(रामलीला में पात्र के `मेकअप´ में तल्लीन सईब अहमद)
नवीन जोशी, नैनीताल। `दीवाली में अली और रमजान में राम´ का सन्देश शब्दों से इतर यदि कहीं देखना हो तो सर्वधर्म की नगरी नैनीताल सबसे उम्दा पड़ाव हो सकता है। एक छोटे से पर्वतीय शहर में हिन्दू, मुस्लिम, सिख व इसाइयों के साथ ही बौद्ध एवं आर्य समाजियों के धार्मिक स्थलों से देश की सर्वधर्म संभाव की आत्मा प्रदर्शित करने वाले इस नगर की एक और बड़ी खासियत दशहरे पर नुमाया होती है। यहां रहीम भाई रावण परिवार के पुतले बनाने में जुटे जुऐ हैं तो सईब भाई पर रामलीला में राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न सहित रामलीला के समस्त पात्रों को सजाने संवारने का दायित्व है।
दशहरे में हिन्दू मुस्लिम एकता का अनूठा सन्देश देता है नैनीताल
ज्योतिश में भी पारंगत सईब के अनुसार `वेद पुराना और ज्योतिष नया´ होना चाहिऐ
रहीम भाई हरियाणा से हैं। इस वर्ष उन्हें मल्लीताल की रामलीला के लिए 50 फिट से अधिक ऊंचे रावण परिवार के सदस्यों के पुतले बनाने का दायित्व मिला हुआ है। और इस कार्य में वह अपने परिवारों के साथ जुटे हुऐ हैं। बीते वर्षों में भी कभी बरेली की रजिया बेगम तो कभी रामपुर का वहाब भाई यह जिम्मेदारी निभाते आऐ हैं। इधर तल्लीताल में सईब भाई बीते 25 वर्षों से रामलीला के पात्रों को सजाने संवारने में जुटे हुऐ हैं। भूगोल विषय से परास्नातक सईब अहमद साहब का मानना है कि मनुष्य जिस `भूगोल´ में रहता है, उसे वहीं की संस्कृति में रच बस जाना चाहिऐ। वह पहाड़ में रहते हैं तो यहीं की तरह भट का जौला या चुड़काणी व गहत के डुबके उनके घर में भी बनते हैं। वह कहते हैं पहाड़ में हैं तो हमारी संस्कृति पहाड़ी है। ठीक इसी तरह वह `सांस्कृतिक पर्व´ रामलीला से 1985 से जुड़े हैं। सईब बताते हैं तब तल्लीताल की रामलीला आयोजक संस्था नव ज्योति क्लब को आयोजन में कुछ समस्या आई थी तो उन्हें पात्रों के `मेकअप´ का दायित्व सोंपा गया, जिसे वह आज तक निभाते आ रहे हैं। सईब भाई `क्रेप वर्क´ यानी पात्रों के दाढ़ी, मूंछ बनाने में महारत रखते हैं। मूंछें, दाढ़ी वह खुद ही तैयार करते हैं। वह पात्रों के मंच पर मूड के हिसाब से `मेकअप´ बदलने और मिनटों में पात्रों का हुलिया बदलने में भी माहिर हैं। जैसे अभी कोई पात्रा मेघनाद बना था और अब तुरन्त ही उसे अंगद भी बनना है तो उसकी समस्या का इलाज सईब भाई के पास है। रामलीला के दिनों के अलावा भी सईब भाई की दिनचर्या दिलचश्प रहती है। एक मुसलमान होते हुऐ भी उनका मूल पेशा ज्योतिशी का है। वह हिन्दू पराशर विधि के अनुसार कुण्डली बनाने, मिलाने व देखने में ऐसे विद्वान हैं कि लोग शादी विवाह के लिए भी हिन्दू पण्डितों के बजाय उनके पास कुण्डली मिलाने के लिए पहुंचते हैं। सईब बताते हैं `वेद हमेशा पुराना और ज्योतिश नया होना चाहिऐ´, लिहाजा वह निरन्तर ज्योतिश के साथ वेदों का भी अध्ययन करते रहते हैं। बताते हैं कि 1978 के दौर में नगर में आने वाले बंगाली बाबा से उन्हें ज्योतिष की प्रेरणा मिली। कहते हैं कि हिन्दुओं के साथ मुस्लिमों के समस्त त्योहार ज्योतिश और चन्द्र कलेण्डर पर भी आधारित होते हैं। वह नगों के भी अच्छे जानकार हैं। इस्लामी `अमाल ए कुरानी´ तरकीब से रुहानी इलाज की भी वह जानकारी रखते हैं।