- बड़े शौक से सुन रहा था ज़माना तुम्हें, तुम ही सो गए दास्तां कहते-कहते....
- नर्सरी स्कूल से हॉलीवुड तक का कठिन सफर तय किया था निर्मल ने
निर्मल की 47 वर्षों की छोटी जीवन यात्रा में से उनके स्टार बनने के बाद की कहानी तो शायद सबको पता हो लेकिन इससे पीछे की कहानी थोटे शहरों में बड़े सपने देखने वाले किसी भी युवक के लिऐ प्रेरणास्पद हो सकती है। अभिनय की प्रतिभा खैर उन्हें विरासत में मिली। उनके नाना जय दत्त पाण्डे मशहूर कथावाचक थे, जबकि योजना विभाग में बड़े बाबू पिता हरीश चन्द्र पाण्डे एवं माता रेवा पाण्डे की भी संगीत में गहरी रुचि थी। गौशाला स्कूल से निकलकर नगर के सीआरएसटी इंटर कालेज में पहुंचते निर्मल के भीतर का कलाकार बाहर आ गया। विद्यालय के पूर्व प्रधानाचार्य मोहन लाल साह बताते हैं सीआरएसटी से ही निर्मल ने 1978 में तारा दत्त सती के निर्देशन में स्कूल के रामलीला वैले से बड़े भाई मिथिलेश के साथ राम-लक्ष्मण की भूमिका अदा कर अभिनय की शुरूआत की थी। इसे देख स्कूल के सांस्कृतिक क्लब के अध्यक्ष मरहूम जाकिर हुसैन साहब निर्मल से इतने प्रभावित हुऐ कि इस नन्हे बालक को क्लब का सचिव बना दिया। 80 में निर्मल युगमंच संस्था से जुड़े और डीएसबी से एमकॉम करने लगे। इस दौरान ही उन्होंने सीआरएसटी में राजा का बाजा नाटक किया। इससे पूर्व उन्होंने नगर के ही इदरीश मलिक के निर्देशन में हैमलेट नाटक से अभिनय को नऐ आयाम दिऐ।
युगमंच के लिए अनारो उनका पहला नाटक था। पहले प्रयास में ही निकलकर 86 में वह एनएसडी चले गऐ, और एनएसडी के लिए अजुवा बफौल सहित कई नाटक किऐ। 89 में एनएसडी ग्रेजुऐट होते ही वह लन्दन की तारा आर्ट्स संस्था से जुडे़ और संस्था के लिए सैक्सपियर के कई अंग्रेजी नाटक किऐ। इसी दौरान उन्होंने विश्व भ्रमण भी किया। इसी दौरान के प्रदर्शन पर शेखर कपूर ने उन्हें `बैण्डिट क्वीन´ फिल्म में ब्रेक दिया। जिसके बाद ही वह रुपहले पर्दे पर अवतरित हुऐ। दायरा फिल्म में महिला के रोल के लिए उन्हें केन्स फिल्म समारोह में फ्रांस का सर्वश्रेश्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला। उनसे प्रेरणा पाकर नगर के सुवर्ण रावत, योगेश पन्त, ज्ञान प्रकाश, सुमन वैद्य, सुनीता चन्द, ममता भट्ट, गोपाल तिवारी, हेमा बिश्ट आदि कई कलाकारों ने एनएसडी का रुख किया, इनमें से कई बॉलीवुड में स्थापित भी हुऐ हैं। शायद इसी लिए उनके साथी रहे वरिष्ठ रंगकर्मी जहूर आलम एवं उनके पूर्व शिक्षक एवं प्रधानाचार्य मोहन लाल साह कहते हैं, ऐसा लगता है मानो पहाड़ टूट गया हो। पहाड़ उन्हें बड़ी उम्मीदों से बहुत आगे जाता देख रहा था, अफसोस वह ही सो गऐ दास्तां कहते कहते....।
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ReplyDeleteधन्यवाद उन्मुक्त जी, एक बहुत बढ़िया टूल देने के लिए.
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