ज़िन्दा रहने के मौसम बहुत हैं मगर......
नवीन जोशी, नैनीताल। परिजनों के एमसीए कराने के स्वप्न से इतर उसके मन में कुमाऊं रेजीमेंट में रहकर देश के लिए तीन लड़ाइयां लड़ने वाले दादाजी और बड़े चाचा से संस्कारों में मिले बोल `ज़िन्दा रहने के मौसम बहुत हैं मगर, जान देने की रुत रोज आती नहीं....´ गूंज रहे थे, ऐसे में हाईस्कूल व इंटर में अपने कालेज को टॉप कर बीएससी कर रहा वह होनहार मौका मिलते ही सीआरपीएफ की ओर मुड़ गया। आज वह अपनी बूढ़ी मां की आंखिरी उम्मीदों और पत्नी को हाथों की हजार उम्मीदों की गीली मेंहदी को सूखने से पहले ही एक पल में झटक छोड़ चला है। वह तो शायद देश के लिए उसकी कुर्बानी से अपना मन मना भी लें, लेकिन उसका क्या जिसका भाग्य अभी मां की कोख में शायद विधाता ठीक से लिख भी न पाऐ हों, और उस अजन्मा आत्मा ने अपने भाग्य विधाता को ही खो दिया है।
- पिता की मौत के आंसू पोंछ, एमसीए छोड़ सीआरपीएफ में भर्ती हुआ था मनोज नौंगाई
- मां की इकलौती उम्मीद एवं पत्नी के हाथों की गीली मेंहदी के साथ कोख के अजन्मे शिशु के सपने भी तोड़ गया शहीद
देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखण्ड की एक और पहचान है। यहां आजादी के पूर्व से अब तक यह परंपरा अनवरत जारी है कि हर घर में कम से कम एक व्यक्ति जरूर फौज में रहकर देश की सेवा करता है। लेकिन प्रकृति के स्वर्ग कहे जाने वाले नैनीताल जनपद के भीमताल कस्बे के निकट सांगुड़ीगांव में रहने वाले एक परिवार के एक नहीं दो लोगों ने कुमाऊं रेजीमेंट में रहकर देश की सेवा की। दादाजी भैरव दत्त नौगाई ने पाकिस्तान व चीन से देश की तीन लड़ाइयां लड़ीं तो पिता के चचेरे भाई यानी बड़े चाचा लक्ष्मी दत्त नौगांई ने भी केआरसी की 20वीं बटालियन में रहकर देश की लंबी सेवा की। यह दोनों ही हमेशा मनोज के आदर्श रहे।
मनोज में गजब की इच्छा शक्ति थी। वह बेहद मेधावी होने के बावजूद किसी कारण हाईस्कूल में गणित में कम अंक आने के कारण फेल हो गया था, लेकिन इस ठोकर को उसने अपने पथ का पाथेय बना लिया। अगले वर्ष ही हाईस्कूल में उसने अपने कालेज एलपी इंटर कालेज को टॉप कर दिया, 11वीं में पढ़ने के दौरान 2001 में विधाता ने उसके सिर से पिता भुवन नौगांई का साया छीन लिया था, बावजूद इंटर में भी उसने कालेज टॉप किया। 2003 में उसने कुमाऊं विवि के डीएसबी परिसर में बीएससी प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया ही था, कि देहरादून में सीआरपीएफ के साक्षात्कार का `कॉल´ आ गया। भाई की मौत के सदमे से उबर न पाऐ बिड़ला संस्थान में चालक के पद से परिवार की गाड़ी चला रहे चाचा विनोद नौगांई ने मना किया, कहा "इस खतरे की नौकरी में न जा, मैं जमीन बेचकर भी तुझे एमसीए कराउंगा"। लेकिन वह न माना। परीक्षा दी और उत्तीर्ण हो खुशी खुशी `ज़िन्दा रहने के मौसम.....´ गुनगुनाता नौकरी पर चला गया।
इधर गत वर्ष वेलेंटाइन डे 14 फरवरी 09 के दिन उसने हल्द्वानी की मात्र 21 साल की सोनिका भगत को अपनी वेलेंटाइन के साथ ही पत्नी बनाया था। बीते माह ही वह सीआरपीएफ में उपनिरीक्षक पद की परीक्षा उत्तीर्ण कर पदोन्नत हुआ था। यूँ, सीआरपीएफ की नौकरी में रहते कई बार उसका मौत से सामना हुआ था। प्रशिक्षण के दौरान एक मित्रा ने तो उसकी गोद में ही दम तोड़ दिया था, बावजूद देश सेवा की रह में बड़ी से बड़ी दुश्वारियां उसे डिगा नहीं पाई थीं। लेकिन बीती छह अप्रैल मंगलवार को छत्तीसगढ़ के दन्तेवाड़ा में हुऐ `अमंगल´ में वह दिलेर भी अपने 83 साथियों के साथ धोखे का शिकार हो गया। आज उसके परिवार को उसकी शहादत पर गर्व है। बावजूद दुखों का पारावार भी नहीं। मां व पत्नी की सूनी मांग और आंखों से झरते आंसू सूखने का नाम नहीं ले रहे। उसके पार्थिव शरीर को देखने की बेताबी में कोख के अजन्मे शिशु को लेकर पत्नी सोनिका दूसरी मंजिल से कूद कर घायल हो गई। उसका पांव जल्द ठीक हो जाऐगा, किन्तु उसकी आत्मा के घाव को भरने और आगे ऐसा दूसरी किसी सोनिका के साथ न होगा, इस हेतु क्या कुछ किया जाऐगा, यह बड़ा अनुत्तरित सवाल है।
उसके दादा, दोनों चाचा, मित्रा और जीजा ललित फुलारा...सबकी मानें तो नक्सली समस्या का हल भी आतंकवाद की तरह बिना फौजी कार्रवाई के सम्भव नहीं है। वह कहते हैं "सेना को चढ़ जाने दीजिऐ। देश की आन्तरिक व बाह्य सुरक्षा के मसले पर राजनीति बन्द कीजिऐ।"
(यह खबर सहारा समय के इस लिंक पर भी देख सकते हैं : http://www.samaylive.com/nation-hindi/79581.html)
Miss u so much da miss u alwys
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