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`मिशन 2012´ के `चुनावी मोड´ में जा चुकी उत्तराखंड की भाजपा सरकार के तरकश से छूटा `अटल खाद्यान्न योजना´ का तीर आखिरी नहीं वरन पहला है। "अटल खाद्यान्न योजना" शुरू करने के साथ प्रदेश के मुख्य मंत्री डा. रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने अपने ताप-तेवरों से इशारा कर दिया कि आगे ऐसे कई तीर विपक्ष को भेदने के लिए उनके तरकश से निकलने वाले हैं। वहीँ "अटल आदर्श गाँव" के बाद इस योजना का नाम भी पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपयी के नाम से करके और योजना के प्रदेश भर में एक साथ भव्य शुभारम्भ करने तथा पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को देहरादून में साथ बैठा कर निशंक ने खुद की सियासी तौर पर "हल्के व बातूनी" राजनेता की छवि तोड़ने की कोशिश की है, वहीँ अपना कद भी कुछ हद तक बढ़ाने की कोशिश शुरू कर दी है।
मुख्यमन्त्री निशंक ने अटल खाद्यान्न योजना के साथ जो चुनावी 'ट्रंप कार्ड' मारा है, इससे खासकर विपक्षी कांग्रेस पार्टी कई मोर्चों पर एक साथ आहत हुई है, और बर्षों तक उसे इसका दर्द सालता रहेगा, यह भी तय है। मालूम हो कि केन्द्र सरकार शीघ्र संसद में खाद्य सुरक्षा विधेयक लाने जा रही है। यदि यह विधेयक लागू हुआ तो केन्द्र सरकार योजना का पूरा क्रियान्वयन खर्च ठाऐगी, और नाम भाजपा सरकार का का होगा। यूं तो भाजपा इस योजना के बल पर ही छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश के साथ कमोबेश गुजरात में सत्ता में वापसी करने में सफल रही है, लेकिन ऐसा यदि उत्तराखण्ड में नहीं दोहराया जाता तो अगली कांग्रेस सरकार के लिए भी जनता से जुडी इस योजना को जारी रखने की मजबूरी होगी। कांग्रेस अभी योजना के नाम पर आपत्ति कर रही है, लेकिन उसके पास भी गांधी परिवार के अतिरिक्त योजना के लिए कोई नाम मुश्किल से ही होगा, और ऐसा साहस जुटाना भी उसके लिऐ मुश्किल ही होगा। वैसे भी पूर्व सीएम तिवारी द्वारा योजना का नाम अटल जी के नाम पर रखने का स्वागत करने से कांग्रेस की स्थिति स्वयं हांस्यास्पद हो गई है। आगे मुख्यमन्त्री ने अटल जी के नाम से विकसित किऐ जा रे अटल आदर्श गांवों को मिनी सचिवालय बनाने का इरादा जताया है।
उल्लेखनीय है कि अटल देश के एकमात्र गैर कांग्रेसी नेता हैं, जिन्हें धुर दक्षिणपंथी पार्टी का नेता होने के बावजूद उत्तर-दक्षिण रहने वाली बामपंथियों को भी साथ लेकर पांच से अधिक वर्ष केंद्र में सरकार चलाने का श्रेय जाता है। उत्तराखंड की बात करें तो उनके समय में ही यह राज्य बना। यही नहीं राज्य को वर्ष २०१३ तक के लिए विशेष राज्य का दर्जा दिया गया. आर्थिक व औद्योगिक पैकेज भी मिले, नैनीताल को दो अरब रुपये की झील संरक्ष्यं योजना मिली, वह भी तब जबकि राज्य में विपक्षी कांग्रेस पार्टी की सरकार थी, जिसके मुखिया तिवारी थे। जी हाँ, तिवारी जी, जो न केवल अटल जी के नाम से शुरू हुई "अटल खाद्यान्न योजना" के उदघाटन मौके पर आये, वरन अटल जी को अपना मित्र बताते हुए योजना और उसके नाम का स्वागत किया। निस्संदेह इसे निशंक की सफलता और एक तीर से कई शिकार कहा जा रहा है। अटल के नाम से योजना का नाम रखने और तिवारी को मंच पर लाने पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भी निशंक की पीठ ठोंकी है। ऐसे में कहा जा सकता है कि यदि यह निशंक का चुनावी संख्नाद है तो फिर उनकी पार्टी राज्य में अब तक लगभग हारी गयी बाजी मानी जा रही जंग को जीतने का स्वप्न संजो सकती है। इससे विपक्ष में आने वाले दिनों में बेचैनी के और बढ़ने से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
अटल व तिवारी की दोस्ती का गवाह है नैनीताल
नैनीताल। पूर्व सीएम तिवारी ने अटल खाद्यान्न योजना के शुभारम्भ मौके पर पूर्व पीएम अटल बिहांरी बाजपेयी से अपनी दोस्ती का जिक्र किया, और मुख्यमन्त्री डा. निशंक ने तुरन्त ही राज्य में उनकी दोस्ती के स्थल नैनीताल के लिए दो बड़ी घोषणाऐं कर दो बढे नेताओं की दोस्ती को यादगार बनाने का सन्देश दिया है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2002 में तत्कालीन पीएम बाजपेयी व सीएम तिवारी की नगर के राजभवन में भेंट हुई थी, और इसमें बिना किसी पूर्व भूमिका के बाजपेयी ने तिवारी के कहने पर नगर के लिए 200 करोड़ की नैनीताल झील संरक्षण परियोजना की घोषणा कर दी थी। आगे निशंक देश के इन दो राजनीतिक धुरंधरों की दोस्ती के नाम पर और सियासी फसल काटते हुऐ (भी) इनकी दोस्ती के प्रतीक नैनीताल को और कुछ दे जाऐ, तथा इससे नगर और मण्डल के सियासी समीकरण भी बदल जाऐं तो सन्देह न होगा।
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