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Saturday, February 12, 2011

अटल व तिवारी के सहारे सियासी कद बढाने की कोशिश में निशंक




`मिशन 2012´ के `चुनावी मोड´ में जा चुकी उत्तराखंड की भाजपा सरकार के तरकश से छूटा `अटल खाद्यान्न योजना´ का तीर आखिरी नहीं वरन पहला है। "अटल खाद्यान्न योजना" शुरू करने के साथ प्रदेश के मुख्य मंत्री डा. रमेश पोखरियाल 'निशंक'  ने अपने ताप-तेवरों से इशारा कर दिया कि आगे ऐसे कई तीर विपक्ष को भेदने के लिए उनके तरकश से निकलने वाले हैं। वहीँ "अटल आदर्श गाँव" के बाद इस योजना का नाम भी पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपयी के नाम से करके और योजना के प्रदेश भर में एक साथ भव्य शुभारम्भ करने तथा पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को देहरादून में साथ बैठा कर निशंक ने खुद की सियासी तौर पर "हल्के व बातूनी" राजनेता की छवि तोड़ने की कोशिश की है, वहीँ अपना कद भी कुछ हद तक बढ़ाने की कोशिश शुरू कर दी है। 
मुख्यमन्त्री निशंक ने अटल खाद्यान्न योजना के साथ जो चुनावी 'ट्रंप कार्ड' मारा है, इससे खासकर विपक्षी कांग्रेस पार्टी कई मोर्चों पर एक साथ आहत हुई है, और बर्षों तक उसे इसका दर्द सालता रहेगा, यह भी तय है। मालूम हो कि केन्द्र सरकार शीघ्र संसद में खाद्य सुरक्षा विधेयक लाने जा रही है। यदि यह विधेयक लागू हुआ तो केन्द्र सरकार योजना का पूरा क्रियान्वयन खर्च ठाऐगी, और नाम भाजपा सरकार का का होगा। यूं तो भाजपा इस योजना के बल पर ही छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश के साथ कमोबेश गुजरात में सत्ता में वापसी करने में सफल रही है, लेकिन ऐसा यदि उत्तराखण्ड में नहीं  दोहराया जाता तो अगली कांग्रेस सरकार के लिए भी जनता से जुडी इस योजना को जारी रखने की मजबूरी होगी। कांग्रेस अभी योजना के नाम पर आपत्ति कर रही है, लेकिन उसके पास भी गांधी परिवार के अतिरिक्त योजना के लिए कोई नाम मुश्किल से ही होगा, और ऐसा साहस जुटाना भी उसके लिऐ मुश्किल ही होगा। वैसे भी पूर्व सीएम तिवारी द्वारा योजना का नाम अटल जी के नाम पर रखने का स्वागत करने से कांग्रेस की स्थिति स्वयं हांस्यास्पद हो गई है। आगे मुख्यमन्त्री ने अटल जी के नाम से विकसित किऐ जा रे अटल आदर्श गांवों को मिनी सचिवालय बनाने का इरादा जताया है। 
उल्लेखनीय है कि अटल देश के एकमात्र गैर कांग्रेसी नेता हैं, जिन्हें धुर दक्षिणपंथी पार्टी का नेता होने के बावजूद उत्तर-दक्षिण रहने वाली बामपंथियों को भी साथ लेकर पांच से अधिक वर्ष केंद्र में सरकार चलाने का श्रेय जाता है। उत्तराखंड की बात करें तो उनके समय में ही यह राज्य बना। यही नहीं राज्य को वर्ष २०१३ तक के लिए विशेष राज्य का दर्जा दिया गया. आर्थिक व औद्योगिक पैकेज भी मिले, नैनीताल को दो अरब रुपये की झील संरक्ष्यं योजना मिली, वह भी तब जबकि राज्य में विपक्षी कांग्रेस पार्टी की सरकार थी, जिसके मुखिया तिवारी थे। जी हाँ, तिवारी जी, जो न केवल अटल जी के नाम से शुरू हुई "अटल खाद्यान्न योजना" के उदघाटन मौके पर आये, वरन अटल जी को अपना मित्र बताते हुए योजना और उसके नाम का स्वागत किया। निस्संदेह इसे निशंक की सफलता और एक तीर से कई शिकार कहा जा रहा है। अटल के नाम से योजना का नाम रखने और तिवारी को मंच पर लाने पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भी निशंक की पीठ ठोंकी है। ऐसे में कहा जा सकता है कि यदि यह निशंक का चुनावी संख्नाद है तो फिर उनकी पार्टी राज्य में अब तक लगभग हारी गयी बाजी मानी जा रही जंग को जीतने का स्वप्न संजो सकती है। इससे विपक्ष में आने वाले दिनों में बेचैनी के और बढ़ने से भी इंकार नहीं किया जा सकता। 
अटल व तिवारी की दोस्ती का गवाह है नैनीताल
नैनीताल। पूर्व सीएम तिवारी ने अटल खाद्यान्न योजना के शुभारम्भ मौके पर पूर्व पीएम अटल बिहांरी बाजपेयी से अपनी दोस्ती का जिक्र किया, और मुख्यमन्त्री डा. निशंक ने तुरन्त ही राज्य में उनकी दोस्ती के स्थल नैनीताल के लिए दो बड़ी घोषणाऐं कर दो बढे नेताओं की दोस्ती को यादगार बनाने का सन्देश दिया है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2002 में तत्कालीन पीएम बाजपेयी व सीएम तिवारी की नगर के राजभवन में भेंट हुई थी, और इसमें बिना किसी पूर्व भूमिका के बाजपेयी ने तिवारी के कहने पर नगर के लिए 200 करोड़ की नैनीताल झील संरक्षण परियोजना की घोषणा कर दी थी। आगे निशंक देश के इन दो राजनीतिक धुरंधरों की दोस्ती के नाम पर और सियासी फसल काटते हुऐ (भी) इनकी दोस्ती के प्रतीक नैनीताल को और कुछ दे जाऐ, तथा इससे नगर और मण्डल के सियासी समीकरण भी बदल जाऐं तो सन्देह न होगा।

Saturday, May 8, 2010

क्या निशंक सरकार की चला-चली की बेला आ गयी....

नवीन जोशी, नैनीताल। क्या 10 वर्ष के उत्तराखंड में जल्द छठा मुख्यमंत्री आने जा रहा है... क्या जल विद्युत परियोजनाओं का दूसरी बार सर उठाने वाला विवाद मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल `निशंक´ की सत्ता ले डूबेगा...? निशंक का बीती 6 मई को नैनीताल का संक्षिप्त दौरा नगर में ऐसी ही चर्चाओं का तूफान छोड़ गया है। मुख्यमंत्री यहाँ जिले के ही दो-दो मंत्रियों के होते हुए ओर नयों को छोड़ दो 'बीत राग' पूर्व अध्यक्षों पूर्व पार्टी अध्यक्ष बची सिंह रावत व भाजयुमो के पूर्व अध्यक्ष पुश्कर सिंह धामी के साथ हैलीकॉप्टर से आऐ और थोड़ी देर में ही लौट भी गऐ, लेकिन अगले दिन पूरे दिन हुई बारिश के कारण घरों से बाहर न निकल पाऐ लोग इसी मुद्दे पर चर्चा करते देखे गऐ। खासकर सत्तारूढ़ दलों के लोग भी चटखारे लेने में पीछे नहीं रहे।
डा. निशंक के सम्बंध यूं पार्टी संगठन के `नऐ´ नेताओं से भी मधुर ही बताऐ जाते हैं, वर्तमान बुरे दौर में पार्टी संगठन की चुप्पी के बीच उनके विरुद्ध मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे एक मंत्री और कुछ उपकृत दयित्व्धारी उनके पक्ष में बोल भी रहे हैं, परन्तु उनके नैनीताल के छोटे से दौरे ने बड़ी चर्चाओं को हवा दे दी है. दो `पुराने´ नेताओं के साथ उनके नैनीताल आगमन की पृष्ठभूमि में पार्टी के दो पूर्व मुख्यमन्त्रियों कोश्यारी व खण्डूड़ी के बीच पक रही खिचड़ी की चर्चाओं को आधार बताया जा रहा है। निशंक की ताजपोशी का आधार बने इन पूर्व मुख्यमन्त्रियों के बीच की जंग जगजाहिर है, लेकिन इधर चर्चाओं पर यकीन किया जाऐ तो दोनों वरिष्ठ  नेताओं की तलवारें न केवल म्यान में वापस जा चुकी हैं, वरन दोनों `एक´ हो साथ बैठकर उस `शकुनि´ का भी पता लगा चुके हैं, जिसके कारण आज वह एक तरह से राजनीति के हाशिये पर पहुंच गऐ हैं। दोनों इस बात पर भी सर धुन चुके हैं कि आखिर उनके बीच विवाद था क्या, और इस बात का गुणा भाग भी कर चुके हैं कि आपसी जंग से दोनों को क्या मिला। ऐसे में अब वह `एक´ हो चुके हैं।  कोश्यारी के 'राष्ट्रीय उपाध्यक्ष' बनाने में खंडूरी का सहयोग भी जाहिर हो चूका है. इधर जल विद्युत परियोजनाओं के मुद्दे पर विपक्ष के वार को एक बार जाया कर चुके मुख्यमंत्री डा. निशंक पर इस बार पार्टी के भीतर से हुआ यह दूसरा वार इस `एका´ से भी जोड़ा जा रहा है। इस बार पार्टी के ही समर्थित टिहरी जिला पंचायत अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री  पर सीधा हमला बोलते हुए जल विद्युत् परियोजना के ऐवज में पार्टी फंड में एक करोड़ रुपये देने का सनसनीखेज आरोप लगाया है. इधर बताया जा रहा है हाईकमान के पास `निशंक´ के कार्यकाल में पार्टी की हालत और अधिक पतली होने की `फीड´ भी पहुंच चुकी है, खासकर इन आरोपों को हाई कमान ने बेहद गंभीरता से लिया है, और आरोप सही पाए जाने पर कार्रवाई करने का संकेत दिया है। जाहिर है पार्टी में अदनी सी हैसियत रखने वाले गुनसोला ने अपने दम आवेश में आकर तो आरोप नहीं ही लगाए होंगे. इधर भाजपा की हालत दिन-प्रतिदिन पतली होती जा रही है. भ्रष्टाचार रहित शासन देने का भाजपा का शिगूफा जनता खंडूरी के शासन काल में ही समझ चुकी है. जनता समझ चुकी है कि कोंग्रेस की इमानदारी खुद भी खाने और दूसरों को भी खिला कर राज्य को मिल-बाँट कर ख़त्म कर देने की है, जबकि भाजपा की इमानदारी केवल दूसरों के लिए है, यानी वह खुद अकेले खाने पर विश्वास करते हैं, मूल भावना दोनों की ही राज्य को चट कर जाने की है.  इधर विगत माह पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कलराज मिश्र के मुख्यालय आगमन पर उनके समक्ष पड़ा कार्यकर्ताओं का टोटा, दूसरे उपाध्यक्ष कोश्यारी के आगमन पर दिल्ली रैली के लिऐ कराऐ गऐ 10 हजार हस्ताक्षरों को झुठलाते चंद कार्यकर्ताओं के उठे हाथों ने पार्टी की स्थिति की चुगली खुद कर दी थी। पुराने पार्टी कार्यकर्ता पूरी तरह से पार्टी के कार्यक्रमों से किनारा कर रहे हैं। वह मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में भी नहीं पहुंचे. ऐसे में मुख्यमंत्री का मुख्यालय आना और दो पूर्व नेताओं को साथ लाना चर्चाओं को हवा दे गया है। उल्लेखनीय है कि बचदा को खण्डूड़ी और धामी को कोश्यारी का नजदीकी माना जाता है। कहा जा रहा है कि निशंक  मुख्यमंत्रीखण्डूड़ी और  को वर्तमान विपरीत परिस्थितियों में भी अपने `साथ´ होने का सन्देश देने के लिए इन्हें साथ लेकर आऐ। लेकिन जो होता है, उसे न दिखाने और जो नहीं होता, उसे दिखाने को ही आज के दौर में `राजनीति´ कहा जाता है। वैसे भी स्वयं को मूलतः पत्रकार बताने वाले डा. निशंक दिखावे की कला खूब जानते है, लेकिन यहाँ लगता है कि वह, वह दिखा गए, जो छुपाना चाहते थे....