-कई मायनों में अनूठी हैं नैनीताल की चप्पूदार नौकाएं
नवीन जोशी, नैनीताल। नैनीताल में बेतर आशाओं-उम्मीदों के साथ ग्रीष्मकालीन पर्यटन सीजन की शुरुआत होने जा रही है। ऐसे में नौका मालिक जोरों से सीजन की तैयारियों में जुटे हुए हैं। अपने आकार-प्रकार तथा निर्माण में प्रयुक्त सामग्री सति अनेक आधारों पर अपनी तरह की अनूठी नैनी सरोवर की शान कही जाने वाली नौकाओं को सीजन के लिए तैयार किया जा रहा है। खासकर नौकाओं को वार्निश पिलाने पर खासा ध्यान दिया जा रहा है। जी हां, जानकर हैरत में ना पड़ें, अनेक वाहन जहां चलने के लिए डीजल-पेट्रोल पीते हैं, वहीं नैनीताल की नावें वार्निश पीती हैं। नावों के लिए वार्निश का खर्चा नाव मालिकों के लिए बड़ी चिंता का विषय भी होता है।
नैनीताल की नौकाओं के वार्निश पीने के इस रोचक संदर्भ से पहले इन खास नौकाओं के बनने की प्रविधि भी जान लें। करीब 22 फीट लंबी, चार फीट चौड़ी व डेड़ फीट ऊंची नौकाएं बेशक अपनी गद्दियों पर लगे कपड़े की वजह से रंग-बिरंगी नजर आती हैं, पर इनके निर्माण में रंग का प्रयोग केवल पांव रखने के फर्श और चप्पुओं में ही होता है। सामान्यतया इन्हें पीले रंग से रंगा जाता है। वहीं नौका का शेष पूरा हिस्सा अंदर-बाहर वार्निश से ही जलरोधी (वाटरप्रूफ) बनाया जाता है। नौकाएं हल्की व मजबूत शीशम की लकड़ी से बने ढांचे (इसे नाव की रीढ़ कहा जाता है) पर तुन की मुड़ने योग्य खपच्चियों (पट्टियों) को जंगरोधी तांबे की बनी कीलों से जोड़कर बनाई जाती हैं। चप्पू और फर्श चीढ़ की लकड़ी के बनते हैं। इसमें करीब एक माह का समय लग जाता है और 78 हजार रुपए का खर्च आता है। नाव के पूरे ढांचे को जलरोधी बनाने के लिए हर तीन माह में करीब तीन लीटर और हर छह माह में करीब छह लीटर यानी वर्ष भर में करीब नौ लीटर वार्निश का प्रयोग किया जाता है, जिसे नाव को वार्निश पिलाना कहा जाता है। जान लें कि एक लीटर वार्निश करीब 280 रुपए का, और तीन लीटर की केन करीब 800 रुपए की आती है। हर वर्ष सीजन से पहले मार्च-अप्रैल तथा सर्दियों से पहले बारिश-बर्फ से नाव को बचाने के लिए अक्टूबर में दो बार नावों की मरम्मत की जाती है, तब तक तुन की दो-चार पट्टियां इस सारे प्रबंध के बावजूद सड़ जाती हैं, लिहाजा उन्हें बदलना पड़ता है। इस प्रकार हर मरम्मत पर तीन-चार हजार रुपए का खर्च आ जाता है। वर्ष भर पूरी देखरेख के बावजूद एक नाव औसतन 10 वर्षों में पूरी तरह से खराब हो जाती है। नगर में केवल सात-आठ शिल्पी ही हैं जो नावों का निर्माण और मरम्मत कर पाते हैं। बताते हैं कि सरदार धन्ना सिंह ने 1930 के आसपास यहां इस विशेष प्रकार की नावें बनाने की शुरुआत की थी। ऐसी नावें केवल जनपद की भीमताल, सातताल व नौकुचियाताल झीलों में ही सवारी के लिए मिलती हैं।
कई स्नातक भी खेह रहे नाव
उल्लेखनीय है कि नाशपाती के आकार की नैनी झील करीब तीन किमी की परिधि की 14 मीटर लंबी, 46 मीटर चौड़ाई व अधिकतम 28 मीटर गहराई की तथा 4.8 हेक्टेयर यानी 0.4 वर्ग किमी में फैली हुई है। इतनी छोटी झील में अकेले 222 चप्पूदार नौकाएं चलती हैं, जो अभी हाल में अक्टूबर से बड़े किराए के अनुसार 210 रुपए में झील का पूरा और 160 रुपए में आधा चक्कर लगाती हैं। कड़ी मेहनत से नाव चालक हाथों में छाले लगाने के बावजूद दिन भर में अधिकतम आठ से 10 चक्कर ही लगा पाते हैं, और दिन में औसतन एक हजार और वर्षभर में 55 हजार रुपए ही कमा पाते हैं। एक नाव से औसतन तीन लोगों के और करीब 500 परिवार पलते हैं। करीब 175 नाव मालिक खुद ही अपनी नाव चलाते हैं। इनमें करीब डेड़ दर्जन नाव चालक स्नातक भी हैं। नाव के बनने का खर्च उतारने में खुद नाव खेने पर तीन साल और चालकों से चलवाने पर पांच वर्ष तक लग जाते हैं।
कभी नहीं हुई बड़ी दुर्घटना
नैनीताल। दिन भर पूरी मेहनत के बावजूद अच्छी आय प्राप्त न करने से नाव चालक बेहद कठिनाई का जीवन जी रहे हैं। नैनीताल नाव मालिक संघ के संयुक्त सचिव मोहन राम, पूर्व कोषाध्यक्ष डीके सती व सदस्य प्रमोद पवार बताते हैं उनकी समस्याएं चुनावी दौर में भी किसी प्रत्याशी या दल के एजेंडे में शामिल नहीं होती। उन्हें लाइसेंस लेने सहित अनेकों पाबंदियां झेलनी पड़ती हैं। सूर्यास्त के बाद नाव चलाने की अनुमति नहीं है। अब तक के इतिहास में कभी चप्पूदार नौकाओं की कोई बड़ी दुर्घटना नहीं हुई है, वरन झील में कूदने वालों की नाव चालक ही जान बचाते हैं।
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