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Monday, February 10, 2014

पांव तले पावर हाउस

  • 12वीं के छात्र ने जूते में बनाया डायनेमो, 500 रुपये में तैयार हो जाएगा उपकरण 
ल्मोड़ा के रवि टम्टा नैनीताल के राजकीय इंटर कालेज में महज 12वीं के छात्र हैं। पिता एक साधारण से मोटर मैकेनिक। पिता की देखा-देखी गाड़ियों के कल-पुजरे को तोड़ते-जोड़ते उन्होंने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया जो बड़े-बड़ों को दांतों तले उंगुली दबाने को मजबूर कर दे। पिछले महीने नैनीताल में बर्फबारी के दौरान बिजली क्या गुल हुई, रवि के दिमाग की बत्ती जल उठी। उन्होंने जूतों में एक ऐसा ‘डायनेमो’ फिट कर दिखाया जिससे चलते-फिरते बिजली पैदा हो सकती है। इस बिजली से मोबाइल को रिचार्ज किया जा सकता है तो 20 वाट का सीएफएल भी रोशन हो सकता है। पांव तले बने इस छोटे से पावर हाउस की बिजली को बैटरी में स्टोर कर जरूरत के अनुसार इस्तेमाल भी किया जा सकता है।  वह कहता है, मैं दुनिया को ऐसा कुछ देना चाहता हूं जिसके बारे में अब तक किसी ने सोचा तक न हो। पेश है रवि टम्टा से बातचीत के अंश :
सुना है आपने कोई नई खोज की है। क्या खोज की है, विस्तार से बताएं ? 
मैने केवल 500 रुपये खर्च कर जूते में ऐसा प्रबंध किया है कि इससे चलते-फिरते बिजली पैदा की जा सकती है। जूते में स्प्रिंग, घूमती हुई गति से बिजली पैदा करने वाले डायनेमो और चुंबकों को इस तरह लगाया है कि स्प्रिंग चलते समय कदमों से बनने वाले दबाव से डायनेमो को करीब 50 चक्कर घुमा देता है। दो चुंबकों के उत्तरी ध्रुवों को साथ रखकर उनके एक -दूसरे से दूर जाने के गुण का लाभ लेते हुए डायनेमो को पांच-छह अतिरिक्त चक्कर की अधिक गति देने का प्रयोग किया है। इस तरह एक किमी चलने से इतनी बिजली बन जाती है कि मोबाइल फोन रिचार्ज हो सके। जूते में पैदा हुई बिजली को स्टोर करने के लिए रिचार्जेबल बैटरी भी है। इससे बिजली का प्रयोग बाद में किया जा सकता है। 
आपकी यह खोज कितनी उपयोगी हो सकती है ? 
हमारे जीवन में बिजली की खपत बढ़ी है। बिजली आपूर्ति के लिए गैर परंपरागत ऊर्जा श्रोतों की लगातार तलाश है। देश में हर व्यक्ति बहुत चलता है। गरीब पेट भरने और अमीर मोटापा रोकने के लिए काफी चलते हैं। ऐसे में मेरा प्रयोग बेहद लाभप्रद हो सकता है। आपको इस खोज का विचार कहां से आया। आपने कितने समय में इसे कर दिखाया ? करीब एक माह पहले नैनीताल में बर्फ गिरी थी। इस दौरान तीन दिन बिजली गायब रही। मेरा मोबाइल डिस्चार्ज हो गया। मैंने सोचा कि जब गाड़ियों में चलते-फिरते बिजली पैदा कर रोशनी और मोबाइल रिचार्ज किया जा सकता है तो पैदल चलने से बिजली पैदा हो सकती है। करीब एक माह के प्रयास से मेरा प्रयोग सफल हो गया। गांवों में महीनों बिजली गायब रहती है। पहाड़ों पर लोगों को बहुत पैदल चलना पड़ता है। मेरे बनाए जूतों से लोग जरूरत की बिजली बना सकते हैं। 
अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में कुछ बताएं ? 
मैं मूलत: अल्मोड़ा जनपद के काफलीखान का रहने वाला हूं। वहां मेरे पिता श्री हरीश चंद्र टम्टा का ऑटो गैराज है। बचपन से पिता के साथ गैराज में हाथ बंटाता हूं। मेरे पिता ने ऑटोमोबाइल से आईटीआई किया है। वे अक्सर नये प्रयोग करते रहते हैं। उन्हीं की देखा-देखी मैं भी नई-नर्इ खोजों के बारे में सोचता रहता हूं। मैं तीन भाई-बहनों में सबसे छोटा हूं। बड़े भाई पॉलीटेक्निक से डिप्लोमा कर रहे हैं। बड़ी बहन का विवाह हो चुका है। नैनीताल में चाचा के साथ रहकर मेजर राजेश अधिकारी राजकीय इंटर कालेज में 12वीं में पढ़ रहा हूं। 
और भी नई खोज करने की योजना है ? 
2008 से मैं वाहनों को हादसों से बचाने के प्रयोग पर कार्य कर रहा हूं। इसे मैं प्रायोगिक तौर पर कागज पर साबित कर भी चुका हूं। किसी वाहन पर इसे प्रदर्शित करने के लिए काफी बड़ी धनराशि चाहिए। मैंने ‘घोंघे’ से प्रेरणा ली है। वह दो नाजुक सींग सरीखे अंगों से रास्ते का अनुमान लगाता है और पतली सींक पर नहीं गिरता। मेरी खोजयुक्त गाड़ी के टायरों में ऐसा प्रबंध होगा कि वे कीचड़ या पथरीली सड़कों पर नहीं फिसलेगी। प्रयोग की सफलता तक मैं अधिक खुलासा नहीं कर सकता। मैं ऐसी प्रविधि विकसित करने की राह पर भी हूं जिससे जीवन में काफी कुछ सीख चुके मृत व्यक्तियों के मस्तिष्क को बच्चों में प्रतिस्थापित किया जा सकेगा। इससे बच्चे उस व्यक्ति के बराबर ज्ञानयुक्त होंगे। आगे उनके जीवन में मस्तिष्क लगातार सीखता रहेगा। इस प्रकार मानव मस्तिष्क समृद्ध होता चला जाएगा। मुझे पता चला है कि रोबोट में कुछ इस तरह का प्रयोग किया जा चुका है पर मेरा प्रयोग मनुष्यों में होगा। 
आपको ऐसी नई खोजों की प्रेरणा कहां से मिलती है, कौन मदद करते हैं ? 
मेरे पिता मेरे प्रेरणा श्रोत हैं। स्कूल में भौतिकी प्रवक्ता श्याम दत्त चौधरी से भी मदद मिलती है। मैं रात्रि में केवल तीन-चार घंटे ही सोता हूं। स्कूल के अलावा हर रोज दो घंटे होमवर्क आदि के बाद मेरा पूरा समय अपनी खोजों के बारे में सोचने में ही जाता है। कई बार रात में सोते हुए सपने में भी मैं स्वयं को कुछ नया करते हुए पाता हूं। इस कारण हाईस्कूल बोर्ड परीक्षा में मैं केवल 55 फीसद अंक ही प्राप्त कर पाया। 
भविष्य में क्या बनना चाहते हैं, सरकार से कोई अपेक्षा ? 
मैं भविष्य में कुछ नया करना चाहता हूं। पिता का ऑटो गैराज अच्छा चलता है। मुझ पर पैसे कमाने की जिम्मेदारी नहीं है। मैं नौकरी नहीं करना चाहता। मेरा लक्ष्य दुनिया को कुछ नया देना है। अपनी सोच को वहां पहुंचाना चाहता हूं जहां कोई न पहुंचा हो। कोई जूते बनाने वाली कंपनी मेरी बिजली बनाने वाली खोज को आगे बढ़ाए तो ठीक, वरना मैं अपनी ऐसी जूता फैक्टरी खोलने पर विचार कर सकता हूं। सरकार से भी मेरी इस खोज के बाबत कोई अपेक्षा नहीं है। वाहनों को दुर्घटना से बचाने वाली खोज में लाखों रुपये की जरूरत पड़ेगी। उसमें कोई मदद करे तो जरूर स्वीकार करूंगा।
प्रस्तुति :  नवीन जोशी

Saturday, September 8, 2012

फिर भी ’हिमालय‘ सा अडिग है हिमालय


जन्म से गतिशीलता के बावजूद खड़ा है मजबूती से 

मौसम, आक्रमणकारियों से सुरक्षा तथा ‘वाटर टावर ऑफ एशिया’ के रूप में बड़ी भूमिका  

नवीन जोशी नैनीताल। किसी व्यक्ति के अडिग होने की तुलना हिमालय से की जाती है। उस हिमालय से जो अपने जन्म से ही गतिशील रहा है। 6.5 करोड़ वर्ष की आयु के बावजूद हिमालय दुनिया के युवा पहाड़ों में गिना जाता है। यह ‘वाटर टावर’ पूरे एशिया को पानी देता है। पूरे भारतीय उप महाद्वीप की साइबेरिया की ठंडी हवाओं और चीन, मंगोलिया जैसे उत्तरी आक्रमणकारियों से सुरक्षा के साथ ही यहां मानसून के जरिये अच्छी वष्रा कराकर मिट्टी में सोना उगा देता है। इसकी जैव विविधता का कोई सानी नहीं है।  
हिमालय की महिमा युग-युगों से गाई गई है। महाकवि कालीदास ने अपनी कालजयी रचना कुमारसंभव में इसे नगाधिराज यानी पर्वतों का राजा बताया है। कुमाऊं विवि के विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो. चारु चंद्र पंत बताते हैं कि हिमालय का जन्म तत्कालीन टेंथिस सागर में 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व एशियाई एवं भारतीय टेक्टोनिक प्लेट के टकराव से हुआ। भारतीय प्लेट आज भी हर वर्ष 55 मिमी प्रति वर्ष की दर से उत्तर की ओर गतिमान है। लिहाजा इसमें तीन स्तरों टेंथियन हिमालय, ट्रांस हिमालय, उच्च हिमालय, मध्य हिमालय एवं सब हिमालय यानी शिवालिक के बीच क्रमश: आईटीएसजेड, एमसीटी यानी मेन सेंट्रल थ्रस्ट व एमबीटी यानी मेन बाउंड्री थ्रस्ट के आसपास धरती की सतह पर भूस्खलन, भूकंप आदि के बड़े खतरे विद्यमान हैं। ये सभी थ्रस्त अरुणाचल से कश्मीर तक जाते हैं, और उत्तराखंड में ये सभी मौजूद हैं। गतिशीलता के कारण एक ओर पहाड़ ऊंचे उठते जा रहे हैं, वहीं पानी इसके ठीक उलट अपने प्राकृतिक प्रवाह के जरिये पहाड़ों को काटकर सागर में बहाकर ले जाने पर आमादा है। इसके बावजूद हिमालय ‘हिमालय’ की तरह ही सीना तान कर हर तरह के खतरे को झेलने को तैयार रहता है। प्रो. पंत हिमालय की भूमिका पर कहते हैं कि यदि हिमालय न होता तो भारतीय उप महाद्वीप में मानसून ही न होता। साथ ही साइबेरिया की ठंडी हवाएं यहां भी पहुंचतीं और यहां जीवन अत्यधिक कठिन होता। इसी के कारण मंगोलिया व चीन की ओर से कभी आक्रमणकारी इस ओर रुख नहीं कर पाये। लिहाजा हिमालय की भूमिका को समझते हुए इसके संरक्षण के लिये पूरे देश और भारतीय प्रायद्वीप के देशों को प्रयास करने चाहिए। 

गजब की जैव विविधता है हिमालय में  

नैनीताल। हिमालय क्षेत्र में गजब की जैव विविधता के दर्शन होते हैं। हिमालय पर शोध कर चुके गोविंद बल्लभ पंत पर्यावरण संस्थान कुल्लू मनाली के प्रभारी वैज्ञानिक डा. एसएस सामंत के हवाले से कुमाऊं विवि के वनस्पति विज्ञान के प्रो. ललित तिवारी बताते हैं कि हिमालय में सर्वाधिक 1,748 औषधीय पौधों, 300 स्तनधारी, 1000 चिड़ियों, 175 सरीसृपों, 105 उभयचरों, 270 मछलियों, 816 वृक्षों, 675 जंगली फलों, 750 आर्किड आदि की प्रजातियां विद्यमान हैं। यहां दुनिया के दूसरे सबसे बड़े ग्लेशियर सियाचिन सहित 1,500 ग्लेशियर ओर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट भी स्थित है। प्रो. तिवारी के अनुसार 300 वृक्ष, 350 फर्न एवं 600 मॉश प्रजातियां उत्तराखंड के हिमालय में मिलती हैं।