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Sunday, September 26, 2010

`पहाड़´ टूट गया, पर नहीं टूटे तो `नेता जी´


 प्रभावितों की मदद को जहां हर कोई हरसम्भव मदद कर रहा था, वहीं `नेता जी´ सिर्फ आश्वासन भर दे लौटे
नवीन जोशी, नैनीताल। जी हां, इसमें बिल्कुल भी अतिशयोक्ति नहीं। कभी मात्र नैनीताल के लिऐ काला दिवस रहा 18 सितम्बर (1880 में 151 लोगों को ज़िन्दा दफन किया था) जब इस वर्ष पूरे प्रदेश के लिए काला दिवस साबित हो रहा था। समूचा `पहाड़´ और पहाड़ के लोग `टूट´ चुके थे। आसमानी बारिश से निकला सैलाब आंखों से बहते `नीर´ से छोटा लगने लगा था। हर कोई प्रभावितों के लिए अपनी ओर से हर सम्भव मदद करने में जुटा हुआ था, वहीं एक ऐसा वर्ग भी था, जो अपनी फितरत बदलने से बाज नहीं आया। चुनावों की तरह भीख मांगने की अपनी आदत न बदल सका, और उसने कुछ दिया जो `आश्वासन´। 
1880 की ही तरह एक बुरे संयोग के साथ इस वर्ष भी एक और `काले शनिवार´ ने नैनीताल जनपद के ओखलकाण्डा विकास खण्ड अन्तर्गत रमैला गांव के डुंगर सिंह रमौला से घर की तीन बेटियों के रूप में `लक्ष्मी´ छीन लीं। एक मां-पिता पर टूटे इस पहाड़ पर मानो पहाड़ भी बिलख उठा जिला प्रशासन, गांव वालों, जिससे जो हो पड़ा, डुंगर की मदद की। लेकिन ऐसे में भी एक व्यक्ति उसे केवल आश्वासन का झुनझुना थमा कर चला आया। स्वयं समझ लीजिऐ, जी हां, वह एक नेता था। और केवल एक नेता ही नहीं, क्षेत्र का केवल विधायक भी नहीं, अभी हाल ही में अपना कद बड़ा कर लौटा प्रदेश का काबीना मंत्री था।
बीती 18 सितम्बर की सुबह सवा नौ बजे केवल 20 सेकेण्ड के अन्तराल में ओखलकाण्डा ब्लाक में मोरनौला-मझौला मोटर मार्ग का मलवा बहता हुआ नाले के रूप में करीब डेढ़ किमी नीचे रमैला गांव के लिए जल प्रलय लेकर आया। गांव से बाहर गया डुंगर सिंह रमौला तो बच गया, पर उसकी पत्नी हंसी घर पर आते सैलाब को जब तक समझ पाती, उसकी तीन बेटियां पूनम (आठ), बबीता (पांच) व दुधमुंही आठ माह की दीपा व दो वर्षीय बेटा दीपक सैलाब की चपेट में आ गईं। चीख सुनकर पड़ोस का नारायण सिंह बच्चियों को बचाने अपनी जान की परवाह किऐ बिना नाले में कूद पड़ा। हाथ में आ सके दीपक को उसने झाड़ियों की ओर फेंककर बमुश्किल बचाया, लेकिन बच्चियां बहती चली गईं। नारायण सिंह करीब 30 मीटर और हंसी भी दूर तलक बही। तीनों बच्चियों के शरीरों को आज तक नहीं खोजा जा सका है, जबकि उसी दिन बहे गांव के ही पूर्व प्रधान 83 वर्षीय बुजुर्ग देव सिंह का शव दो दिन पूर्व बरामद हो सका। इस दुर्घटना के दूसरे दिन डीएम शैलेश बगौली के निर्देशों पर एसडीएम के नेतृत्व में प्रशासनिक दल मौके पर पहुंचा, और शासकीय प्राविधानों पर मानवीय संवेदनाओं को ऊपर रखते हुऐ बच्चियों की मृत्यु मानते हुऐ परिजनों को राहत राशि दे दी। नियमों से बाहर जाकर दो कुंटल चावल व एक कुंटल आटा सहित अन्य खाद्य सामग्री भी बेघर हुऐ डुंगर को दी गई। गांव के अन्य प्रभावितों लाल सिंह व दीवान सिंह रमैला को भी राहत राशि दी गई, लेकिन उन्होंने स्वयं को समर्थ बताते हुऐ अपने हिस्से की राहत राशि भी डुंगर सिंह को दे दी। हल्द्वानी के नायब तहसीलदार भुवन कफिल्टया ने भी तीन-तीन बोरे आटा व चावल अपनी ओर से देकर प्रभावित परिवारों की मदद की। और लोगों ने भी आसरे और जीवन को वापस पटरी पर लाने में मदद की। 
यह तो हुई प्रशासनिक व व्यक्तिगत मदद की बात, अब बात नेताओं की। घटना के करीब एक सप्ताह बाद पूर्व विधायक व उत्तराखंड क्रांति दल के पूर्व केन्द्रीय अध्यक्ष डा. नारायण सिंह जन्तवाल मौके पर पहुंचे और प्रभावित परिवार को संवेदना व्यक्त कर और कुछ फोटो लेकर मदद का आश्वासन देते हुऐ लौट आऐ। वहीं आज घटना के नौ दिन बाद काबीना मंत्री गोविन्द सिंह बिष्ट मौके पर पहुंचे तो रमौला निवासी व शिक्षा विभाग कर्मी दीवान सिंह रमौला के अनुसार केवल आश्वासन भर देकर लौट आऐ। वहीं दौरे में साथ चल रहे भाजपा नेता प्रदीप बिष्ट ने भी यह स्वीकारते हुऐ बताया कि आज ही उन्होंने अक्सौड़ा पदमपुरी में अपनी पत्नी व माता को खोने वाले हरेन्द्र सिंह को घर व जमीन की सुरक्षा के लिए विधायक निधि से मदद का आश्वासन दिया। ऐसे में मंत्री जी का दो समान दुर्घटनाओं में विभेद समझ से परे है। (बताया जा रहा है कि हरेन्द्र सिंह उनकी पार्टी के कार्यकर्ता हैं, जबकि डुंगर सिंह नहीं हैं.) 
ऐसा हो भी क्यों नहीं। मंत्री जी के नेतृत्व और प्रदेश के अन्य नेताओं की फितरत भी देख लिऐ। राज्य का सत्तारूढ व विपक्षी दल दोनों इस दैवीय आपदा में अपने-अपने `मिशन 2012´ देख रहे हैं। 5,574 करोड़ की वर्षीक योजना वाले राज्य के मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल `निशंक´ केन्द्र से आपदा की क्षति का आंकड़ा 21 हजार करोड़ तक खींच चुके हैं। कांग्रेस के स्वयं को `भावी मुख्यमंत्री' मान रहे केन्द्रीय मंत्री हरीश रावत केन्द्र से मिले `500 करोड़´ को ही `केन्द्र की बहुत बड़ी कृपा´ साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है मानो केन्द्र `जनता की जेब से भरे खजाने´ से इतर अपनी 'गाँठ' से कुछ दे रहा हो, और राज्य सरकार मानो जनता के दु:ख दर्दों के प्रति इतनी ही सजग हो गई हो। बहरहाल, इन दावों की असलियत तब सामने आती है, जब आपदा के तुरन्त बाद अपने क्षेत्रों में जनता के दु:ख-दर्दों में हाथ बंटाने के बजाय हैलीकॉप्टर से राजधानी उड़े राज्य के अन्य विधायकों के साथ नैनीताल विधायक खड़क सिंह बोहरा हफ्ते भर बाद लौटकर विभिन्न सामाजिक संगठनों, व्यापारिक संगठनों और यहां तक कि छात्र संघ के आगे मदद के लिए हाथ पसारते दिखाई दिऐ।
आपदा की कुछ और फोटो देखें: http://www.facebook.com/album.php?aid=36832&id=100000067377967

1 comment:

  1. नेता आखिर नेता होते है ... नेता बनने के पहले शर्म बेच खाते हैं .... क्या कहें इन बेशरम नेताओं को ...

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