा देना चाहेंगे. वैसे भी शायद यह खबर दिखाने वाले टीवी ने साफ़ किया है कि यह खबर उनके रिपोर्टर ने शूट नहीं की, और जिसने की उसने कहा है कि उसके पास इतने संसाधन नहीं थे.

Tuesday, January 5, 2010

तिवारी जी के बहाने : नैतिकता और अनैतिकता


आखिर अपने तिवारी जी ना नुकुर कर आंध्र के राजभवन से 'घर' लौट आये हैं. कोशिश की कि घर में छुप कर बैठने के बजाये खुलकर रहेंयह दिखाने के लिए कि वह 'नग्नतामें भी साफ़ हैं, लेकिन वह इस कोशिश में लाख प्रयासों के बावजूद सफल नहीं हो पाए. 'चौरसियाजी' ने उन्हें नग्न कर ही दिया. उन्हें ताव में ही सही स्वयं पर लगे आरोपों को स्वीकार करना पड़ा....

तिवारी कौन हैं, शायद यह बताने की जरूरत नहीं. उन्होंने राजनीति की शुरुवात समाजवादियों की लाल टोपी पहनकर प्रजा सोशलिष्ट पार्टी से की थी, इसी पार्टी से वह 1952 व 1957 में उत्तर प्रदेश विधान सभा में पहली बार गए थे, लेकिन जब 1962 में हारे तो इसे झटक कांग्रेस का दामन थाम लिया. जहाँ से वह उत्तर प्रदेश के चार बार मुख्यमंत्री और केंद्र में प्रधानमंत्री छोड़कर न जाने किस-किस विभाग के मंत्री बने. हाँ, 1991 की राम लहर में वह भाजपा के नए प्रत्याशी बलराज पासी से हार गए और पहाड़ के मुलायम सिंह यादव के विरोध के दौर में मुलायम समर्थक एक दिन के मुख्यमंत्री जगदम्बिका पाल के समर्थन में दिए उनके एक बयान ने उन्हें चुनाव हरा न दिया होता तो वह देश के प्रधानमंत्री भी शायद बन गए होते. इतने बड़े कद के बावजूद कभी तिवारी ने इतना कुछ देने वाली कांग्रेस पार्टी से एक झटके में दामन झटक कर 'तिवारी कांग्रेस' बनाने से भी गुरेज न किया तो कभी "उत्तराखंड मेरी लाश पर बनेगा" कहने वाले तिवारी जी उत्तराखंड विधानसभा का सदस्य न होते हुए भी प्रदेश की पहली निर्वाचित विधानसभा के पहले मुख्यमंत्री बनने का लोभ संवरण न कर पाए, और अपनी अनिच्छा से बने उत्तराखंड को काट-पीट कर अपने उन चाटुकारों के साथ मिल-बाँट कर खाते रहे, जिन्होंने उनसे अब पूरी दूरी बना ली है. लगता है कि तिवारी जी के उसी दौर के कर्म अब उन्हें 'पिड़ा' रहे हैं. और एक वरिष्ठ पार्टी नेता के अनुसार पार्टी हाईकमान ने 'तिवारी नाम के सांप का फन' अपने पैरों तले तब तक के लिए दबा कर रख दिया है, जब तक वह कुचल कर दम न तोड़ दें. वैसे 'राजनीति में रिश्ते बनाए तो जाते हैं, पर अधिक लम्बे निभाये नहीं जाते. हाँ, वक्त पड़ने पर उनकी सियासी फसल जरूर काट ली जाती है' यह कहावत कभी तिवारी पर सटीक बैठती थी, और अब वह स्वयं इसके भुक्तभोगी हैं....
बहरहाल, तिवारीजी के आंध्र के राजभवन में सेक्स स्कैंडल में फंसने के दिनों से ही लोगों में तरह तरह की चर्चाएँ हैं. चर्चाएँ इस बात को लेकर नहीं कि 86 की उम्र में तिवारी ने ये क्या कर दिया ? क्यों किया? गंगा नहाने की उम्र में अपनी ही 'गंगा मैली' कर दीसफ़ेद खादी के लबादों वाली राजनीति में ऐसा दाग क्यों लगाया. वरन, किसी को संदेह नहीं है कि तिवारीजी ने ऐसा नहीं किया होगा आंध्र के राजजभवन में,   ही रोहित शेखर की मां उज्जवला शर्मा के साथ

तिवारीजी को जरा भी नजदीक से जानने वाले लोग अच्छी तरह जानते हैं कि वह ऐसे ही हैंउत्तराखंड में उनके ऐसे लाख चर्चे पहले से रहे हैंउत्तर प्रदेश के लखनऊरायबरेलीइलाहाबाद में भी उनकी ऐसी ही खूब पहचान हैउत्तराखंड में मुख्यमंत्री रहते ही उन्हें यहाँ के प्रसिद्ध कविगायक नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने 'नौछमी नारेणाकह कर बाकायदा सीडी जारी कर दी थीजिसे तब उन्होंने बैन करवा दिया था लेकिन इन दिनों यह सीडी फिर से हिट हो रही हैइसमें तिवारी जी द्वारा लाल बत्ती से नवाजी गयी 'गोर्ख्यालीतथा अन्य महिला मित्रों की ओर भी इशारा किया गया था .इस मामले में भी जिस राधिका का नाम आ रहा है, वह उनकी पुरानी महिला मित्र ही बतायी जाती है, हालांकि वह अब उन्हें नंगा करने के लिए खुद यह खेल खेलने का दावा कर रही है. 

देश और खासकर उत्तराखंड में जहाँ उनके लाखों समर्थक हैं, जो उन्हें 'बूबू' (दादाजी) की तरह मानते और पूजते भी हैं, एक-आध बार के अलावा हमेशा उन्हें वोटों के रूप में अपना प्यार भी दिया. वहां भी कमोबेश सभी इस बात पर एकमत हैं. 

बहरहाल, कथित तौर पर तिवारी जी को उनके जवानी के दिनों में उनकी जरूरत के ताजे 'पकवान' परोसने वाले कुछ चाटुकार उनके समर्थन की मुहिम चलाये हुए हैं. बाकी लोग चटखारे ले रहे हैं.....तिवारीजी ने साबित कर दिया उत्तराखंड 'हर्बल स्टेट' है, जिस 86 की उम्र में लोग अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाते उस उम्र में तिवारी जी 'ख़राब स्वास्थ्य' के बावजूद तने हुए हैं... राजनीति का गंदा धंदा छूट भी गया तो 'यारसा गम्बू' के ब्रांड अम्बेसडर बनने का विकल्प तो खोल ही दिया है.....,लोग पूछ रहे हैं- तिवारीजी सही है कि आपने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दिया है, पर वह बीमारी तो बता दीजिये.. वगैरह... वगैरह.... 

लेकिन कुछ लोग उनके समर्थन में भी हैं, वह रामायण, महाभारत काल से लेकर चर्चिल, गाँधी, नेहरु.. जिन्ना....क्लिंटन जैसे उदाहरण देकर उन्हें सही साबित करने की कोशिश में हैं. 'शिबौ, त्याड़ज्यू को फंसाया गया है' कहकर झूठी सहानुभूति हासिल करने की असफल कोशिश भी की जा रही है. बहरहाल सभी सहमत हैं की उन्होंने ऐसा किया है. 

याद रखना होगा कि अनैतिकता हर युग में रही है पर हमेशा परदे के पीछे और विरोध के साथ......

इस भुलावे में भी न रहें की पश्चिम में सब चलता है की तर्ज पर इसे यहाँ भी स्वीकार कर लिया जायेगा. अपने यहाँ रुचिका का मामला चर्चा में है ही, I.A.S. अफसर रूपल देओल फिर से गिल से पद्मश्री वापस लिए जाने की मांग कर रही हैं. यहाँ देवभूमि से तो पूरे देश को 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता' का सन्देश गया था, और उधर पश्चिम में भी अनैतिक कर्म अनैतिक ही हैं. नैतिक होता तो क्लिंटन की हवस का शिकार होने के बाद से मोनिका सबूत की उस 'चादर' को इतने वर्ष न ढो रही होती. इसे साधारण बात मान कर भूल जाती. यदि होता तो आज ब्रिटेन का प्रसिद्ध समाचार पत्र 'द सन' तिवारी जी को लेकर अंग्रेजी में 'ऑर्गी मिनिस्टर 86' यानी 'भोगी मंत्री 86' हेडिंग लगाकर समाचार न छापता. 


अनैतिक तो केवल पशुओं में ही नैतिक हो सकता है. हाँ इंसानों में भी होता था, लेकिन तभी तक, जब तक उसने ज्ञान का फल नहीं खाया था. अनैतिकता केवल निर्बुद्धि लोगों के लिए ही नैतिक हो सकती है. और सार्वजनिक जीवन के लोगों में इतनी नैतिकता की उम्मीद तो की ही जानी चाहिए कि वह समाज के लिए आदर्श प्रस्तुत करैं. आखिर वह हमारे नेता हैं...लीडर हैं. और राजनेताओं में तो खास तौर पर, क्योंकि वह जनता के मत से ही इस मुकाम पर पहुंचे हैं.  

हाँ, आखिर में एक बात और, तिवारी जी के मामले में अन्य राजनेताओं की चुप्पी समझ से परे है. खास कर आदर्शों की बात करने वाली और मुख्य विरोधी दल भाजपा के नेताओं की, कहीं यह चुप्पी दूसरों पर कीचड़ उछालने से अपने दामन पर भी छीटे आने के डर के कारण है या उन्हें 'हम्माम में सभी नंगे' कहावत के सही साबित हो जाने का डर सता रहा है ?

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