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Monday, May 26, 2014

अब मोदी की बारी है......

बंबई प्रांत के मेहसाणा जिले के बड़नगर कसबे में एक बेहद साधारण परिवार में जन्मे नरेंद्र भाई मोदी ने आखिर देश के 15वें और पूर्ण बहुमत के साथ पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण कर ली है।  उनके बारे में कहा जाता है कि वह किसी जमाने में अपने बड़े भाई के साथ चाय की दुकान चलाते थे, और अब अपने प्रांत गुजरात में जीत की हैट-ट्रिक जमाने और रिकार्ड चौथी बार कार्यभार संभालने के बाद उन्हें भाजपा की ओर से पार्टी के भीष्म पितामह कहे जाने वाले लाल कृष्ण आडवाणी पर तरजीह देकर प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया गया, और अब पूरे देश की जनता ने चुनाव पूर्व व बाद के अनेकों सर्वेक्षणों को झुठलाते हुए प्रचंड बहुमत के साथ अविश्वसनीय जीत दिला कर उन्हें स्वीकार करते हुए अपना काम कर दिया है, और अब उमींदों को पूरा करने की मोदी की बारी है। मोदी ने अपनी जीत के बाद पहले ट्वीट में 'INDIA HAS WON' कहकर और संसद को दंडवत प्रणाम कर अपना सफर शुरू करते हुए  इसकी उम्मींद भी जगा दी है। ऐसे में उनकी ताजपोशी  के साथ उनका भविष्य में देश को 'विश्व का अग्रणी देश बनाने का दावा' भी विश्वसनीय लगने लगा है।

पूर्व आलेख :
राजनीति में वही बेहतर राजनीतिज्ञ कहलाता है जो भविष्यदृष्टा होता है, यानी मौजूदा वक्त की नब्ज से ही भविष्य की इबारत लिख जाता है। भाजपा के सबसे  वरिष्ठ नेता आडवाणी के संदर्भ में बात करें तो ‘अटल युग’ में ‘मोदी’ नजर आने वाले आडवाणी देश के उप प्रधानमंत्री पद पर ही ठिठक जाने के बाद ‘अटल’ बनने की कोशिश में जिन्ना की मजार पर चादर चढ़ाने जा पहुंचे थे। इसका लाभ जितना हो सकता था वह यही है कि वह कथित धर्म निरपेक्ष दलों द्वारा प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी से बेहतर दावेदार कहे जाने के भुलावे में थे। उनके साथ आम यथास्थितिवादी और कांग्रेस-भाजपा को एक-दूसरे की ए या बी टीम कहने वालों में यह विश्वास भी था कि देश की व्यवस्था जैसी है, थोड़े-बहुत परिवर्तनों के साथ यथावत चलती रहेगी।

आडवाणी के इसी नफे-नुकसान के बीच से मोदी पैदा हुए। उनके आने से इस व्यवस्था से विश्वास खो चुकी जनता में नया विश्वास पैदा हुआ कि वही हैं जो मौजूदा (कांग्रेस-भाजपा की) व्यवस्था को तोड़कर और यहां तक कि भाजपा से भी बाहर निकलकर, और कहीं, राष्ट्रपिता गांधी के देश की आजादी के बाद कांग्रेस को भंग करने के साथ ही दिए गए वक्तव्य ‘इस देश को कोई उदारवादी तानाशाह ही चला सकता है’ की परिकल्पना को भी साकार करते नजर आते हैं। इसी कारण प्रधानमंत्री पद पर देशवासियों ने अन्य उम्मींदवारों अरविन्द केजरीवाल और राहुल गांधी को कोई ख़ास तवज्जो नहीं दी।

राष्ट्रीय राजनीति में अपना कमोबेश पहला कदम बढ़ाते हुए मोदी ने दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कामर्स में छात्रों के समक्ष विकास की राजनीति को देश के भविष्य की राजनीति करार देते हुए अपने ‘वाइब्रेंट गुजरात’ का मॉडल पेश कर अपने 'मिशन 272+' की शुरुवात की। वह संभवतया पहले नेता होंगे, जो युवकों से अपनी पार्टी की विचारधारा से जुड़ने का आह्वान करने के बजाय उनसे वोट बैंक व जाति तथा धर्मगत राजनीति छोड़ने की बात कहते हैं, और साथ ही उन्हें आर्थिक गतिशीलता का विकल्प भी दिखाते हैं। मजेदार बात यह भी है कि उनका विकास का मॉडल कमोबेस देश की मौजूदा पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का वही मॉडल है, जिसकी खूब आलोचना हो रही है, लेकिन वह विकास की इस दौड़ में सबको शामिल करने का संभव तरीका सुझाते हुए विश्वास जगाते हैं कि कैसे मुट्ठी भर लोगों की जगह सबको नीचे तक लाभ दिया जा सकता है। ऐसा वह हवा-हवाई भी नहीं कह रहे, इसके लिए वह अपने गुजरात और भारत देश के विकास का तुलनात्मक विवरण भी पेश करते हैं। वह स्वयं सांप्रदायिक नेता कहलाए जाने के बावजूद अपने राज्य में हर जाति-वर्ग का वोट हासिल कर ऐसा साबित कर चुके हैं। उन्होंने अपने राज्य में चलने वाली ‘खाम’ यानी क्षत्रिय, आदिवासी और मुसलमानों के गठबंधन की परंपरागत राजनीति के चक्रव्यूह को तोड़ा है। यह सब जिक्र करते हुए वह सफल प्रशासक के रूप में अपनी विकास, प्रबंधन व राजनीति की साझा समझ से प्रभावित करते हुए छात्रों-युवाओं की खूब तालियां बटोरते हैं।

क्या फर्क है गुजरात और भारत में। गुजरात में किसी का तुष्टीकरण नहीं होता, इसलिए वहां ‘सांप्रदायिक’ सरकार है। देश में एक धर्म विशेष के लोगों की लगातार उपेक्षा होती है। वहां सत्तारूढ़ पार्टी अपना हर कदम मात्र एक धर्म विशेष के लोगों के तुष्टीकरण के लिए उठाती है, बावजूद वह ‘धर्मनिरपेक्ष’ है। गुजरात में गोधरा कांड हुआ, इसलिए वहां का नेता अछूत है, हम उसे स्वीकार नहीं कर सकते। लेकिन देश के नेता की नीतियों से कृषि प्रधान देश के सैकड़ों किसानों ने आत्महत्या कर ली, हजारों युवा बेरोजगारी के कारण मौत को गले लगा रहे हैं। बेटियों-बहनों से बलात्कार रुक नहीं पा रहे हैं। महंगाई दो जून की रोटी के लिए मोहताज कर रही है। भ्रष्टाचार जीने नहीं दे रहा। कैग भ्रष्टाचार के आंकड़े पेश करते थक गया है, इतनी बड़ी संख्याएं हैं कि गिनती की सीमा-नील, पद्म, शंख तक पहुंच गई हैं। और अब तो केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन भी चालू वित्त वर्ष में देश की आर्थिक वृद्धि दर के विनिर्माण, कृषि एवं सेवा क्षेत्र के खराब प्रदर्शन के चलते एक दशक में सर्वाधिक घटकर पांच प्रतिशत पर आने का अनुमान लगा रहा है। बावजूद यह विकास की पक्षधर सरकार है, जिसके अगुवा देश के सर्वश्रेष्ठ अर्थशास्त्री हैं। वह न होते तो पता नहीं कैसे हालात होते। शायद इसीलिए आगे हम उनके राजकुमार में ही अपना अगला प्रधानमंत्री देख रहे हैं। हमें सड़क से, गांव से निकला व्यक्ति अपना नेता नहीं लग सकता। शायद हमारी मानसिकता ही ऐसी हो गई है, या कि ऐसी बना दी गई है।

विरोध से भी मजबूत होते जाने की कला 

उल्लेखनीय है की संसदीय चुनावों से पहले देश में विरोधियों के अनेक स्तरों पर यह बहस चल रही थी कि आखिर मोदी ही क्यों बेहतर हैं। लेकिन विपक्ष को वह कत्तई मंजूर नहीं थे। हर विपक्षी पार्टी उन्हें रोकने की जुगत में लगी थी, और दावा कर रही थी की वही मोदी को रोक सकती है। उनका मानना है मोदी देश के प्रधानमंत्री नहीं हो सकते। कतई नहीं हो सकते। क्यों ? इस प्रश्न का उत्तर उनके धुर विरोधियों के पास ‘गोधरा’ के अलावा कोई दूसरा नहीं है। विपक्षी कांग्रेस सहित उनके एनडीए गठबंधन की अन्य पार्टियों के साथ ही मीडिया को भी वह खास पसंद नहीं आते। जब भी उनका नाम उनके कार्यो के साथ आगे आता है, या कि भाजपा उन्हें अपना प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताती है, तो विपक्षी दलों के साथ ही दिल्ली में बैठी मीडिया को गुजरात का ‘2002 का गोधरा’ याद आ जाता है, लेकिन कभी दिल्ली में बैठकर भी ‘1984 की दिल्ली’ याद नहीं आती, हालिया दिनों का मुजफ्फरनगर भी भुलाने की कोशिश की जाती है। दिल्ली के श्रीराम कॉलेज के गेट के बाहर भी दिल्ली के छात्र गुटों को गुजरात के दंगों के कथित आरोपी का आना गंवारा नहीं, लेकिन उन्हें दिल्ली के दंगों की याद नहीं है। फिर भी वह कहते हैं, उनका विरोध प्रायोजित नहीं है।
हालिया गुजरात विधान सभा चुनावों के दौरान विपक्षी कांग्रेस पार्टी को गुजरात में कुपोषित बच्चे व समस्याग्रस्त किसान फोटो खिंचवाने के लिए भी नहीं मिलते। लिहाजा मुंबई के कुपोषण से ग्रस्त बच्चों और राजस्थान के किसानों की फोटो मीडिया में छपवाई जाती हैं, वह विपक्षी पार्टी के प्रायोजित विज्ञापन हैं, ऐसा छापने से हमें कोई रोक नहीं सकता। पर हम जो लिखते हैं, दिखाते हैं, क्या वह भी प्रायोजित है। नहीं, तो हम एकतरफा क्यों दिखाते हैं। क्यों विपक्ष की भाषा ही बोलते हुए हमारी सुई बार-बार ‘गोधरा’ में अटक जाती है। हम गुजरात चुनाव के दौरान ही गुजरात के गांव-गांव में घूमते हैं। वहां के गांव देश के किसी बड़े शहर से भी अधिक व्यवस्थित और साफ-सुथरे हैं। हम खुद टीवी पर अपने गांवों-शहरों के भी ऐसा ही होने की कल्पना करते हैं। गुजरात में क्या हमें आज कहीं ‘गोधरा’ नजर आता है, या कि गुजरात तुष्टीकरण की राजनीति के इतर सभी गुजरातियों को एक इकाई के रूप में साथ लेकर प्रगति कर रहा है। गुजरात ने जो प्रगति की है, वह किसी दूसरे देश से आए लोगों ने आकर या किसी दूसरे देश के कानूनों, व्यवस्थाओं के जरिए नहीं की है, उन्हें एक अच्छा मार्गदर्शक नेता मिला है, जिसकी प्रेरणा से आज वह ऐसे गुजरात बने हैं, जैसा देश बन जाए तो फिर ‘विश्वगुरु’ क्या है, देश का गौरवशाली अतीत क्या है, हम निस्सदेह विकास की नई इबारत लिख सकते हैं।
तो यह डर किसका है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि हम मोदी के जादू से डरे हुए हैं, वह एक बार सत्तासीन हो जाते हैं तो जीत की हैट-ट्रिक जमा देते हैं, लोगों के दिलों पर छा जाते हैं। कहीं दिल्ली पर भी सत्तासीन हो गए तो फिर उन्हें उतारना मुश्किल हो जाएगा। हमारी बारी ही नहीं आएगी। यह डर उस विकास का तो नहीं है, जो मोदी ने गुजरात में कर डाला है, कि यदि यही उन्होंने देश में कर दिया तो बाकी दलों की गुजरात की तरह ही दुकानें बंद हो जाएंगी। या यह डर उस ‘सांप्रदायिकता’ का है, जिससे गुजरात एक इकाई बन गया है। या उस स्वराज और सुराज का तो नहीं है, जिससे गुजरात के गांव चमन बन गए हैं। उस कर्तव्यशीलता का तो नहीं है, जिससे गुजरात के किसान रेगिस्तान में भी फसलें लहलहा रहे हैं, गुजरात के युवा फैक्टरियों में विकास की नई इबारत लिख रहे हैं। गुजरात बिजली, पानी से नहा रहा है। 
या यह डर मोदी के उस साहस से है, जिसके बल पर मोदी चुनाव परिणाम आने के तत्काल बाद अपनी जीत के अंतर को कम करने वाले अपने धुर विरोधी हो चुके राजनीतिक गुरु केशुभाई से आशीर्वाद लेने उनके घर जाते हैं। प्रधानमंत्री पद पर नाम  घोषित किये  जाने के बाद सबसे पहले नाराजगी जताने वाले लाल कृष्ण आडवाणी के घर की ही राह पकड़ते हैं। उन्हें अपना सबसे प्रबल विरोध कर रहे आडवाणी के सार्वजनिक मंच पर पांव छूने से भी कोई हिचक नहीं है। उनके पास ‘ऐसा या वैसा होना चाहिए’ कहते हुए शब्दों की लफ्फाजी से भाषण निपटाने की मजबूरी की बजाए अपने किए कार्य बताने के लिए हैं। वह अपने किये कार्यों पर घंटों बोल सकते हैं, उनके समक्ष अपने ‘गौरवमयी इतिहास’ शब्द के पीछे अपनी वर्तमान की विफलताऐं छुपाने की मजबूरी कभी नहीं होती। वह पानी से आधा भरे और आधे खाली गिलास को आधा पानी और आधा हवा से भरे होने की दृष्टि रखते हैं, और देश की जनता और खासकर युवाओं को दिखाते हैं। ऐसी दृष्टि उन्होंने ‘सत्ता के पालने’ में झूलते हुए नहीं अपने बालों को अनुभव से पकाते हुए प्राप्त की है। बावजूद उनमें युवाओं से कहीं ओजस्वी जोश है, उन्हें देश वासियों को भविष्य के सपने दिखाने के लिए किसी दूसरी दुनिया के उदाहरणों की जरूरत नहीं पड़ती। वह पड़ोसी देश पाकिस्तान सहित पूरे विश्व को ललकारने की क्षमता रखते हैं। वह अपने घर का उदाहरण पेश करने वाले अपनी ही गुजरात की धरती के महात्मा गांधी व सरदार पटेल जैसे देश के गिने-चुने नेताओं में शुमार हैं, जो केवल सपने नहीं दिखाते, उन्हें पूरा करने का हुनर भी सिखाते हैं। इसके लिए उन्हें कहीं बाहर से कोई शक्ति या जादू का डंडा लाने की जरूरत भी नहीं होती, वरन वह देश के युवाओं व आमजन में मौजूद ऐसी शक्ति को जगाने का ‘जामवंत’ सा हुनर रखते हैं, और स्वयं अपनी शक्तियों को जगाकर ‘हनुमान’ भी हो जाते हैं। उन्हें भ्रष्टाचार, अकर्मण्यता, नाकारापन के साथ भूख, महंगाई, बलात्कार, लूट, चोरी, डकैती जैसी अनेकों समस्याओं से घिरे देश के एक छोटे से प्रांत में इन्हीं कमजोरियों से ग्रस्त जनता, राजनेताओं और नौकरशाहों से ही काम निकालते हुऐ विकास का रास्ता निकालना आता है, जिसके बल पर वह गुजरात के रेगिस्तान में भी दुनिया के लिए फसलें लहलहा देते हैं। वह मौजूदा शक्तियों, कानूनों से ही आगे बढ़ने का माद्दा रखते हैं, और मौजूदा कानूनों से ही देश को आगे बढ़ाने का विश्वास जगाते हैं। वह नजरिया बदलने का हुनर रखते हैं, नजरिया बदलना सिखाते हैं, विकास से जुड़ी राजनीति के हिमायती हैं। एक कर्मयोगी की भांति अपने प्रदेश को आगे बढ़ा रहे हैं, और अनेक सर्वेक्षणों में देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में सर्वाधिक पसंदीदा राजनेता के रूप में उभर रहे हैं। 

लिहाजा, उनका विरोध होना स्वाभाविक ही है। सरहद के पार भी देश के अगले प्रधानमंत्री के रूप में नाम आने पर सर्वाधिक चिंता उन्हीं के नाम पर होनी तय है, और ऐसा ही देश के भीतर भी हो सकता है। लेकिन जनता दल-यूनाइटेड सरीखे दलों को समझना होगा कि अपना कद छोटा लगने की आशंका में आप दूसरों के बड़े होते जाने को अस्वीकार नहीं कर सकते। वरन राजनीतिक तौर पर भी यही लाभप्रद होगा कि आप बड़े पेड़ के नीचे शरण ले लें, इससे उस बड़े पेड़ की सेहत को तो खास फर्क नहीं पड़ेगा, अलबत्ता आप जरूर आंधी-पानी जैसी मुसीबतों से सुरक्षित हो जाएंगे। आप जोश के साथ बहती नदी पर चाहे जितने बांध बनाकर उसे रोक लें, लेकिन उसे अपना हुनर मालूम है, वह बिजली बन जाएगा, रोके जाने के बाद भी अपना रास्ता निकालते हुए सूखी धरती को भी हरीतिमा देता आगे बढ़ता जाएगा। नरेंद्र भाई मोदी भी ऐसी ही उम्मीद जगाते हैं। उनमें पहाड़ी नदी जैसा ही जोश नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 

मोदी के मंत्र:

  • तरक्की के लिए कार्यकुशलता, तेजी व व्यापक नजरिया जरूरी।
  • उत्पाद की गुणवत्ता और पैकेजिंग जरूरी। हमें उत्पादन बड़ाना है और ‘मेड इन इंडिया’ टैग को हमें क्वालिटी का पर्याय बनाना है।
  • युवा जाति-धर्मगत व वोट बैंक की राजनीति से बाहर निकलें। तरक्की का रास्ता पकड़ें। 
  • 21वीं सदी भारत की। भारत अब सपेरों का नहीं ‘माउस’ से दुनिया जीतने वाले युवाओं का देश है। 
  • विकास से ही देश में आएगा विराट परिवर्तन, विकास ही है सभी समस्याओं का समाधान।
  • 60 साल पहले स्वराज पाया था, अब सुराज (गुड गर्वनेंस) की जरूरत।
  • आशावादी बनें, न कहें आधा गिलास भरा व आधा खाली है, कहें आधा गिलास पानी और आधा हवा से भरा है।

मोदी का गुजरात मॉडलः

  • गुजरात ने पशुओं की 120 बीमारियां खत्म की, जिससे दूध उत्पादन 80 फीसदी बढ़ा। गुजरात का दूध दिल्ली से लेकर सिंगापुर तक जाता है। 
  • गुजरात में एक माह का कृषि महोत्सव होता है। यहां की भिंडी यूरोप और टमाटर अफगानिस्तान के बाजार में भी छाये रहते हैं। 
  • गुजरात में 24 घंटे बिजली आती है। नैनो देश भर में घूमकर गुजरात पहुंच गई। गुजरात में बने कोच ही दिल्ली की मैट्रो में जुड़े हैं। 
  • गुजराती सबसे बढ़िया पर्यटक हैं। वह पांच सितारा होटलों से लेकर हर जगह मिलते है।
  • गुजरात दुनिया का पहला राज्य है जहां फोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी है। फोरेंसिक साइंस आज अपराध नियंत्रण की पहली जरूरत है। 
  • गुजरात में देश की पहली सशस्त्र बलों की यूनिवर्सिटी है। गुजरात के पास तकनीक की जानकार सबसे युवा पुलिस-शक्ति है।
  • पूरा देश गुजरात में बना नमक इस्तेमाल करता है।

भारत के 15वें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश के नागरिकों के लिए अपनी आधिकारिक वेबसाइट http://www.pmindia.nic.in/ पर सबसे पहला संदेश...

भारत और पूरे विश्व के प्रिय नागरिको, नमस्ते

भारत के प्रधानमंत्री की आधिकारिक वेबसाइट पर आपका स्वागत है।

16 मई 2014 को भारत के लोगों ने जनादेश दिया। उन्होंने विकास, अच्छे प्रशासन और स्थिरता के लिए जनादेश दिया। अब, जबकि हम भारत की विकास यात्रा को एक नई ऊंचाई पर ले जाने में जुट जाने वाले हैं, हम आपका साथ, आशीर्वाद और सक्रिय भागीदारी चाहते हैं। हम सब मिलकर भारत के शानदार भविष्य की रूपरेखा लिखेंगे। आइए, मिलकर एक मजबूत, विकसित, सभी को सम्मिलित भारत का सपना देखें। एक ऐसे भारत का सपना, जो पूरी दुनिया के शांति और विकास के सपने में सक्रिय भागीदारी निभाएगा।
मैं इस वेबसाइट को भारत हमारे बीच संवाद एक महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में देखता हूं। पूरी दुनिया के लोगों से संवाद के लिए तकनीक और सोशल मीडिया की ताकत में में मेरा दृढ़ विश्वास है। मैं उम्मीद करता हूं कि यह माध्यम सुनने, सीखने और एक-दूसरे के विचार बांटने के मौके पैदा करेगा।

इस वेबसाइट के जरिए आपको मेरे भाषणों, कार्यक्रमों, विदेश यात्राओं और बहुत सी अन्य बातों की ताजा जानकारी मिलती रहेगी। मैं आपको यह भी बताता रहूंगा कि भारत सरकार किस तरह की पहलें कर रही है।

आपका
नरेंद्र मोदी

Monday, March 3, 2014

मुरली मनोहर जोशी और एनडी तिवारी बदल सकते हैं नैनीताल के चुनावी समीकरण !

-मोदी के लिए बनारस छो़ड़ नैनीताल आने का है मुरली मनोहर जोशी पर दबाव
-रोहित को पुत्र स्वीकारने के बाद राजनीतिक विरासत भी सोंप सकते हैं एनडी तिवारी
नवीन जोशी, नैनीताल। जी हां, अब तक कांग्रेस के राजकुमार केसी सिंह ‘बाबा’ के कब्जे वाली नैनीताल-ऊधमसिंहनगर संसदीय सीट एक बार फिर प्रदेश की सबसे बड़ी वीवीआईपी व हॉट सीट हो सकती है। अभी भले यहां कांग्रेस से बाबा या राहुल गांधी के खास प्रकाश जोशी तथा भाजपा से पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी, बची सिंह रावत और बलराज पासी में से किसी के लोक सभा चुनाव लड़ने के भी चर्चे हों, लेकिन बेहद ताजा राजनीतिक घटनाक्रमों को देखा जाए तो इस सीट से भाजपा अपने त्रिमूर्तियों में शुमार मुरली मनोहर जोशी को चुनाव मैदान में उतार सकती है। जोशी को इस हेतु मनाया जा रहा है। वहीं पूर्व सीएम एनडी तिवारी अपने जैविक पुत्र रोहित शेखर को स्वीकारने के बाद यहां से अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं। उनके जल्द ही संसदीय क्षेत्र का तीन दिवसीय कार्यक्रम भी तय बताया जा रहा है।
देश के बदले राजनीतिक हालातों में यूपी भाजपा के मिशन-272 प्लस की मुख्य धुरी माना जा रहा है। भाजपा मान रही है कि ‘मुजफ्फरनगर’ के हालिया हालातों और कल्याण सिंह व उनकी पार्टी के औपचारिक तौर पर पार्टी में आने के बाद पश्चिमी यूपी में भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण होना तय हो गया है। मध्य यूपी में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व उपाध्यक्ष राहुल गांधी का प्रभाव क्षेत्र मानते हुए भाजपा जबरन बहुत जोर लगाने के पक्ष में नहीं है, ऐसे में पूवी यूपी को साधने के लिए भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के लिए मुरली मनोहर जोशी की बनारस सीट खाली कराने का न केवल पार्टी वरन संघ की ओर से भी भारी दबाव अब खुलकर सामने आ गया है। दूसरी ओर जोशी लोस चुनाव लड़ने पर अढ़े हुए हैं। ऐसे में उन्हें काफी समय से नैनीताल सीट के लिए मनाये जाने की चर्चाएं अब सतह पर आने लगी हैं। गौरतलब है कि जोशी मूलतः उत्तराखंड के ही अल्मोड़ा के निवासी हैं, और 1977 में भारतीय लोकदल से अल्मोड़ा के सांसद रह चुके हैं। उनके नैनीताल आने की सूरत में माना जा रहा है कि पार्टी के यहां से तीन प्रबल दावेदार भगत सिंह कोश्यारी, बची सिंह रावत व बलराज पासी के होने की वजह से उठ रही भितरघात की संभावनाएं क्षींण हो जाएंगी। वह नैनीताल से भली प्रकार वाकिफ भी हैं, और संसदीय क्षेत्र में ब्राह्मण मतों का ध्रुवीकरण भी कर सकते हैं, लिहाजा वह नैनीताल के लिए मान भी सकते हैं। भाजपा के लिए नैनीताल का संसदीय इतिहास भी बेहतर नहीं रहा है। यहां भाजपा के केवल बलराज पासी 1991 की रामलहर ओर  इला पंत 1998 में जीते भी तो जीत का अंतर करीब महज नौ और 12 हजार मतों का ही रहा, और आगे बाबा इस अंतर को कांग्रेस के पक्ष में बढ़ाते हुए 2004 में 40 हजार और 2009 में 88 हजार कर चुके हैं। ऐसे में यह सीट भाजपा के लिए कठिन है और इसे पार्टी का कोई हैवीवेट प्रत्याशी ही पाट सकता है।
दूसरी ओर एनडी तिवारी के लिए यह सीट 1980 से अपनी सी रही है। तिवारी ने यहां से 1980 में जीत हासिल की, 84 में उनके खास सत्येंद्र चंद्र गु़िड़या जीते और आगे 1996 में तिवारी ने अपनी तिवारी कांग्रेस के टिकट पर तथा 99 में पुनः कांग्रेस से जीत हासिल की। उल्लेखनीय है कि तिवारी हाल में कांग्रेस पार्टी में रहते हुए भी सपा से नजदीकी बढ़ा चुके हैं, और ताजा घटनाक्रम में उन्होंने रोहित शेखर को एक दशक लंबी चली कानूनी लड़ाई के बाद अपना पुत्र मान लिया है। उनका तीन दिवसीय नैनीताल दौरा तीन जनवरी से तय भी हो गया था। ऐसे में आने वाले कुछ दिन इस संसदीय सीट पर नए गुल भी खिला सकते हैं।

रावत, तिवारी, जोशी का भी अलग राजनीतिक त्रिकोण

नैनीताल। हालांकि यह अभी राजनीतिक भविष्य के गर्भ में है, लेकिन अटकलें सही साबित हुईं तो उत्तराखंड में हरीश रावत, एनडी तिवारी और मुरली मनोहर जोशी का अलग राजनीतिक त्रिकोण भी चर्चाओं में रहना तय है। रावत और तिवारी का संघर्ष हमेशा से प्रदेश की राजनीति में दिखता रहा है। 2002 में तिवारी के नेतृत्व वाली तिवारी सरकार के पूरे कार्यकाल में यह संघर्ष खुलकर नजर आया। रावत जिस तरह तिवारी को परेशान किए रहे, ऐसे में रावत की ताजपोशी तिवारी को कितना रास आ रही होगी, समझना आसान है। वहीं रावत एवं जोशी के बीच उनके मूल स्थान अल्मोड़ा में 1980 से जंग शुरू हुई थी, जब युवा रावत ने तब के सिटिंग सांसद जोशी को 80 और 84 के लगातार दो चुनावों में हराकर अल्मोड़ा छोड़ने पर ही मजबूर कर दिया था।
यह भी पढ़ें: तिवारी के बहाने 

Thursday, January 31, 2013

उत्तराखंड भाजपाः कहां है राष्ट्रीय सोच


भारतीय जनता पार्टी एक राष्ट्रीय और धार्मिक-सांस्कृतिक सोच वाली पार्टी कही जाती है। पूर्ववर्ती जनसंघ की तरह ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से नजदीकी को बिना गुरेज स्वीकारते हुए यह पार्टी धार्मिक व जातीय समरसता की बात करती है। संघ के कार्यक्रमों में इसके नेता, कार्यकर्ता जमीन पर एक पांत में बैठकर माघ के माह में खिचड़ी और बसंत पंचमी को खीर बनाने-खाने से भी गुरेज नहीं करते। यही नहीं वहां मुस्लिमों सहित अन्य धर्मों के लोगों की भी कम ही सही, लेकिन उपस्थिति रहती है, और इसी आधार पर वह विपक्ष के ‘सांप्रदायिक पार्टी’ के आक्षेपों की परवाह किए बगैर देश को राजनीतिक विकल्प देने के मार्ग पर भी नजर आती है। लेकिन यही पार्टी देश को धर्म और सांस्कृतिक सौहार्द की ‘गंगा-जमुनी’ तहजीब की प्रणेता गंगा-यमुना के मायके यानी उत्तराखंड में अपने चरित्र-पथ से बुरी तरह डिगी हुई नजर आती है। 
उत्तराखंड में पार्टी का जातीय व धार्मिक समरसता का स्वरूप शायद ही अपने सही अर्थों में कहीं दिखाई देता है। बल्कि वह यहां समरसता को ‘जातीय व क्षेत्रीय तुष्टीकरण’ में बदलती है और इस मायने में उत्तराखंड कांग्रेस की ‘बी’ टीम से अधिक नजर नहीं आती। शायद यही कारण हो कि उसे राज्य बनाने के बावजूद जनता से कभी अभीष्ट भरोसा नहीं मिल पाया। पार्टी सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री और विपक्ष में रहने पर नेता प्रतिपक्ष प्रदेश के एक मंडल-कुमाऊं से बनाती है तो पार्टी का अध्यक्ष दूसरे मंडल गढ़वाल से बनाया जाता है। यही नहीं इसके साथ यह भी होता है कि यदि एक महत्वपूर्ण पद पंडित बिरादरी के नेता को मिलता है तो दूसरे के लिए क्षत्रिय नेता की तलाश की जाती है। ऐसा ही इस बार पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए भी हुआ है। 
उत्तराखंड में गुटीय राजनीति में बंटी भाजपा यहां विधान सभा चुनावों में ‘खंडूड़ी है जरूरी’ का नारा चलाने के बाद कमोबेश खंडूड़ी की ही एक सीट के साथ अवपनी भी लुटिया डुबो बैठी। विपक्ष में बैठने को मजबूर हुई तो समय पर राज्य को नेता प्रतिपक्ष नहीं दे पाई। इस मामले में पार्टी की खूब थुक्का-फजीहत भी हुई। ऐसे ही अब नया प्रदेश अध्यक्ष चुनने की बारी आई तो पार्टी का सर्वानुमति से अध्यक्ष बनाने के दावे के साथ ही राज्य बनने के बाद से ही रही ऐसी परंपरा भी चकनाचूर कर डाली। प्रदेश अध्यक्ष के पद के लिए नेता प्रतिपक्ष के विरोधी मंडल और जाति के ही प्रत्याशी तलाशे जाने लगे। नेता प्रतिपक्ष कुमाऊं के पंडित बिरादरी से आने वाले अजय भट्ट हैं, लिहाजा तय माना गया कि प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी गढ़वाल के ही किसी क्षत्रिय क्षत्रप को दी जाएगी।ऐसे में एक जाति और मंडल विशेष (गढ़वाली क्षत्रिय) के पार्टी नेताओं को ही तरजीह दी जाने लगी। इसमें भी रोचक रहा कि एक जाति विशेष-‘रावत’ के ही पार्टी नेताओं के नाम आगे आने लगे। तीरथ सिंह रावत, ़ित्रवेंद्र सिंह रावत, धन सिंह रावत, मोहन सिंह रावत ‘गांववासी’ के नाम अध्यक्ष पद के लिए खासे चर्चा में रहे। गौरतलब है कि पूर्व में भी बची सिंह रावत पार्टी के अध्यक्ष रहे हैं। बहरहाल, अध्यक्ष पद के चुनावों में नौबत यहां तक आ गई कि तीरथ और त्रिवेंद्र दोनों ने पार्टी अनुशासन की धज्जियां उड़ाते हुए मैदान में एक साथ ताल ठोंक दी। 
हालांकि परदे के आगे चल रहे नेताओं के खेल के पीछे पार्टी के तीन ध्रुवों-कोश्यारी, खंडूड़ी व निशंक गुटों का परदे के पीछे चलता रहा। राजनीतिक बिसात में नित नए पाले और समीकरण बदलने में माहिर पार्टी के इन गुटीय नेताओं ने ऐसी-ऐसी चालें चलीं कि नतीजा किसी के पक्ष में नहीं जा पाया और राज्य बनने के बाद पहली बार ऐसी नौबत आयी कि तय समय पर चुनाव टालना पड़ गया। इस दौरान धुर विरोधी और एक-दूसरे को फूटी आंख न सुहाने वाले खंडूड़ी और निशंक धड़े गलबहियां डाले एक-साथ नजर आने लगे। उठा-पटक की इस जंग में कोश्यारी अकेले रहने के बावजूद केवल इसलिए मजबूत माने गए कि वह नेता प्रतिपक्ष के उलट क्षत्रिय बिरादरी से आते हैं। राजनाथ सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद तो उनके होंसले अपने पुराने संबंधों और राजनाथ के भी क्षत्रिय नेता होने के नाते बुलंद हो चले। ऐसे में यहां तक चर्चाएं चल पड़ीं कि कोश्यारी ही दुबारा प्रदेश अध्यक्ष बनेंगे। वह पूर्व में भी यह दायित्व संभाल चुके हैं। यदि ऐसा हुआ तो पार्टी के लिए बमुश्किल चुने गऐ नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट को बदलना भी मजबूरी हो जाएगा। ऐसे में स्वयं भट्ट इस कटु सच्चाई को स्वीकार करते हुए पार्टी के आदेश को सिरोधार्य बताकर पार्टी के भरोसेमंद सिपाही का तमगा हासिल में ही भलाई तलाशने लगे हैं। 
गौरतलब है कि पार्टी ऐसे जातीय समीकरणों को आजमाने का दंश यूपी में हुए हालिया विधानसभा चुनावों में भुगत चुकी है। जहां पार्टी ने एनआरएचएम के दागी बसपा मंत्री बाबूराम कुशवाहा और पूर्व में पार्टी छोड़ चुकी उमा भारती की पार्टी में मजबूती से वापसी करवाई, लेकिन चुनाव परिणामों में इस कवायद का कोई लाभ नहीं को नहीं मिल पाया। अब वहां पुराने साथी कल्याण सिंह की भी इसी जातीय वोटों के गुणा-भाग के आधार पर पार्टी में वापसी की गई है, किंतु आगे भी उसे इसका लाभ मिल पाएगा, कहना मुश्किल है। 
बहरहाल, प्रदेश में पार्टी के अगले सिपहसालार पर बना सस्पेंस तो देर-सबेर समाप्त हो जाएगा। लेकिन पार्टी जनों के आपसी कच्चे-धागे जो इस प्रक्रिया में टूटे-उलझे हैं, वह आसानी से और जल्द सुलझ जाएंगे ऐसा कहना आसान नहीं है। अच्छा होता कि पार्टी उत्तराखंड या यूपी में इस तरह जातीय समीकरणों में उलझने से बेहतर अपनी राष्ट्रीय व बड़ी सोच प्रकट करते हुए क्षमताओं युक्त नेताओं को जिम्मेदारियां सोंपती, और अपनी जीत का मार्ग प्रशस्त करती। 

Tuesday, March 6, 2012

उत्तराखंड विधान सभा चुनाव की समीक्षा

उत्तराखंड में हुए विधान सभा चुनावों के परिणाम कई बातें साफ़ करने वाले हैं. पहली नजर में इन चुनावों में प्रदेश में न तो भ्रष्टाचार का मुद्दा चला है, और न ही अन्ना फैक्टर. लेकिन ऐसा नहीं है. असल में इस चुनाव मैं कुछ अपवादों को छोड़कर पार्टियों के जनाधार के साथ ही नेताओं की व्यक्तिगत छवि की भी परीक्षा हुयी है, और जनता ने उपलब्ध विकल्पों में से बेहतर को चुनने की कोशिश की है. इस प्रकार यह चुनाव काफी हद तक नेताओं को अपनी असल हैसियत बताने वाले साबित हुए हैं. और उम्मेंद की जा सकती है की भावी विधानसभा अपने पूर्व के स्वरुप से काफी बेहतर हो सकती है. 



मेरी इस मान्यता का सिरा इस तथ्य से भी जुदा है की परिणामों में भाजपा-कांग्रेस उमींदों के विपरीत केवल एक सीट के अंतर पर हैं, और दोनों में से कोई एक पूरी कोशिश के बावजूद ३६ के जादुई आंकड़े से बहुत आगे नहीं निकल सकता है, यानी विपक्ष भी मजबूत रहने वाला है. इसका अर्थ यह भी हुआ कि सरकार को अधिक सतर्कता से कार्य करना होगा. दूसरे चुनाव परिणाम इस तरह आये हैं कि दोनों प्रमुख दलों के पास सीमित विकल्प रह गए हैं. जिसकी भी सरकार बनेगी, उसे खुद से ज्यादा समर्थक दल अथवा निर्दलीयों को मंत्रिमंडल तथा सरकार में महत्व  देना होगा, तो भी सरकार की स्थिरता आशकाओं में घिरी होगी. कुछ दिन बात एक एंग्लो-इंडियन विधायक के मनोनयन के बाद स्थिति थोड़ी सहज हो सकती है. इसके साथ ही दोनों पार्टियों के लिए विधायकों में से ही किसी को मुख्यमंत्री बनाने की मजबूरी भी होगी. 

चुनावों में 'जनरल' काफी हद तक अपनी पार्टी को तो जंग जिता गए पर 'खंडूड़ी' खुद के लिए 'जनरल' साबित नहीं हो पाए और अपनी बाजी हार गए.  'खंडूड़ी है जरूरी' का नारा जितना प्रदेश और खासकर मैदानी जिलों में चला, उतना उनकी सीट कोटद्वार में नहीं चल पाया, ऐसे में यहाँ तक कहा जाने लगा कि शायद खंडूड़ी के पहले कार्यकाल में बजी 'सारंगी' को पूरा प्रदेश न सुन पाया हो पर कोटद्वार ने सुन लिया हो. उनकी हार से यहाँ तक कहा जाने लगा है-'खंडूड़ी नहीं रहे जरूरी', वहीँ निशंक पर लगे कुम्भ घोटाले के 'दागों' को डोईवाला की जनता ने माँनो 'दाग अच्छे हैं' कह दिया है. यह निशंक के कुशल राजनीतिक प्रबंधन का परिणाम भी कहा जा सकता है. 

कुमाऊँ में केवल सात विधानसभा क्षेत्रों, सोमेश्वर से अजय टम्टा, डीडीहाट से भाजपा के बिशन सिंह चुफाल, काशीपुर से भाजपा के हरभजन सिंह चीमा, जसपुर से कांग्रेस के शैलेंद्र मोहन सिंघल, अल्मोड़ा से मनोज तिवारी, बागेश्वर से चंदनराम दास एवं जागेश्वर से कांग्रेस के गोविंद सिंह कुंजवाल फिर जीत का शेहरा बंधा पाए। यहाँ 15 सीटों पर भाजपा कब्जा करने में सफल रही, जबकि कांग्रेस ने दस सीटों का आंकड़ा तेरह पर पहुंचाया है, लेकिन दिलचस्प बात यह रही कि वह भी अपनी पांच सीटों को बचा नहीं सकी। पहाड़ पर कांग्रेस और मैदान में भाजपा मजबूत हुई. 

राज्य के दूसरे चुनावों में भाजपा व कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर रही हैं और त्रिशंकु विधानसभा उभर कर आई है। सत्तारूढ़ दल भाजपा को 31 और कांग्रेस को 32 सीटें मिली हैं, और दोनों दल ३६ के जादुई आंकड़े से कुछ दूर रह गए हैं। भाजपा के लिए पंजाब व गोवा में सरकार बनाने का बहुमत मिलाने के साथ ही उत्तराखंड में 'एंटी इनकम्बेंसी' के बीच उम्मींद से बेहतर प्रदर्शन करने का संतोष होगा तो कांग्रेस मणिपुर के इतर एनी सभी राज्यों में हुए 'बज्रपात' जैसी स्थितियों से इतर यहाँ यूपी (28) से अधिक 32  सीटें प्राप्त कर एक सीट के अंतर से ही सही राज्य का सबसे बड़ा दल बनकर उभरी है.  700  से अधिक में से प्रदेश में जीते तीन निर्दलीय विधायक कांग्रेस के बागी हैं, लेकिन चुनाव में टिकट न देने वाली पार्टी के लिए उन्हें सत्ता हथियाने के लिए अपनाना 'थूक कर चाटने' जैसा होगा, लेकिन राजनीति में इसे 'सब चलता है' कहा जाता है. 

वर्तमान विधानसभा में तीसरी ताकत के रूप में मौजूद बहुजन समाज पार्टी व क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल को मतदाताओं ने नकार दिया है। बसपा को पांच सीटें गंवानी पड़ीं, जबकि यूकेडी के हाथ से दो सीटें छिटक गई। विधानसभा चुनाव 2007 में बसपा को आठ व उक्रांद को तीन सीटें मिली थीं, जबकि इस बार उक्रार्द का एक धड़ा-डी अस्तित्व विहीन हो गया है, जबकि दूसरे-पी ने केवल एक सीट जीतकर पार्टी का नामोनिशान मिटने से बचाया है. 

भाजपा सरकार के मुख्यमंती सहित पांच मंत्री मातबर सिंह कंडारी, त्रिवेंद्र सिंह रावत, प्रकाश पंत, दिवाकर भट्ट, बलवंत सिंह भौंर्याल  चुनावी रन में खेत रहे हैं हो  कांग्रेस  के तिलकराज बेहड़,  पूर्व मंत्री शूरवीर सिंह सजवाण, किशोर उपाध्याय, जोत सिंह गुनसोला, काजी निजामुद्दीन जैसे पांच दिग्गजों ने शिकस्त खाई है. वहीँ बसपा के मोहम्मद शहजाद व नारायण पाल, उक्रांद-पी के काशी सिंह ऐड़ी व पुष्पेश त्रिपाठी, रक्षा मोर्चा के टीपीएस रावत, केदार सिंह फोनिया, उत्तराखंड जनवादी पार्टी के मुन्ना सिंह चौहान और निर्दलीय यशपाल बेनाम को हार का सामना करना पड़ा है। उक्रांद के दूसरे धड़े 'डी' यानी डेमोक्रेटिक की 'पतंग' उड़ने से पहले ही कट गयी है. वहीँ 'पी' के कद्दावर नेता ऐड़ी मुख्य मुकाबले से बाहर तीसरे स्थान पर रह गए. विधान सभा अध्यक्ष हरबंश कपूर ने लगातार सातवी बार जीत का रिकार्ड कायम किया है.

कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी अपने खास प्रकाश जोशी को कालाढूंगी से नहीं जिता पाए तो विकास  पुरुष कहे जाने वाले 'एनडी' अपनी 'निरंतर विकास समिति' को कांग्रेस के हाथो 'बेचकर खरीदी गयी' तीन में से दो सीटें नहीं जीत पाए. उनके भतीजे मनीषी तिवारी गदरपुर में चौथे स्थान पर 'धकिया' दिए गए तो दून से हैदराबाद तक उनके हाथों 'मनपसंदों का विकास' कराने वाले पूर्व ओएसडी आर्येन्द्र शर्मा को भी मुंह की खानी पडी है.  अपने निजी हितों के आगे एनडी कितने 'बौने' हो सकते थे, यह इस चुनाव ने प्रदर्शित किया. चर्चा तो यह भी थी कि कांग्रेस कि सत्ता आने पर 'दो-ढाई वर्ष सीएम' बनाने की घोषणा कर चुके एनडी मनीषी से इस्तीफ़ा दिलाकर खुद चुनाव लड़ने की भी सोच रहे थे. 

कांग्रेस के बडबोले (छोटे से प्रदेश में डिप्टी सीएम का राग अलापने वाले) व हैट्रिक का सपना देख रहे बेहड़ की हार की पटकथा तो खैर अहिंसा दिवस के दिन रुद्रपुर में फ़ैली हिंसा के दौरान ही लिख दी गयी थी. बसपा के बड़ा ख्वाब देख रहे नारायण पाल का अपने भाई मोहन पाल के साथ विधान सभा पहुँचाने का ख्वाब भी जनता ने तोड़ दिया. वहीँ टिकट वितरण में सबको पछाड़ने वाले हरीश रावत पर अपनी वह सफलता अब आफत बन गयी है. वह अपने पुराने (अल्मोड़ा-भाजपा,कांग्रेस 3-3  सीटें) और नए (हरिद्वार-भाजपा 5, कांग्रेस-बसपा 3-3) दोनों राजनीतिक घरों में अपने प्रत्यासियों को चुनाव नहीं जिता पाए हैं.वर्तमान हालातों में उनका भी सीएम बनाने का ख्वाब टूट ही गया लगता है.

स्त्रीलिंगी गृह 'शुक्र' के राज वाले नए विक्रमी संवत ( शुक्र ही नए वर्ष के राजा और मंत्री हैं, लिहाजा महिलाओं को राजनीतिक सत्ता दिला सकते हैं) में अकेले नैनीताल जनपद से कांग्रेस की 'तीन देवियाँ' इंदिरा हृदयेश, अमृता रावत व सरिता आर्य विजय रही हैं, उनके साथ ही शैलारानी रावत कांग्रेस से तथा भाजपा से पूर्व मंत्री विजय लक्ष्मी बडथ्वाल भी जीती हैं, और पहली बार राज्य में महिला विधायको की संख्या एक बढ़कर पांच पहुंची है. इंदिरा ने तो 42,627 वोट प्राप्त कर रिकार्ड 23,583 मतों के अंतर से जीत दर्ज की है. वहीँ सरिता ने आजादी के बाद नैनीताल की पहली महिला विधायक और राज्य की पहली अनुसूचित वर्ग की महिला विधायक चुनकर इतिहास रच दिया है. अलबत्ता अमृता की जीत में उनके पति 'महाराज' का भी योगदान है. आगे इनमें से कोई महिला सत्ता शीर्ष पर पहुँच जाए तो आश्चर्य न कीजियेगा.

गोविन्द सिंह बिष्ट व खजान दास को भाजपा द्वारा विधान सभा का टिकट ही न दिए जाने और अब मातबर सिंह कन्दरे के अपने साधू भाई से अनपेक्षित चुनाव हार जाने के बाद प्रदेश में किसी भी शिक्षा मंत्री के चुनाव न जीत पाने का मिथक बरकरार रहा है. अब गंगोत्री में कांग्रेस प्रत्यासी विजय पाल सिंह सजवाण की जीत के बाद उन्हीं की पार्टी की सरकार बनाने का मिथक देखना बाकी है.

Friday, February 11, 2011

अटल खाद्यान योजना: एक तीर से कई शिकार, आगे और तीर-तलवार


अगला कदम-गांवों में मिनी सचिवालय
नैनीताल को मिलेगी झील के संरक्षण के लीऐ 48 करोड़ की योजना व टिहरी झील के साथ अन्तर्राष्ट्रीय जल क्रीड़ा प्रतियोगिता 
नवीन जोशी, नैनीताल। 'मिशन 2012" के 'चुनावी मोड" में जा चुकी भाजपा सरकार के तरकश से छूटा 'अटल खाद्यान्न योजना" का तीर आखिरी नहीं वरन पहला है, और आगे ऐसे कई तीर विपक्ष को भेदने के लिए निकलने वाले हैं, मुख्यमन्त्री निशंक ने योजना के शुभारंभ मौके पर इसके इशारे कर दिऐ हैं। जल्द सरकार न्याय पंचायत स्तर पर विकसित किऐ जा रहे अटल आदर्श गांवों को 'मिनी सचिवालय" का रूप देने जा रही है। नैनीताल को सरकार से चुनावी वर्ष में जल्द दो तोहफे मिलने जा रहे हैं, यह हैं नैनी झील के लिऐ करीब 47.96 करोड़ रुपऐ की झील संरक्षण परियोजना और दूसरी नई विकसित टिहरी झील के साथ साझे में अन्तरराष्ट्रीय जल क्रीड़ा प्रतियोगिता।
मुख्यमन्त्री डा. निशंक ने शुक्रवार को मुख्यालय में अटल खाद्यान्न योजना के शुभारंभ योजना पर इन योजनाओं का खुलासा भर किया। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार समाज के अंतिम व्यक्ति के दुख-दर्द में साझीदार बनने के मिशन पर चल रही है। पहले चिकित्सक न होते हुऐ भी 108 सेवा के माध्यम से सबको निःशुल्क चिकित्सा सुविधा दिलाई। दीर्घकालीन योजना के तहत गरीब मेधावी बच्चे भी डाक्टर बन सकें इसलिए केवल 15 हजार रुपऐ में एमबीबीएस कराने की व्यवस्था की। दूसरे चरण में स्नातक स्तर की निःशुल्क व्यवस्था की। आगे गांवों के विकास के लिए अटल आदर्श गांव स्थापित कर हर गांव में सड़क, मिनी बैंक स्थापित किये गऐ। आगे इन गांवों को 'मिनी सचिवालय" का रूप दिया जाऐगा। आयुक्त एवं डीएम यहां आकर ग्रामीणों की समस्याओं का स्थाई तौर पर निदान करेंगे। कहा कि अटल खाद्यान्न योजना भी इसी कड़ी में करीब निःशुल्क ही भोजन उपलब्ध कराने की योजना शुरू की जा रही है। उन्होंने नैनीताल झील के संरक्षण के लिए 48 करोड़ की परियोजना व शीघ्र अन्तराष्ट्रीय जल क्रीड़ा प्रतियोगिता आयोजीत करने का भी इरादा जताया।
एपीएल कोटे में होगी कटौती
नैनीताल। भले सरकार अभी राज्य के सभी बीपीएल व एपीएल उपभोक्ताओं को सस्ते राशन का लाभ देने की बात कर रही हो, लेकिन एक सवाल के जवाब में मुख्यमन्त्री ने यह इशारा भी कर दिया कि हर आगे हर एपीएल श्रेणी के उपभोक्ता को योजना का लाभ नहीं मिलेगा। सरकार डेढ़ लाख रुपऐ से कम आय के उपभोक्ताओं को शेष बीपीएल" श्रेणी में लाने जा रही है, उन्हें ही चार व छह रुपऐ प्रति किग्रा की दर से गेहूं व चावल मिलेगा। इस सीमा से ऊपर के उपभोक्ता लाभ से वंचित रहेंगे। 
विक्रेताओं का लाभांश नहीं घटने देंगे
नैनीताल। सस्ता गल्ला विक्रेताओं की मांगों पर सीएम डा.निशंक ने कहा कि किसी कीमत में उनका लाभांश घटने नहीं दिया जाऐगा। साथ ही कहा कि उन्हें केवल सस्ता ही बेचना है, उन पर योजना के तहत अधिक अनाज उठाने जैसा कोई बोझ नहीं पड़ रहा है। बताया भाडा शाशन वहां करेगा. योजना के लिए बजट प्राविधान के सवाल को सीएम टाल गऐ। अलबत्ता कहा कि तीन माह की तैयारी व उचित प्राविधानों के साथ ही योजना शुरू की है। यह भी जोर देकर कहा कि योजना केन्द्र सरकार के भरोसे नहीं वरन राज्य ने अपने दम पर शुरू की है। 
चार हजार पदों पर पुलिस भर्ती होगी
नैनीताल। मुख्यमन्त्री डा. निशंक ने कहा कि यूपी के साथ पुलिस कर्मियों के बंटवारे का मसला हल हो गया है। गत दिनों यूपी की सीएम के साथ हुई बैठक में उन्होंने यूपी के सिपाहियों की जगह केवल पद देने को कहा, जि से मान लिया गया। कहा कि जल्द प्रदेश के चार हजार नौजवानों को पोलिस में भरती होने का मौका मिलेगा।
85 फीसद घोषणाएं की पूरीं
नैनीताल। मुख्यमन्त्री निशंक ने कहा सरकार की अटल खाद्यान्न योजना चुनावी नहीं है। कहा कि पूर्व सीएम नारायण दत्त तिवारी ने आज ही देहरादून में योजना का नाम अटल जी के नाम पर रखने का स्वागत किया है। दावा किया कि सरकार ने 85 फीसद घोषणाएँ पूरी कर ली हैं। उन्होंने नाम लिऐ बीना कहा कि वह पिछली सरकार की तरह चुनावी वर्ष में पूरी न होने वाली करोड़ों की घोषणाएँ नहीं करने जा रहे हैं। एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने स्पेशाल कंपोनेंट प्लान में धन न मिलने के आरोपों पर विपक्ष को अध्ययन करने की सलाह दी।

Saturday, March 27, 2010

एकतरफा बोल रही हैं अंजू गुप्ता : कलराज मिश्रा

भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं बाबरी विध्वंश मामले में आरोपी कलराज मिश्रा ने आईपीएस अधिकारी अंजू गुप्ता के सीबीआई अदालत में शुक्रवार को दिऐ बयान को एकतरफा करार दिया है। उन्होंने कहा कि अंजू अपने बयान में पूर्वाग्रहों से ग्रस्त लगती हैं। उन्हें मामले का दूसरा पक्ष भी रखना चाहिऐ थे।
  • आडवाणी, जोशी ने मुंह तक नहीं खोला था, शेशाद्रि विभिन्न भाषाओं में लोगों को ढांचा तोड़ने से मना कर रहे थे 

शनिवार को निजी प्रवास पर नैनीताल पहुंचे भाजपा के वरिष्ठ नेता ने बातचीत मैं यह बात कही। उन्होंने इसे सही करार दिया कि बावरी विध्वंश की घटना के दौरान अंजू वहां एएसपी के रूप में मौजूद थीं, और उनकी (कलराज की) अंजू से काफी बात भी हुई थी। उन्होंने बताया कि घटना के दौरान देश की विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता आरएसएस नेता स्वर्गीय शेशाद्रिचारी भीड़ को लगातार हिन्दी, तमिल, तेलगू व पूर्वोत्तर की विभिन्न भाषाओं में चीख चीखकर `संघ की मानो´ व `अनुशासन मानो´ कह समझा रहे थे। कलराज ने दावा किया कि इस दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी एवं मुरली मनोहर जोशी कार सेवकों को भड़काने जैसा एक शब्द भी नहीं बोले थे। इस दौरान जब ढांचा तोड़ा जा रहा था, कई लोग बाबरी ध्वंस करने वालों को पकड़ने के लिए भी दौड़े, और कई को मारा भी गया। मिश्रा ने कहा कि वह घटना भीड़ द्वारा अनियन्त्राण की स्थिति में की गई घटना थी, ऐसे में नेतृत्व पर लांछन लगाना गलत है। उन्होंने माना कि बाबरी ध्वंस के बाद कुछ लोगों ने खुशी जरूर जताई थी। उनका कहना था कि अंजू यदि दूसरी ओर की बातें भी रखती तो अच्छा होता। एक अन्य सवाल के उत्तर में श्री मिश्रा ने राम मन्दिर निर्माण को भाजपा की वचनबद्धता बताया। साथ ही साफ किया कि भाजपा के पूर्ण बहुमत बिना यह सम्भव नहीं लगता। उन्होंने भाजपानीत एनडीए के छह वर्ष के शासनकाल में राम मन्दिर न बनाने को विफलता मानने से इंकार किया। कहा यह 1857 से चला आ रहा विवाद है। उन्होंने खुलाशा किया कि 1857 में फैजाबाद के एक हिन्दू व एक मुस्लिम नेता ने विवादित स्थल पर मन्दिर का निर्माण तय कर लिया था, किन्तु अंग्रेजों ने दोनो नेताओं को फांसी पर चढ़ा दिया। उन्होंने कांग्रेस पार्टी को भी राममन्दिर के कपाट खोलने के लिए श्रेय दिया। कहा कि कांग्रेस पार्टी सहित सभी चाहते हैं कि राम मन्दिर बने, परन्तु दूसरे को राजनीतिक श्रेय न मिल जाऐ इसलिए विरोध करते हैं। अमिताभ बच्चन को गुजरात का ब्राण्ड अंबेसडर बनाऐ जाने के बाद कांग्रेस द्वारा उनका विरोध किऐ जाने को उन्होंने कांग्रेस की संकुचित सोच का नमूना बताया। कहा कि पूर्व पीएम राजीव गांधी, पीएम डा. मनमोहन सिंह व पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद से विकास के प्रतिमान रचने के लिए प्रशंशित गुजरात प्रदेश से किसी बढ़े कलाकार के जुड़ने की प्रशंशा होनी चाहिऐ। इसे कलाकार का सत्तारूढ़ दल से जुड़ना नहीं माना जाना चाहिऐ।